JeevanMag.com

About Us

s468

कथा‍-कहानी

यह भी जानो!

  • 7 Startling Facts

  • Happy New Year Wish in 15 languages

  • Intresting facts- Gyanesh kumar

  • Amazing & Intresting facts- Gyanesh kumar

  • Amazing facts- Gyanesh Kumar

  • हमें गर्व है की हम भारतीय हैं

  • अनमोल वचन

    Tuesday, 26 May 2015

    ई हs विज्ञापन के दुनिया, तू देख बबुआ

    सुप्रीम कोर्ट ने जनता के पैसे से मीडिया में नेताओं के फोटो वाले विज्ञापन प्रसारित व प्रकाशित करने पर रोक लगा दी है. हालाँकि मोदी जी को इसकी छूट होगी. वह देश के प्रधानमंत्री हैं. प्रतियोगिता-परीक्षा के लिए सामान्य ज्ञान में वृद्धि हेतु जानना लाभप्रद रहेगा कि यह छूट राष्ट्रपति और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को भी प्राप्त होगी.

    कुछ मुख्यमंत्रियों को इस नियम से आपत्ति है. अरविंद इनमें नहीं हैं. उनके विज्ञापन एफ़एम पर आते हैं. रेडियो में तस्वीर की झंझट होती ही कहाँ है. विज्ञापन जितना लम्बा चाहो बजवा लो. वैसे, आजकल के चौबीस गुना सात एफएम चैनलों से केवल विज्ञापनों के ही तो कार्यक्रम आते हैं. हाँ, बीच-बीच में ब्रेक के तौर पर कुछ गाने बजा दिए जाते हैं. शेष समय मुर्गा-गधा-उल्लू इत्यादि बनाने में व्यतीत होता है. खैर, एफएम चैनलों पर असंतुष्ट नेताओं के लिए अपार संभावनाएं हैं.

    150513101923_government_ad_624x351_bbc


    अपने इलाके में एक पहुंचा हुआ रीमिक्सिया कलाकार है. पुराने गीतों में नए शब्द भरकर नित नव गीत रचते-गाते रहता है. लेकिन है वह समय के साथ चलने वाला. आज सुबह से ही तान छेड़ रखा है, “ई हs विज्ञापन के दुनिया, तू देख बबुआ.”

    ऑटो- मेट्रो, अख़बार-टीवी, सिनेमा-खेल, कप-प्लेट, घर-दीवार, टी-शर्ट वगैरह... सर्वत्र विज्ञापन का ही राज है. जहाँ देखो वहीं विज्ञापन. थोड़ी सी स्पेस दिखी नहीं कि विज्ञापन ठूंस दिया. उसका सुझाव था, आप में योगेन्द्र- प्रशांत आदि के ब्रेक-अप से उत्पन्न रिक्त स्थान को भी विज्ञापनों से ही भर दिया जाए. संभव है, इससे पार्टी का अंतः कलह और क्लेश मिट जाए. विज्ञापन ‘नाशै रोग हरे सब पीरा’ है.

    विज्ञापन के लिए ब्रेक चाहिए. ब्रेक का जीवन में बड़ा महत्व है. तथाकथित छोटे से ब्रेक के बाद ही तो बड़ी खबर आती है. बिना ब्रेक गिरने का डर रहता है, बाज़ार में गिरने का. ब्रेक के लिए ब्रेकर चाहिए, रोकड़ चाहिए. और इन सब के लिए कोई प्रायोजक चाहिए यानी स्पोंसर.

    इस दौर में हर व्यक्ति, घटना, वस्तु, स्थान इत्यादि प्रायोजित हैं. सबका अपना-अपना स्पोंसर है. सब की स्पोंसरशिप होती है. पार्टी, नेता, जनता, वोटर सब स्पोंसर्ड हैं. स्पोंसरशिप ख़त्म, पार्टी चेंज. आम चुनाव एक लोकप्रिय विज्ञापन-प्रचार स्पर्धा है. जो विज्ञापन कला में निपुण होगा उसकी जीत होगी.
    07sld1

    आज हर घटना प्रायोजित है. कॉलेज फंक्शन से लेकर विश्व भ्रमण तक के स्पोंसर हैं. हमारा आपका जीवन भी प्रायोजित है. जन्म, मृत्यु, विवाह इत्यादि सभी के प्रायोजक हैं. दहेज़ भी एक तरह की स्पोंसरशिप ही है. आज प्रेम भी स्पोंसर्ड परिघटना है. बिना प्रायोजक प्रेम असंभव है. प्रेम के लिए बज़ट चाहिए. पैसा खत्म, प्यार ख़त्म. जेब खाली कि बाय-बाय. यहाँ प्रेम की पराजय है. नगद नारायण की जय है.

    एक तरफ दहेज़, हत्या, आतंकवाद, दंगा तो दूसरी ओर पद, प्रतिष्ठा, पुरस्कार सब प्रायोजित हैं. सब सौदा है. सबके स्पोंसर हैं. बीते दिनों नीतीश की सभा में दस-बारह साल के लड़के का प्रतिभाशाली भाषण हुआ. लोग शक कर रहे हैं, कहीं वह भी स्पोंसर्ड तो नहीं? क्या करियेगा, कुछ तो लोग करेंगे, लोगों का काम है शक करना- गायक गा रहा है.

    और खेल? खेल तो पूर्णतः विज्ञापन का ही एक उपक्रम है. मसलन क्रिकेट की प्रत्येक गेंद, रन, ओवर, विकेट, टीम इत्यादि के स्पोंसर होते हैं. अब तो हार-जीत भी स्पोंसर्ड आने लगी है.

    download
    विद्वत जनों के अनुसार विज्ञापन ने मीडिया को खोखला कर दिया है. रेडियो, टीवी और अख़बार के बाद अब सोशल मीडिया भी इसकी गिरफ़्त में है. यहाँ अभी तक तो सब अपना ही विज्ञापन करने में व्यस्त हैं. लेकिन वह रात दूर नहीं जब अधिक फैन फोलोविंग वाले लोग अपनी-अपनी वाल पर मल्टी-नेशनल कंपनियों के विज्ञापन का पोस्ट डालना शुरू कर दें. कवि-कलाकार आदि अपने शो की टिकट बिक्री हेतु इस युक्ति का सदुपयोग कर ही रहे हैं. वहीं फेसबुक पोस्ट के मध्य में ब्रेक डालने पर विचार-मंथन जारी है. इन ब्रेक को विज्ञापन से भरा जा सकता है. परंपरानुसार किसी राजनेता से ही इस परियोजना के उद्घाटन की प्रतीक्षा है.


    विज्ञापन एक कला है. फेंकने की कला. समेटने की कला. इसमें जीत है, पैसा है. इसमें सभी अलंकार हैं, रस हैं. छंद, लय, तुक, गति-यति, सौन्दर्य सब है. इसमें साहित्य है. समाज है. किन्तु विज्ञापन है तो मेकअप ही. बिना छपे- बिना दिखे मेकअप का क्या फ़ायदा? रीमिक्सिया बाबू गा रहा है- ई हs विज्ञापन के दुनिया तू देख बबुआ... एकाएक लय-सुर पलटता है और वह संजीदगी से गाता आगे निकल जाता है- ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है...  
    Picture1
    नन्दलाल मिश्र जीवन मैग के प्रबंध संपादक हैं। सम्प्रति आप दिल्ली विश्वविद्यालय के संकुल नवप्रवर्तन केन्द्र में मानविकी स्नातक के छात्र तथा दिल्ली विश्वविद्यालय सामुदायिक रेडियो के कार्यक्रम समन्वयक है। आप बिहार के समस्तीपुर से ताल्लुक रखते हैं। 

    1 comment :

    1. blank

      सही कहा आपने, बड़ा विचित्र समय आ गया है।

      ReplyDelete

    Please Share your views about JeevanMag.com

    A series of skype group conversations beetween students from India & Pakistan

    Banner+Mission+Aman
    Proudly sponsored by JeevanMag.com
     
    Copyright © 2016 Jeevan Mag
    Editor-in-chief Akash Kumar Executive Editor Nandlal Mishra Associate Editor AbuZaid Ansari Publisher Blue Thunder Student AssociationShared by WpCoderX
    Blogger Widgets
    Enjoy JeevanMag.com? Like us on Facebook!)