वह नर पशु निरा समान,
करता नहीं जो सम्मान,
नारी को प्रताड़ित करता,
जग में करता उसका अपमान।
समय बदल गया,
संदर्भ बदल गया,
बदला न इनका अभिमान।
अतिशयता की सीमा कर पार,
ये कर रहे हैं दुराचार।
मौन हैं जब तक, बचे हैं तब तक।
तन जायेंगी जिस दिन-
ये तन्वियाँ;
नाश पाप का कर करेंगी,
दुष्ट प्रवृतियों का संहार।
रोक सकेगा न इनको-
कोई बल,
छल सकेगा न इनको-
कोई छल,
बदलेंगी जब ये हवाएँ,
बदलेंगी तब ये मानसिकताएँ।
मुस्कुरा उठेंगी-
ये जीवनदायिनी,
जो करती सृष्टि का निर्माण;
निर्माण की जो दुर्गा हैं,
जो इनको निर्मित करती हैं,
क्यों नहीं-
नर करते इनका सम्मान।
ममता किरण
शोधार्थी (हिन्दी)
बिहार विवि, मुज॰
शोधार्थी (हिन्दी)
बिहार विवि, मुज॰
Nari ka karo samman
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