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Tuesday 7 April 2015

तराना-ए-विदाई : जामिया मिल्लिया इस्लामिया

जामिया स्कूल Jamia Schools
लिखने को आज ग़ज़ल ये
मेरे हाथ थरथराए 
कहने की बारी अलविदा 
आँखों में आंसू आये 

हम क़ाफ़िला थे अब तक 
क़तरा क़तरा थे समुन्दर 
अब टूट कर बिखर कर 
कल किस तरफ़ को जाएँ  

उस्तादों के हैं एहसान जो 
हम ना चुका सकेंगे 
ग़लती भी हो हमारी तो 
देते हैं ये दुआएंं 

है जामिया का आँगन 
मेरी माँ की गोद जैसा 
बचपन के दिन गुज़ारे 
और दोस्त भी बनाए 

रौशन शमा जो इल्म की 
इस जामिया से मिली 
इसको जलाये रखना 
ईमान-ए-हक़ बनाए 

है जामिया की अज़मत 
कंधों पे अब तुम्हारे 
आगे बढ़ोगे अब तुम 
रखना इसे बनाए 

मायूस कितना दिल है 
कि हम दूर हो रहें हैं 
ताउम्र हम रखेंगे 
यूँ दिल से दिल मिलाये 

बहुत खामोश रहता है 
मगर नादाँ नही है "ज़ैद" 
उसे आवाज़ बनना है 
जिसे सदियों सुना जाए 

अबूज़ैद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली में बारहवीं कक्षा के छात्र हैं. आप जीवन मैग के सह-संपादक हैं और नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं.

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