महंगाई
रात कटेगी कैसे बोलो,
घर में रोटी दाल नहीं।
दुध के खातिर बालक रोये,
सिर के उपर पाल नहीं।
जय-जय भारत भाग्य विधाता,
बीस रुपये किलो है आटा ।
सरसो तेल का भाव न पूछो ,
हल्दी-धनिया से टुटा नाता ।
मिर्च-शक्कर सब कुछ छुटा,
आलू-प्याज का हाल वहीं.
रात कटेगी कैसे बोलो,
घर में रोटी दाल नहीं।
दुध के खातिर बालक रोये,
सिर के उपर पाल नहीं।
रोती मोहन की घरवाली,
चुल्हा चौका सबकुछ खाली ।
बीती होली पेट बाँध के,
आने वाली है दिवाली ।
क्षुधा की आग बुझाये कैसे,
हाथ तो है रोजगार नहीं ॥
रात कटेगी कैसे बोलो,
घर में रोटी दाल नहीं।
दुध के खातिर बालक रोये,
सिर के उपर पाल नहीं।
राकेश को मिला वनवास,
बिटिया की मांग है उदास।
बीती चालीस आया साठ,
कभी न पाया सुख की साँस ।
लालकिला पे लाली न देखा,
दिल में है मलाल यहीं ॥
रात कटेगी कैसे बोलो,
घर में रोटी दाल नहीं।
दुध के खातिर बालक रोये,
सिर के उपर पाल नहीं।
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