मेरे थोड़े से नमकीन शब्द
रखकर देखना
तुम अपनी कड़वी जुबान पर
जीवन जब मीठेपन से भर जाए
तुम्हें जरुरत पड़ेगी
मेरे आवश्यकता से थोड़े ज्यादा
तीखे, कड़वे, कसैले शब्दों की
सच मानों
चाहे तो चखकर देख लो
यह शब्द उतने नमकीन नहीं
जितने तुम्हारे तलवार की धार है
यह काटते जरुर हैं
लेकिन तुम्हारी तलवार की माफ़िक
लहुलुहान नहीं करते
जिस्म को . . .
और यह शब्दों का कड़वापन क्या ?
लहू से ज्यादा तो . . .
किसी हाल में नहीं हो सकता ?
तुम तो लहू पीकर ही जिन्दा रहे हो
फिर मेरे शब्दों से परहेज क्यों ?
एक बार चखकर देखना
कुछ नहीं तो स्वाद के नयेपन के लिए!
- संजय शेफर्ड, शोधकर्ता
बी.बी.सी हिन्दी
जीवन मैग जनवरी 2014 अंक से उद्धृत- मूल अंक यहाँ से डाउनलोड करें - https://ia600505.us.archive.org/7/items/JeevanMag4/Jeevan%20Mag%204.pdf
kamaal
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