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Tuesday 1 April 2014

घटकैती (व्यंग्य)- संतोष


 
बेटी की शादी के बाद चाचा जी को पता चल गया था की बेटी के पिता को कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं| उन्होंने तय किया की अपने बेटे की शादी में बेटी वाले पक्ष को तनिक भी परेशानी महसूस नहीं होने देंगे| वह शुभ घड़ी भी ही गई| लड़का ऊँचे खानदान का था और उसमे भी बैंक की सरकारी नौकरी इसलिए आगंतुकों की लाइन लगी रहती थी| आख़िरकार एक लड़की की तस्वीर पसंद की गई| मेरा बैठक तो माने दूसरों के विवाह तय करने के लिए ही बन था| वहीं एक बार फिर कुर्सियां मंगवाई गई, नया बेडसीट बिछाया गया, शर्बत फिर चाय और बिस्कुट आने के साथ ही माहौल गंभीर हो गया| तपाक से लड़की के पिता के बगल में बैठे दिन में सज्जन दिखने वाले पुरुष ने बिस्कुट खाते हुए कहासमधी जी तो अब मुद्रा की बात हो जाय’’| चाचा जी ने कहा की मुझे एक रूपया भी दहेज़ नहीं चहिये| अगर आपको फिर भी देना ही है तो, 11 रूपया, एक जनऊ, और एक टुक सुपारी दे दीजिये मै प्रेम से रख लूँगा| सभी लोग अवाक् हो कर चाचा को देखते ही रह गए| पड़ोस के लोगों को डर लग रहा था कि बाराती के लिए भी कहीं मना कर दे, कितने दिनों से अरमान लगा रखा है| बेटी वालों को लग रहा था कि किसी ने उन्हें क्लोरोमिंट कैंडी खिला दी है| उन्हें कुछ समझ में नहीं रहा था| लगभग दस मिनट तक सब खामोश बने रहे| एक लड़का आया और खाली गिलास और प्लेट लेकर चला गया| थोड़ा आगे जाते ही उसने प्लेट में बचे सारे बिस्कुट पॉकेट में डाल लिए| अचानक लड़की के पिता ने कहासमधी जी घर पे गोरु को बछड़ा हुआ है, जल्दी जाना पड़ेगा सो अब आज्ञा दीजिये’’ मै फिर एक दो दिन में आकर आगे की बात फाइनल कर लूँगा| चाचा जी ने ख़ुशीख़ुशी सबको विदा किया|
दो महीने बाद एक फ़ोन कर चाचा ने देरी का कारण जनना चाहा| लड़की के पिता ने कहा जरुर आपके लड़के में कोई खराबी होगी, नहीं तो कौन आजकल 11रूपया और जनऊ, सुपारी में शादी करता है| मैंने अपनी बेटी की शादी कर दी चार लाख रुपये और एक मोटर साईकल दिया है अपने दामाद को| चाचा तो अब बन गए चौधरी| कुछ दिन बाद नए लोग आये  तो चाचा ने कहा 6 लाख रूपया और और एक अपाची लूँगा |अबकी बार ख़ुशीख़ुशी भैया की शादी हो गई|
अचानक मुझे ख्याल आया की इनोवेशन के लिए अभी हमारा समाज तैयार नहीं हुआ है| ये केवल CLUSTER INNOVATION CENTRE में ही संभव है||         

 
- संतोष
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र एवं चर्चित व्यंग्यकार हैं |)





साभार‍- जीवन मैग फ़रवरी मार्च २०१४ अंक
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