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    Sunday, 23 September 2012

    नैतिक शिक्षा के निहितार्थ -2

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    ---विजय कुमार उपाध्याय, राज्य-स्तरीय साधनसेवी (बिहार शिक्षा परियोजना)

    ***इस पोस्ट का प्रथम भाग पढने के लिए यहाँ क्लिक करें ***

    SPIRITUAL_VALUE_EDUCATION


    'बालकेंद्रित शिक्षा'- इस अल्फाज़ की जाप हमारे प्रशिक्षणों में खूब होती है. परन्तु, हमारे व्यवहार में यह परिलक्षित नहीं हो पा रहा है. विद्यालय में शिक्षण कार्य का आरम्भ चेतना-सत्र से होता है. चेतना-सत्र का सञ्चालन शिक्षार्थी द्वारा किया जाये- यह निर्णय शासन द्वारा वर्षों पूर्व लिया गया था. पर अब भी तक़रीबन सभी विद्यालयों में यह कार्य शिक्षकों द्वारा ही होता है (प्रार्थना गाने के अतिरिक्त). अमूमन आज भी चेतना सत्र सञ्चालन में हम शिक्षकों की मुख्य सहयोगी-संगिनी छड़ी, की भारी भूमिका होती है. हमारे जिले के अनेक विद्यालयों में संविधान की प्रस्तावना का पाठ होता है, कड़ी धुप में भी. इस स्थिति में, शिक्षक स्वयं पेड़, छत या छज्जे की छांव में छुपे होते हैं. कोमल त्वचा वाले नौनिहालों की यह मजाल नहीं की निकल दें अपनी जुबान से ये बात- 'हमें भी धुप लग रही है, सर'! उसे यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है; हाँ, उसे संविधान की प्रस्तावना में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार रटना ज़रूर है. बहुधा संविधान की प्रस्तावना समझाई गयी नहीं होती. यदि समझाई जाये और व्यवहृत हो, तो ये ज्यादा बुरा है. क्योंकि,इससे हम बच्चों में दोहरे चरित्र की नींव डाल रहे होते हैं कि कथनी-करनी का फर्क हम शिक्षकों से सीखो.
    यदि आज हम उसे अभिव्यक्ति कि आजादी दे देते हैं, उसकी भावनाओं का आदर करते हैं; तो यह उसके संस्कार में ढल जायेगा. निश्चित रूप से, वह बड़ा होकर ही नहीं, अभी से ही दूसरों की भावना का आदर करने लगेगा. हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता शिक्षण क्रम में रही कठिनाइयों से अवगत होने का अवसर देगी. साथ ही, उसमें रचनात्मकता के विकास की सम्भावना को भी बढ़ाएगी.

    हमारे प्रत्येक पाठ्यपुस्तक के 'आमुख पृष्ठ' पर यह बात ढ़ृढ़ता से दर्ज की गयी है कि N.C.F 2005 एवं तदनुरूप B.C.F 2008 , छात्र द्वारा सीखने  का अर्थ रटना नहीं, समझना मानता है, समझे अनुरूप व्यवहार करना मानता है. पर, यह वांछित व्यवहार वह तभी कर सकेगा, जब विद्यालय परिसर में वह ऐसा अनुभूत कर सकेगा. हमें समझना होगा कि-
    'शिक्षा का सरोकार, ख़ास कर  मूल्य शिक्षा के मामले में स्वीकृत पाठ से अधिक शिक्षण प्रक्रिया से है!'

    बच्चा विद्यालय से उम्र की उस अवधि में जुड़ता है जिसे सीखने के लिए सर्वोत्तम माना जाता है. बच्चों के लिए उसकी जिन्दगी में पारिवारिक सदस्यों के बाद बिलकुल अनजान व्यक्ति शिक्षक का प्रवेश होता है. आज भी शिक्षक बच्चों की नजरों में नायक ही होते हैं. परन्तु, जब उनका नायक उनके बीच तम्बाकू खायेगा, धुम्रपान करेगा, तब वे शिक्षक की नक़ल नहीं भी कर पायें, तो कम-से-कम उसकी आस तो पाल ही लेंगे. वह हमारे प्रत्येक व्यवहार को आदर्श मान लेंगे, की उस आदर्श को जो हम रटाएंगे,पढ़ाएंगे. इस प्रकार, विद्यालय अवधि में जो व्यवहार हमारे द्वारा किया जायेगा, मूल्य शिक्षा के बीजारोपण की कामना हम उसी से करेंगे, की बताई गयी बात या पठित पाठ से
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     (जारी)....लेख का अगला अंक पढने के लिए आते रहें हमारी साईट  www.jeevanmag.tk पर....

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