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jeevan mag
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देश में राष्ट्रपति चुनाव की बारी है
देखना हैं किसका पलड़ा भारी है.
ये चुनाव पाँच साल बाद आते हैं,
सब का ध्यान खींच लाते हैं.
चुनाव को लेकर बाजार गर्म है,
पर बडी पार्टियों के मिजाज नर्म हैं.
सभी वोटरों की अपनी माँगें हैं,
वरना पैर खींचने में सब आगे हैं.
दीदी ने आर्थिक पैकेज की माँग की हैं,
सब का ध्यान अपनी ओर खींच ली हैं.
नीतिश सरकार को चाहिए विशेष राज्य का दर्जा,
नहीं तो चुनाव में फाड़ देंगें पर्चा.
अखिलेश सरकार की भी अपनी मागें हैं,
और ये तो चुनावी भूमिका में सबसे आगे हैं.
इस देश में छोटे राज्यों की चुनाव में भूमिका छोटी है,
इस लिए मागों को लेकर बडे राज्यों पर ध्यान अटकी है.
किसी पार्टी के पास न स्पष्ट बहुमत है,
देखना हैं कौन किस पर करता रहमत है.
कोई चाहता है राष्ट्रपति राजनीतिक हो,
कोई चाहता है राष्ट्रपति गैर राजनीतिक हो.
राष्ट्रपति इस देश का प्रथम नागरिक होता हैं,
इस लिए हर कोई इस पर अपना विचार रखने में आगे होता हैं.
सर्वसम्मति से किसी एक को मिलेगा यह आसन ,
तो फिर शीले ने कैसे कह दिया लोकतंत्र है मूर्खों का शासन.
यह कैसी है विडम्बना ?
जो इतना खींचा तानी के बाद राष्ट्रपति बनता है,
उसे भी सर्वाधिकार नहीं मिल पाता हैं.
राष्ट्रपति पद के लिए लोकसभा,राज्यसभा
और सभी राज्यों के विधानसभा सदस्य वोट करते हैं,
और अपना पसंदीदा राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं.
कोई कलाम को,कोई गाँधी को
तो कोई एंटनी या प्रणव दा को राष्ट्रपति बनाना चाहता हैं,
पर यह सपना आम आदमी से संभव नहीं हो पाता हैं.
देखना है कौन सभी वोटरों को अपनी ओर कर पाता हैं,
और इस पद को हासिल कर दिखाता हैं...............?
बस इंतजार चंद दिनों का .......
कुलदीप कुमार शांतिनिकेतन जुबली स्कूल,मोतिहारी { वर्ग-10}..
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देश में राष्ट्रपति चुनाव की बारी है
देखना हैं किसका पलड़ा भारी है.
ये चुनाव पाँच साल बाद आते हैं,
सब का ध्यान खींच लाते हैं.
चुनाव को लेकर बाजार गर्म है,
पर बडी पार्टियों के मिजाज नर्म हैं.
सभी वोटरों की अपनी माँगें हैं,
वरना पैर खींचने में सब आगे हैं.
दीदी ने आर्थिक पैकेज की माँग की हैं,
सब का ध्यान अपनी ओर खींच ली हैं.
नीतिश सरकार को चाहिए विशेष राज्य का दर्जा,
नहीं तो चुनाव में फाड़ देंगें पर्चा.
अखिलेश सरकार की भी अपनी मागें हैं,
और ये तो चुनावी भूमिका में सबसे आगे हैं.
इस देश में छोटे राज्यों की चुनाव में भूमिका छोटी है,
इस लिए मागों को लेकर बडे राज्यों पर ध्यान अटकी है.
किसी पार्टी के पास न स्पष्ट बहुमत है,
देखना हैं कौन किस पर करता रहमत है.
कोई चाहता है राष्ट्रपति राजनीतिक हो,
कोई चाहता है राष्ट्रपति गैर राजनीतिक हो.
राष्ट्रपति इस देश का प्रथम नागरिक होता हैं,
इस लिए हर कोई इस पर अपना विचार रखने में आगे होता हैं.
सर्वसम्मति से किसी एक को मिलेगा यह आसन ,
तो फिर शीले ने कैसे कह दिया लोकतंत्र है मूर्खों का शासन.
यह कैसी है विडम्बना ?
जो इतना खींचा तानी के बाद राष्ट्रपति बनता है,
उसे भी सर्वाधिकार नहीं मिल पाता हैं.
राष्ट्रपति पद के लिए लोकसभा,राज्यसभा
और सभी राज्यों के विधानसभा सदस्य वोट करते हैं,
और अपना पसंदीदा राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं.
कोई कलाम को,कोई गाँधी को
तो कोई एंटनी या प्रणव दा को राष्ट्रपति बनाना चाहता हैं,
पर यह सपना आम आदमी से संभव नहीं हो पाता हैं.
देखना है कौन सभी वोटरों को अपनी ओर कर पाता हैं,
और इस पद को हासिल कर दिखाता हैं...............?
बस इंतजार चंद दिनों का .......
कुलदीप कुमार शांतिनिकेतन जुबली स्कूल,मोतिहारी { वर्ग-10}..
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