आज हमारे देश में,
रिश्वत बन गया है जीवन का दस्तूर,
अधिकार की सब करते बात,
कर्तव्य नहीं मंजूर।
पसरा है आतंकवाद।
बचें नहीं हैं,
प्रचारक सुख -शान्ति के,
बचें नहीं हैं,
निवारक क्लेश के,
बचें हैं अगर कोई,
तो वे हैँ रिश्वतखोर अफसर,
जो चलते हैं बड़ी बड़ी कारों पर,
बचे हैं अगर कोई,
तो वे हैं घोटालेबाज नेता,
जो हैं देश की शान्ति के क्रेता और विक्रेता।
आम आदमी झेल रहा है,
महंगाई की मार,
आतंकवाद से जुड़ गये हैं,
हमारे देश के तार।
रिश्वत न लेने का पैगाम,
पर बिना रिश्वत होता नही है,
कोई भी काम।
करे तो क्या करे आम आदमी ?
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s/o विजय कुमार उपाध्याय , डा. शम्भू शरण के पश्चिम, बेलबनवा,मोतिहारी-845401,बिहार
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akash@jeevanmag.tk
बहुत सुन्दर लिखा है आकाश....
ReplyDeleteइतनी छोटी सी उम्र में इतने परिपक्व विचार....
बहुत खूब....
ढेर सारी शुभकामनाएं आपको.
अनु
dhanyavaad anu ji
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