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Monday 24 September 2012

नैतिक शिक्षा के निहितार्थ -3



(अंक 2 से जारी)
---विजय कुमार उपाध्याय, राज्य-स्तरीय साधनसेवी (बिहार शिक्षा परियोजना)





आज हमारे सामाजिक शिक्षा का प्रथम उद्देश्य बच्चों में प्रजातान्त्रिक मूल्यों का विकास माना जाता है. परन्तु, क्या प्रजातंत्र की सारी परिभाषाएं, प्रकार और प्रजातान्त्रिक  प्रक्रियाएं बताने रटाने भर से कभी प्रजातान्त्रिक मूल्यों का विकास हो पायेगा? जबकि हमारे विद्यालय शिक्षा समिति की 'घर-घर घुमाव पंजी बैठकों' को वे जानते हैं. प्रजातान्त्रिक मूल्यों के विकास हेतु केवल प्रजातान्त्रिक प्रक्रिया बताते रहेंगे, तो वो यह याद रखेगा ज़रूर पर समझने एतदर्थ संस्कार निर्माण की प्रक्रिया तभी प्रारंभ होगी जब हमें वे ऐसा करते देखेंगे. बाल संसद का विद्यालय में गठन हम शिक्षकों के स्वयं की इच्छा से नहीं, पूरी प्रजातान्त्रिक प्रक्रिया का पालन करते हुए करना होगा. प्रत्येक माह उसकी बैठक बच्चों को करने दें, उनमें बहस होने दें और नेतृत्व क्षमता के विकास का अवसर दें. आप बस, संसद के स्पीकर की भूमिका में हों! यदि हम स्वयं से बल-संसद के नेताओं (प्रधानमंत्री आदि) का चयन करेंगे, तो उनमे नेतृत्व क्षमता का विकास ही रूक जायेगा और प्रजातंत्र में चाटुकारिता के बल पर शीर्ष तक सरकने का संस्कार पनपेगा. येन-केन-प्रकरेण पद पर पहुँचने की प्रवृति बढती रहेगी. विचारनीय बिंदु है- 'दोषपूर्ण राजनेता दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति का परिणाम है.'

'झूठ बोलना पाप है'- यह रटाने से बच्चा झूठ बोलना बंद नहीं करेगा. पहले यह विचारें कि झूठ बोलना बच्चा सीखता कहाँ से है और वह क्यों झूठ बोलता है. निश्चय ही बच्चा यह सब अपने परिवार, समाज विद्यालय परिवेश से सीखता है. बच्चा प्रताड़ना के डर से झूठ बोलता है. असुरक्षा की भावना केवल उससे झूठ बोलवाती है अपितु उसे आक्रामक भी बनती है. वहीँ, प्रेम सुरक्षा का माहौल केवल बच्चे में झूठ बोलने की प्रवृति को दबाएगा, अपितु शिक्षक-शिक्षार्थी संबंधों में मधुरता भी लायेगा. एक-दुसरे में विश्वास बढेगा, सीखने-सिखाने का बेहतर माहौल बनेगा. विषयगत ज्ञान के अतिरिक्त अन्य नैतिक मूल्यों के विकास का बेहतर अवसर मिलेगा. एक बार विश्वास अर्जित कर लेने पर अन्य नैतिक मूल्यों के बीजारोपण हेतु सारे द्वार खुल जायेंगे.

हम हमेशा यह याद रखें की शिक्षक का व्यक्तित्व व्यवहार बच्चों के लिए आज भी आदर्श है. वे आज भी हमारा अनुकरण करते हैं. अतः हमें अपने को परिवर्धित करते रहना चाहिए. सत्यनिष्ठा,सफाई,सद्भावना उठने-बैठने के तौर तरीके हमारे व्यवहार से वे सीखते रहते हैं (सप्रयास कम, अनायास ज्यादा). एक मजेदार सच्चाई यह है कि जिस विद्यालय के एक शिक्षक किसी तकिया-कलाम का प्रयोग करते हैं, तो उनके वहां पदस्थापित रहने पर केवल विद्यालय के बच्चे, बल्कि उस गाँव की बाद की पीढ़ी में भी वह तकिया-कलाम अनायास आजन्म चलता रहता है. सचमुच, शिक्षक संस्कार निर्माण का मुख्य श्रोत होता है.

आज नैतिक शिक्षा नहीं, मूल्य शिक्षा की बात की जाती है. मूल्य शिक्षा में सत्यनिष्ठा, शिष्टाचार के साथ-साथ प्रजातान्त्रिक मूल्यों की समझ, पर्यावरण संरक्षण के प्रति संवेदना, देश की बहुरंगी संस्कृति सांस्कृतिक विरासत के प्रति सम्मान, लैंगिक समानता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण आदि कई बातें आती हैं. यदि शिक्षक विद्यालय में सहकर्मियों,ग्रामीणों या बच्चों के साथ बात-चीत में भूत-प्रेत की बातें करे, उसकी बातों में लैंगिक पूर्वाग्रह झलके या ऐसी बातों में अपनी सहमति या मौन-समर्थन प्रदान करे तो फिर उपर्युक्त मूल्य बच्चों में कैसे पनपेंगे? अतः हम अपनी बातों में भी सचेत रहें. स्वच्छ आदतों के लिए स्वयं यत्र-तत्र थूकें, हमारे नाखून कटे और कपडे साफ़ हों. बातें बहुत हुई, पर यथा साध्य हम अंतर्मन से प्रयास करें, तो बहुतेरे मानवीय मूल्यों के विकास की ओर अग्रसर हो सकते हैं. निष्कर्षतः----
  'शिक्षण याददाश्त नहीं व्यवहार का प्रतिफलन है.'

 "बच्चों का शिक्षा सम्बन्धी अनुभव उनके मनोवैज्ञानिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है." - वायगाटस्की

A series of skype group conversations beetween students from India & Pakistan

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