न खुशबू है न बदबू है न ही इसमेँ कोई रंग है
मगर इंसान जब देखे तो रह जाता वह दंग है।
तो क्या चीज़ है ये जी अज़ब जिसकी कहानी है
ये पानी है ये पानी है ,ये पानी है ये पानी है ।
मिली यह साथ जिसके तो उसी का रंग लेती है
पियो जब प्यास लग जाये मजा ये खूब देती है।
सही है कि ये कुदरत भी खुद इसकी ही दीवानी है ये पानी है ये पानी है, ये पानी है ये पानी है ।
करे ये साफ गंदे को हटाये गंदगी को ये
है इंसा को बनाती लायक ऐ बंदगी के।
ये सही है कि ये कुदरत भी इसकी ही दीवानी है
ये पानी है ये पानी है, ये पानी है ये पानी है ।
जमीँ जो है ये इसकी ही वजह से ही है बहुत आबाद
इंसां औ' हैवां भी इसी के बदौलत हैँ साद।
सभी के पास इसकी बदौलत ही जवानी है
ये पानी है ये पानी है, ये पानी है ये पानी है ।
चढ़े पौधोँ पे छुप जाय ये पत्तोँ और मेवोँ मेँ
है हरेक चीज़ मेँ मौज़ूद यहाँ तक कि रेवोँ मेँ
मजा जिस चीज़ मेँ है सिर्फ इसकी मेहरबानी है
ये पानी है ये पानी है, ये पानी है ये पानी है ।
करो इसकी हिफ़ाज़त तुम रखो इसको साफ़ जी अगर ये नहीँ होता तो न होती यहाँ जिँदगी भी।
इसी के दम से निकला 'सलीम' की ये जुबानी है
ये पानी है ये पानी है, ये पानी है ये पानी है ।
(सलीम मीर फिलहाल क्लस्टर इनोवेशन सेँटर ,दिल्ली विश्वविद्यालय मेँ सहायक प्राध्यापक हैँ ।आप अनंतनाग, जम्मू और कश्मीर से ताल्लुक रखते हैं। यह कविता आपने अपने बचपन के दिनोँ मेँ लिखी थी जिसे बिना किसी काट छाँट के प्रकाशित किया गया है ।)
Nice Poem
ReplyDelete