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Thursday, 15 March 2018

मुल्क़ किस दौर में (नज़्म) -अबुज़ैद अंसारी

बेगुनाहों के सीनों में धँसे खंजर देखूँ 
हाय अफ़सोस ! कब तक यही मंज़र देखूं 
गंगा बहती है जहाँ उसकी ज़मीं पर कब तक 
ख़ून के बहते हुए और कितने समुंदर देखूँ 

मुल्क़ जिसमें कभी राधा कभी राम हुए 
जहाँ गौतम जहाँ नानक ओ निजाम हुए 
जहाँ गाँधी जहाँ इक़बाल ओ कलाम हुए 
जिसकी मिट्टी पे ख़ुदा के इनआम हुए 

आज उस पर ही नफ़रत के घने साये हैं 
हाय हम मुल्क़ को किस दौर में ले आये हैं 

-अबुज़ैद अंसारी



Abuzaid Ansari at M.A Ansari auditorium, JMI


अबुज़ैद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया (नई दिल्ली) में जनसंचार मीडिया / पत्रकारिता के छात्र हैं। आप जीवनमैग के सह -संपादक होने के साथ-साथ भारतीय विज्ञान कांग्रेस (कोलकाता), और  नेशनल एसोसिएशन फॉर मीडिया लिटरेसी एजुकेशन (न्यूयॉर्क) के सदस्य हैं। और नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं।





A series of skype group conversations beetween students from India & Pakistan

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