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Tuesday 18 September 2012

रु-ब-रु - डॉ. श्रीकांत प्रसून (साक्षात्कार)- आकाश कुमार



आकाश कुमार
साक्षात्कार..........

चम्पारण के रत्न,मानवतावादी साहित्यकार डा. श्रीकान्त पान्डेय 'प्रसून' उन चुनिन्दा लेखकों में से हैं जो हिन्दी,संस्कृत व अंग्रेजी तीनों भाषाओं में समान अधिकार के साथ अपने ह्रदय के भावों को पन्नों पर उकेरते चले आ रहे है।यहाँ पेश है उनसे जीवन मैग के संपादक आकाश कुमार की बातचीत के प्रमुख अंश..........
Dr. Shrikant Prasoon

Dr. Prasoon


Shrikant Prasoon
Dr. Shrikant Prasoon


आकाश....आपने अपनी गौरवशाली साहित्य यात्रा की शुरुआत कब और कैसे की?

प्रसूनजी...मै क्या जानता हूँ कि यह यात्रा कब शुरु हुई। १९४५ में मेरा जन्म हुआ व १९६० के आस,पास मैने अपने आप को इस रास्ते पर खड़ा पाया। इसी दौरान "मीनू,टीनू" नामक बाल पत्रिका में मेरी प्रथम रचना "बाँट,बाँट कर सबने खाया"नामक कविता को स्थान मिला। इससे मेरे उत्साह में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। और फिर क्या था मै इस पथ का राही बन गया।

आकाश...आपकी पसंदीदा विधा कौन सी है?

प्रसूनजी...यूँ तो मै बहुत सारी विधाओं में लिखता हूँ पर मै मूलतः एक कवि हूँ और काव्य ही मेरी अपनी विधा है।

आकाश....अपनी पुस्तकों के बारे में कुछ बतायें?

प्रसूनजी...मैने कविता,जीवन चरित,धर्म,अध्यात्म,इत्यादि के साथ-साथ कई छात्रोपयोगी पुस्तकें लिखी है जो पुस्तक महल सहित कई अनेक प्रकाशनों से प्रकाशित हो चुकी है। मेरी पुस्तकों में चाण्क्य..रुल द वर्ल्ड, बोलें जय-जय भारती, फोनिक वर्ड पावर, पंचमहाभूत तत्व एंड शरीर, चम्पारण के धरती प्रमुख है।

आकाश....आपकी वह किताब़ जो आपके दिल के सबसे करीब हो?

प्रसूनजी...लेखक की हर किताब़ उसके दिल के करीब़ होती है। मैने जितनी भी पुस्तकें लिखी हैं हर में अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश की है।

आकाश....आपके पसंदीदा साहित्यकार कौन है?

प्रसूनजी...मैने कईयों को पढ़ा और पसंद किया है। हिन्दी व अंग्रेजी के अलावा भी कई भाषाओं की पुस्तकों का अध्ययन किया है। जहाँ तक हिन्दी की बात है तो कबीर,तुलसीदास से लेकर अज्ञेय,नागार्जुन तक सभी मेरे पसंदीदा रहे है।

आकाश....तत्कालीन परिदृश्य में हिन्दी साहित्य के प्रति लोगों के घटते रुझान पर आपका क्या कहना है?

प्रसूनजी...किसी पुस्तक मेले में जाकर तो देखे की हिन्दी के पुस्तकों की कितनी माँग है। यह एक हिन्दी विरोधी षडयंत्र है,इस हल्ले पर सरकार ने अंग्रेजी पुस्तकों को पुस्तकालयों में ठूँस दिया है।

आकाश......युवाओं के लिये कोई संदेश देना चाहेंगे?

प्रसूनजी....युवाओं को चाहिये कि बाह्य को ही सत्य न मानें,अंतःसत्य ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। चकाचौंध में घिरने की बजाय वे यह देखे कि जीवन का उद्देश्य क्या है व इसके कारक तत्व क्या हैं।


Dr. Shrikant Prasoon

डॉ. श्रीकांत प्रसून से जुडी ज्यादा जानकारी के लिए आयें- http://www.shrikantprasoon.com पर

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