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Tuesday 30 September 2014

भारत का मंगलयान- अबूज़ैद अंसारी

कल्पना की उड़ान.... चित्र: विष्णु सुशील (सधन्यवाद)
हमको आज हर्ष है, गर्व है, अभिमान है। 
हमने बनाया विश्व में कैसा कीर्तिमान है।

उपलब्धियाँ हमारी देख सकल संसार हैरान है

मंगल कक्षा में पहुँचा भारत का मंगलयान है।
  
 
अबूज़ैद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली में बारहवीं कक्षा के छात्र हैं. आप जीवन मैग के सह-संपादक हैं और नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं.

Saturday 27 September 2014

डायरीनामा- "कहानी उम्र के उस पड़ाव की.."-





सोमवार, 20 जनवरी 2014

उन बूढ़ी आँखों मेँ किसी विजेता सी खुशी थी, उनके हृदय मेँ एक सफल जीवन का ज्वार उमड़ रहा था। थरथराते हाथ जिसकी कसावट हड्डियोँ से चिपकी थी और उन दंभ भरती रगोँ मेँ अचानक आया वो उमंग उनकी उभरी रगों से ज़ाहिर था। मेरे चेहरे और कंधो को ऐसे सहला रही थी जैसे वो आश्वस्त होना चाहती हों कि उसका जीवन कितना सफल है... अपनी थरथराती होँठो से निकले उनके शब्द उनकी इस खुशहाली के आँसु के साथ घुल गए -"अफसोस ना करइत जइह, एक से हजार हो गेली अब हमरा की चाहीँ"। सरसो के फूलों की सुगंध हवा मे तैर रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी रागिनी ने अपनी पीली चुनर खेतोँ मेँ पसार रखी हो... दूर क्षितिज पर लाली इस बात का इशारा कर रही थी की उनकी ज़िंदगी की एक और शाम आने वाली है और इस संध्या में मैँ यह महसूस कर रहा था कि मैँ एक ऐसी धनी महिला के सामने बैठा हुँ और शायद ही यह मुकाम किसी की ज़िंदगी में आता हो...! वो किस्मत की धनी हैँ, वो उम्र की धनी हैँ, और इससे भी कहीँ ज्यादा वो उस परिवार की धनी हैं जिसकी जवां हो चौथी पीढी का हाथ थामे वो सहला रही हैँ। मेरे और उनके बीच एक शताब्दी का फासला हैँ, एक परंपरा, एक संस्कृति, एक सभ्यता, एक सोच का फासला हैँ...लेकिन ऐसा जान पड़ा कि जैसे वो मुझे सदियोँ से पहचानती हो। ऐसा नहीँ कि मैँ उनसे पहले नहीँ मिला लेकिन शायद उन्हेँ एहसास हैँ कि यह मुलाकात आखिरी होगी। वो मेरे दादी की माँ, पिता की नानी और ना जाने कितने गंगा की वो गोमुख हैँ। "हमरा परिवार ऐतना बरका है कि सब लोगन से घर भर जाई, तोहनी सके देख ले लिएई अब हमरा कौन शौक है अब चलता चल जबई, तु स निम्मन से रहीए।" जैसे उनके भावोँ को अब शब्द नहीँ मिल रहे हो कि कैसे ज़ाहिर करे कि उनके जिँदगी मे अब कोई कमी ना रह गई, वो हर किसी को अपनी कहानी सुनाना चाहती हैं। वक्त के पन्नों में  उसे लिख देना चाहती हैँ कि सदियोँ यह दास्ताँ सुनाई जाती रहे। अपने सफल ज़िंदगी को खटोली के चार पाँव पर टिका वो अपनी दास्तां सुनाती रही और मैँ सुनता रहा। उनकी झुर्रियाँ जैसे उनके तमगे हो जो हर जीत पर वक्त ने उन्हेँ नवाजा हो। शायद यह मुलाकात उनसे आखिरी हो...कि कल को सरसराती हवा में उनकी यह सादगी कहीँ खो जाएगी उनकी साँसेँ खेतोँ के सुगंध में कहीँ घुल जाएँगी....और आत्मा उन्मुक्त परिंदों सा क्षितिज की ओर उड़ जाएगा.....तब वो याद की जाएँगी कि उन जैसा कोई ख़ुशनसीब ना था, उनके बिना यह परिवार मुमकिन ना था।



(डायरी के पन्नों से)


(अमिनेष आर्यन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र स्नातक‍ प्रथम वर्ष के छात्र हैं। अमिनेष मूलरूप से बिहार के हाजीपुर से सम्बन्ध रखते हैं और जीवन मैग की संपादन समिति के सदस्य हैं।)
Facebook: www.facebook.com/aminesh.aryan

Tuesday 23 September 2014

चलो उपवास करें- अशोक सचान

चलो उपवास करें !
मौसम रहा है बदल बीमारियाँ लगी हैं घेरने
चलो उपवास करें
शरीर हो गया मोटा काया है बेडौल
चलो उपवास करें
मन हो गया कमजोर क्षीण हो गया आत्मबल
चलो उपवास करें
मन हो गया अशुद्ध घुसा बहुत सा मेल
चलो उपवास करें
हुए शक्ति से हीन घर कर गए विकार
चलो उपवास करें
साहसिक निर्णय लेने से डरे बने सपर्पित सत्य
चलो उपवास करें
सत्य का मान नहीं कैसे आग्रह हो सत्य का
चलो उपवास करें
किरपा आ रही नहीं बन नहीं रहे काम
चलो उपवास करें
ईश्वर अल्लाह देवी देवता से है प्यार उपासना
चलो उपवास करें
संकुचन हो गया प्रेम का निज सेवा का भान
चलो उपवास करें!


अशोक सचान बरेली दूरदर्शन के निदेशक तथा एक आई.इ.एस अधिकारी हैं। आपने आई.आई.टी रूड़की से शिक्षा ग्रहण की है तथा साहित्य में गहरी रूचि रखते हैं।

Mangalyaan creates history, ISRO first space agency to succeed in first attempt!

 And we did it! India becomes the first nation to succeed in its maiden voyage to Mars! ISRO's Mars Orbiter Mission Mangalyaan creates history marking India as one of the space superpowers! It took just one-tenth money of a common mars probe & is even cheaper than the budget of Hollywood movie 'Gravity'! ISRO joins the elite group of 3 other space agencies (NASA, RFSA & ESA) to have a mars mission! Now, we can proudly say that China is nowhere in the space race with us. All thanks to the scientists at ISRO - Indian Space Research Organisation!!! A moment of pride for every Indian! & rejoice for every human!
PM Modi says- MoM never disappoints! 
Team Jeevan Mag congratulates ISRO on its grand success. 
 #Proud2BeAnIndian #Mangalyaan

 - Akash Kumar 
  Editor-in-chief 
  JeevanMag.com



बधाई हो भारत- गर्व है की हम भारतीय हैं
आज के दिन को आने वाली सदियाँ हमेशा याद रखेंगी, यह ऐतिहासिक दिन है। हम भाग्यशाली हैं कि हमने अपनी आँखों से इतिहास को बनते देखा है। आज फिर एक बार हम सब भारतवासियों को अपने भारतीय होने पर गर्व महसूस हो रहा हैं। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक नया मोड़ आया है। हमारे वैज्ञानिकों ने साबित कर दिया कि वो दुनिया में किसी से पीछे नहीं है। भारत दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया है जिसने पहली ही बार में इतनी बड़ी सफलता हासिल कर ली। शब्द कम पड़ रहे हैं इसरो के वैज्ञानिकों की तारीफ़ करने के लिए। भारत का मार्स ऑर्बिटर मिशन (MOM) नामक प्रोग्राम पैसठ करोड़ किलोमीटर (650000000 km ) की अपनी अंतरिक्ष यात्रा को पूरा कर के आज मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंच गया। सबसे ख़ास बात यह है कि मात्र 74 मिलियन डॉलर्स (लगभग 4514777000 रुपए) के खर्च में भारत ने इस मिशन को पूरा किया जो औरों की तुलना में बहोत कम है। इस महान कीर्तिमान पर अटल जी का नारा याद आता है- जय जवान , जय किसान, जय विज्ञान।

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी, इसरो का उपग्रह मंगलयान मंगल ग्रह की अंडाकार कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश कर चुका है. ये भारत के अंतरिक्ष शोध में एक कालजयी घटना है. इस अभियान की कामयाबी से भारत ऐसा देश बन गया है जिसने एक ही प्रयास में अपना अभियान पूरा कर लिया. भारत के मंगल अभियान का निर्णायक चरण 24 सितंबर को सुबह यान को धीमा करने के साथ ही शुरू हो गया था.
इस मिशन की सफलता इन्हीं 24 मिनटों पर निर्भर थी, जिस दौरान यान में मौजूद इंजिन को चालू किया गया.इस ऐतिहासिक घटना का गवाह बनने के लिए भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बैंगलोर के इसरो केंद्र में मौजूद रहे.
इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए कहा, " आज इतिहास बना है. हमने लगभग असंभव कर दिखाया है. मैं सभी भारतीयों और इसरो वैज्ञानिकों को मुबारक देता हूं. कम साधनों के बावजूद ये कामयाबी वैज्ञानिकों के पुरुषार्थ के कारण मिली है."


मंगलयान से भारत को क्या फायदा होगा ?

 

मंगल की कक्षा में स्थापित हो जाने के बाद मंगलयान इसके वायुमंडल, खनिजों और संरचना की रिपोर्ट वापस भेजेगा. मंगलयान के साथ पांच उपकरण भेजे गए हैं जो वहां से जांच कर संकेत भेजेंगे. इन उपकरणों का कुल भार 15 किलो है.

1. मीथेन सेंसर - यह मंगल के वातावरण में मीथेन गैस की मात्रा को मापेगा. कहां से मीथेन आ रही है इसका स्रोत भी पता करेगा.

2. थर्मल इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर- यह मंगल की सतह का तापमान पता करेगा. साथ ही तापमान के निकलने का स्रोत पता करेगा. जिससे मंगल के सतह की संरचना और वहां मौजूद खनिज के बारे में पता चलेगा.

3. मार्स कलर कैमरा जो मंगल के फोटो खींच कर भेजेगा.

4. लमेन अल्फा फोटोमीटर - यह मंगल के ऊपरी वातावरण में ड्यूटीरियम तथा हाइड्रोजन की मात्रा मापेगा.

5. मंगल इक्सोस्फेरिक न्यूट्रल संरचना विश्लेषक (MENCA) - यह बाहरी हिस्से में जो कण मिलेगें उसकी जांच करेगा

मंगल के वैज्ञानिक अध्ययन के अलावा यह मिशन इसलिए भी अहम है, क्योंकि यह भारत के लिए दूसरे ग्रहों की जांच करने के सफल अभियानों की शुरुआत करेगा.

।। जय हिन्द ।। जय भारत ।।


अबूज़ैद अंसारी
                                       सह-संपादक
                         जीवनमैग डॉट कॉम

Wednesday 17 September 2014

ग़ज़ल- मुझे उसको बताना है- अबूज़ैद अंसारी

मुहब्बत में जो हारा है 
ग़मों से ख़ूब मारा है 
वो जो ज़िंदा है मर मर के 
उसे जीना सिखाना है 
मुझे उसको बताना है 
कहाँ उसका ठिकाना है 

बहुत से राज़ थे दिल में 
जो दिल में दफ़्न कर डाले 
मिली एक हार ने दिल पर 
 हैं कितने ज़ख्म कर डाले 
उसे जिसने हराया था 
मुझे उसको हराना है 

मुझे उसको बताना है 
कहाँ उसका ठिकाना है 

अभी मैं क्या लिखूंगा इन 
मुहब्बत के फ़सानों को 
ग़मों के दर्द के दिल के 
बे-मतलब टूट जाने को 

अभी मैं बुन रहा हूँ लफ्ज़ 
मुझे क़िस्सा बनाना है 
कहानी जो अधूरी है 
उसे पूरी बनाना है 
मुझे उसको बताना है 
कहाँ उसका ठिकाना है 

 
अबूज़ैद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली में बारहवीं कक्षा के छात्र हैं. आप जीवन मैग के सह-संपादक हैं और नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं.


Monday 8 September 2014

दिल बनारसिया-2- रामनगर की रामलीला- अमिनेष

"दिल बनारसिया" श्रृंखला कि अगली कड़ी में- "रामनगर की रामलीला"

"कइसन घरनी ,केकर घर नेमी चललन रामनगर.."
उक्त पंक्ति बनारसी लहजे की एक नुमाइंदगी भर है जो रामलीला की महत्ता को दर्शाती हैं ...बनारस का दिल लंका मे बसता है...लंका वो जगह है जहाँ काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का सिंहद्वार स्थित है और जहाँ से एक रास्ता गंगा पार रामनगर की हवेली को जाता है। मैंने ताकीद की आख़िर इस जगह को लंका क्यूँ कहा जाता है? यह नाम काशी की उस परंपरा की देन है जिसमें गंगा पार रामनगर को अयोध्या तथा गंगा इस पार इस जगह को रावण की लंका मानकर एक खुले विशाल थियटर के रूप मे प्रयुक्त कर काशी नरेश हर शारदीय नवरात्र के उपलक्ष्य मे रामलीला का आयोजन करवाते थे। वक्त के साथ यह महत्वाकांक्षी आयोजन सिर्फ रामनगर तक ही सिमट गया और लंका नाम लोगो के जेहन मे बस गया। 
 
(अमिनेष आर्यन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र स्नातक‍ प्रथम वर्ष के छात्र हैं। अमिनेष मूलरूप से बिहार के हाजीपुर से सम्बन्ध रखते हैं और जीवन मैग की संपादन समिति के सदस्य हैं।)
Facebook: www.facebook.com/aminesh.aryan




Thursday 4 September 2014

शिक्षक दिवस पर नन्दलाल‬ का संबोधन

शिक्षक दिवस पर एक छात्र नन्दलाल‬ का संबोधन :-

प्रिय पाठकों, आप सब को शिक्षक दिवस ही हार्दिक शुभकामनाएं.
मित्रों, मैं अपनी बात शुरू करने के पूर्व विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास में अहर्निश सेवारत परम-आदरणीय विशाल शिक्षक वर्ग को प्रणाम करता हूँ.
जैसा कि हम सभी जानते हैं, वर्ष 1962 से प्रतिवर्ष महान शिक्षक और दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस 5 सितंबर का दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. हमारे यहाँ शिक्षक दिवस मनाने की परम्परा कोई नई चीज़ नहीं है. सदियों से हम हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते आ रहे हैं. हम जिस महान भारत वर्ष के वासी हैं उसकी संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है- गुरु शिष्य परंपरा. इस परम्परा को निरंतर कायम रखने के उद्देश्य से और समाज निर्माण में शिक्षकों की भूमिका के सम्मान में यह दिवस मनाया जाता है.
डॉ. राधाकृष्णन भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति रहे. वह भारतीय संस्कृति के उद्भट विद्वान, एक महान शिक्षाविद, प्रख्यात दार्शनिक, लोकप्रिय वक्ता होने के साथ-साथ विश्वविख्यात हिन्दू विचारक थे. डॉक्टर राधाकृष्णन ने अपने जीवन के 40 वर्ष एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किए थे. वह एक आदर्श शिक्षक थे. पूरी दुनिया में उन्हें अलौकिक सम्मान प्राप्त था.
मुझे एक दृष्टांत याद आ रहा है. यह उस समय की बात है जब राधाकृष्णन सोवियत संघ में भारत के राजदूत थे. वे स्टालिन से मिलने उनके आवास पहुंचे तो स्टालिन अपने उच्चासन से उतर उन्हें अपने आसन पर बैठाने लगा. राधाकृष्णन के आश्चर्य प्रकट करने पर वह कहने लगा- “इस समय न आप भारत के राजदूत हैं न मैं सोवियत का प्रधान, आप तो विश्व-गुरु हैं, श्रेष्ठ हैं और परम-आदरणीय भी. यह आसन आपको ही शोभा देगी.” स्टालिन के हृदय में 'फिलास्फर-अध्यापक-राजदूत' के प्रति गहरा सम्मान था. ऐसे ही जब वे सोवियत से विदा होने लगे तो तब स्टालिन ने कहा था- “आप पहले व्यक्ति हो, जिसने मेरे साथ एक इंसान के रूप में व्यवहार किया हैं और मुझे अमानव अथवा दैत्य नहीं समझा है। आपके जाने से मैं दुख का अनुभव कर रहा हूँ. मैं चाहता हूँ कि आप दीर्घायु हो. मैं ज़्यादा नहीं जीना चाहता हूँ.” इस समय स्टालिन की आँखों में नमी थी. फिर छह माह बाद ही स्टालिन की मृत्यु हो गई. साथियों, हमारे शास्त्र कहते हैं- राजा की पूजा सिर्फ उसके राज्य में होती है किन्तु विद्वान और गुरुजन समस्त लोकों में पूजे जाते हैं.
हमारा दर्शन है-
गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मैः श्री गुरुवेः नमः।।
अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश तथा साक्षात् ईश्वर समान गुरु को मेरा प्रणाम. हमारी संस्कृति में गुरु का स्थान ईश्वर से भी बड़ा माना गया है. भगवान राम और कृष्ण ने स्वयं गुरु की अपार सेवा की.
कबीर कहते हैं –
गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागु पाँव ।
बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो मिलाय ।।
गुरु मनुष्य रूप में नारायण ही हैं. गुरु का अर्थ ही है विराट. जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए उसे ही गुरु कहा गया है. हिन्दू संस्कृति में गुरु के बिना ज्ञान अधूरा माना गया है. गुरु की सेवा से ज्ञान, ज्ञान से मोक्ष और मोक्ष में परमानंद की प्राप्ति होती है. अतः गुरु को जीवन रूपी भवसागर का खेवनहार कहा गया है. गुरु-शिष्य के श्रेष्ठतम संबंध में प्रेम के सभी रूपों प्यार, स्नेह, श्रद्धा, मित्रता और भक्ति की अभिव्यक्ति होती है. भला गुरु निजामुद्दीन औलिया और शिष्य अमीर खुसरो के प्रेम को भला कौन भूल सकता है. उस्ताद के महा निर्वाण पर शागिर्द ने कहा -
गोरी सोवे सेज पर मुख पर डारे केस।
चल खुसरो घर आपने सांझ भई चहुं देस।।
और अपने प्राण भी त्याग दिए. गुरु शिष्य के चरम प्रेम में स्वार्थ का कहीं स्थान ही नहीं. वहां समर्पण होता है. एकलव्य ने गुरु द्रोण को अंगूठा दान दे दिया था. ऐसे ही एक बार सिकंदर अपने गुरु अरस्तु के साथ कहीं जा रहे थे. रास्ते में एक संकरी किन्तु तेज नदी बह रही थी. अरस्तु के लाख मन करने पर भी वह उन्हें आगे न जाने देकर नदी में स्वयं आगे चला ताकि वह डूब भी जाये तो उसके गुरु बच जायेंगे और उसके जैसे और भी योग्य शिष्य गढ़ लेंगे.
एक वैज्ञानिक एक यंत्र बनाता है, एक अभियंता भवन, पुल, मशीन और कंप्यूटर बनाता है , ऐसे ही एक कलाकार अपनी कृति रचता है किन्तु एक शिक्षक एक इंसान गढ़ता है जो अलग-अलग दायित्वों में बाकी का सारा संसार गढ़ता है. सुकरात के पिता शिल्पकार थे और माता दाई. वह दोनों बनना चाहते थे लिहाजा अध्यापक बन गए ताकि वह अपने शिष्य को इस दुनियादारी में प्रवेश करा सकें और उनमें एक उत्तम नागरिक भी गढ़ सकें. प्रत्येक सफल व्यक्ति के पीछे किसी गुरु की कड़ी मेहनत व प्रेरणा होती है. मानव समाज में उनका स्थान सर्वोपरि और सदैव पूजनीय है. अब्राहम लिंकन द्वारा अपने पुत्र के शिक्षक को लिख पत्र को भला कौन भूल सकता है.
मित्रों, हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी कहते हैं- क्या आपने कभी सोचा है कि भिक्षुक हमेशा मंदिर के बाहर ही क्यों खड़े रहते हैं, किसी सिनेमा हॉल या फाइव-स्टार होटल के बाहर क्यों नहीं? क्योंकि वे जानते हैं कि जो लोग मंदिर में पूजा करने को आते हैं, वे उनके साथ दयापूर्ण व्यवहार करेंगे. ठीक इसी तरह भारत के भविष्य को लेकर जब मेरे मन में विचार कौंधता है तब मैं एक भिक्षुक की भांति शिक्षक समुदाय के द्वार पर खड़ा हो जाता हूं. शिक्षक ज्ञान का मंदिर होता है और ज्ञानदान की अपार क्षमता उसमें होती है. शिक्षक ही भारत के उज्ज्वल भविष्य का आधार हैं.
किन्तु यह अत्यंत दुखद है कि आज आधुनिकता की सह में बदलते समाज में शिक्षकों का भी नैतिक अवमूल्यन हुआ है. वे मानवीय कम और व्यावसायिक अधिक हो गए हैं. शिक्षा तो पूर्णतः व्यवसाय बन चुकी है तथापि आज भी शिक्षकों में ही सर्वाधिक समाज-हित-चिंतन शेष है. यदि एक शिक्षक अपने शिष्य को डांटता या पीटता भी है तो इसमें शिष्य का भला और उसके प्रति गुरु का स्नेह ही छिपा होता है. इसलिए यह दिन सिर्फ शिक्षकों को सम्मानित करने का ही दिन नहीं है, यह उन्हें उनकी महान परंपरा और कर्तव्यों को स्मरण कराने का भी दिन है. उन्हें यह याद दिलाने का दिन है कि वही एक सामाजिक रूप से स्वस्थ समाज के निर्माता और पोषक हैं.
पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम कहते हैं कि यदि सभी माता पिता और शिक्षक अपने-अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करें तभी भारत से भ्रष्टाचार सहित तमाम बुराइयों का समूल विनाश संभव हो सकेगा. हमें उनके कथन को अपने जीवन आचरण में ग्रहण करने से कोई गुरेज नहीं होना चाहिए.
अतः, हे ! इस पवित्र भूमि के वर्तमान और भविष्य के महान माताओं, पिताओं और शिक्षकों ! आपसे मेरा विनम्र निवेदन है कि आप सब कलाम जी की कही इन बातों का अनुकरण करें. अपना-अपना काम ईमानदारी और सच्ची निष्ठा से करें. इससे हम सब का भला होगा. यकीन मानिए शीघ्र ही भारत पुनः जगत-गुरु के आसन पर विराजमान होगा.
अंत में पुनः इस पावन अवसर पर सभी साथियों को शिक्षक दिवस की हार्दिक बधाइयाँ और देश विदेश के सभी शिक्षक-शिक्षिकाओं को मेरा सादर प्रणाम !
धन्यवाद !

आपका सह्रदय
--नंदलाल मिश्रा
प्रबंध संपादक
जीवन मग

Wednesday 3 September 2014

लालूजी(कार्टून)- विख्यात बड़बड़िया

जीवन मैग अंक ६ से उद्धृत




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Tuesday 2 September 2014

Club Activities June-July 2014


From Jeevan Mag 6

जम कर बरसो प्यारे बादल- अबूज़ैद अंसारी

कलियाँ फ़ूटे फले फसल 
ख़ुशी से किसान चलायें हल
तुम बरसाओ ऐसा जल 
ना बहे किसी का करुणा जल 
चिड़िया फिर चहचहाने लगें 
कलियाँ फिर लहलहाने लगें 
हर ओर शांति हो हर पल 
जान कर हर कोई जाए मचल 
आने वाला सुखद है कल 
जम कर बरसो प्यारे बादल 
तुम हो कितने न्यारे बादल

अबूज़ैद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली में बारहवीं कक्षा के छात्र हैं. आप जीवन मैग के सह-संपादक हैं और नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं.

Monday 1 September 2014

ग़ज़ल- कुछ राज़ जो मेरे दिल में हैं- अबूज़ैद अंसारी

कुछ राज़ जो मेरे दिल में हैं
दिल में ही दफ़न हो जाएंगे 
कोई बात जो उनसे थी कहनी 
अल्फ़ाज़ नहीं बन पाएंगे 
उस रात बहुत मैं रोया था 
जब नज़रें उन्होने फेरीं थी 
उम्मीद नहीं थी उनसे ये 
वो ऐसे मुझे ठुकराएंगे 

इज़हार-ए-मुहब्बत करने को 
वो मेरी खता क्यों मान रहे 
वो हाथ मेरा ग़र थामेंगे 
हम दूर, बहुत दूर जाएंगे 

मैं रेत के उभरे टीलों सा 
वो तेज़ हवाओं का झोंका 
वो पास मेरे जब गुज़रेगा 
हम कुछ तो बिखर से जाएंगे 

कुछ राज़ जो मेरे दिल में हैं
दिल में ही दफ़न हो जाएंगे 
कोई बात जो उनसे थी कहनी 
अल्फ़ाज़ नहीं बन पाएंगे 

कहीं भी मैं चला जाऊं 
या कश्ती में या वीरां में 
शब होगी जहाँ मेरी 
वो मुझको याद आएंगे 
अबूज़ैद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली में बारहवीं कक्षा के छात्र हैं. आप जीवन मैग के सह-संपादक हैं और नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं.

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