सरकार बदलने से नहीं बल्कि विचार बदलने से अच्छे दिन आते हैं| अपने दिल पर हाथ रख कर पूछिये कि क्या अब
किसी लड़की के काले रंग और छोटी नाक के कारण उसका रिश्ता नहीं ठुकराया
जायेगा? क्या दहेज़ की आग में अब कोई बेटी नहीं झुलसेगी ? क्या किसी को
प्यार कर उसे अपना लेने की हिम्मत रखने वाली लड़की को लोग अब गिरी हुई नज़रों से नहीं देखेंगे? क्या विमाता के वचन अब मधुर हो जायेंगे? क्या ''डोम'' के छू जाने
पर माँ अब बच्चों को नहलाकर गंगाजल नहीं छिटेंगी? क्या गाँव के ''चमार''
और ''दुषाध'' अब भूमिहार और ब्राह्मण के साथ एक ही लाइन बैठकर भोजन कर
पाएंगे? क्या राज ठाकरे ''बिहारियों'' को अब गाली देना बंद कर देगा? क्या
क्षेत्र के नाम पर अब लोगों को खदेड़ा नहीं जायेगा? क्या धर्म के नाम पर
दंगे अब नहीं होंगे? क्या मंदिर-मस्जिद की राजनीति अब नहीं होगी? अगर इन
सब का उत्तर हाँ है तो यक़ीनन जश्न जायज है|
लेकिन अगर शक की कोई गुंजाइश भी है तो क्या फर्क पड़ता है की सरकार ''मनमोहन सिंह'' चलायें या ''टोबाटेक सिंह'' | ये सभी यक्ष प्रश्न आज समाज के सामने सुरसा के समान मुंह खोले खड़े हैं| कोई भी सरकार कानून बना सकती है, जन-मानस को प्रोत्साहित कर सकती है,जागरूकता फैला सकती है, जमीनी स्तर पर उसे अमली-जामा पहनाना किसी सरकार के बस में नहीं है| दहेज़ प्रथा, यौन शोषण, जातिगत भेदभाव के खिलाफ़ कानून तो दो पीढ़ी पहले से मौजूद हैं फिर भी कालजयी शिरीष की भांति यह आज भी फल-फूल रहे हैं| सच कहूँ तो दहेज़ की रकम तो महंगाई से ''डायरेक्टली प्रोपोसनल'' भी हो गई है| आज फिर इस देश को महात्मा गाँधी की जरुरत आन पड़ी है, जो जाकर लोगों से यह कह सके की ''हे पुत्र रंग, धर्म, जाति , लिंग, क्षेत्र और राष्ट्र पर मनुष्य का कोई वश नहीं होता| उसे अपने पैदा होने के स्थान, जाति, धर्म और लिंग संबंधी कोई अधिकार ब्रह्मा ने नहीं दिए हैं, इसीलिए इस आधार पर भेदभाव उचित नहीं है''|
देश की सरकार हमारी सीमाएं सुरक्षित कर सकती है| सरकार बुनियादी ढ़ांचे को मजबूत बना सकती है| सरकार शेष दुनिया से हमारे रिश्तों का जिम्मा ले सकती है| कोई भी सरकार हमारी विकृत मानसिकता को दकियानूसी विचारों को, अंधी प्रथाओं को तथा पितृसत्तात्मक समाजों को नियंत्रित नहीं कर सकती| इन सभी विचारों,प्रथाओं तथा संस्कारों के विधायिका भी हम हैं, कार्यपालिका भी हमीं हैं और न्यायपालिका भी| अतः अब अपने दिल के संसद में एक विधेयक पास कर लेना कि लिंग, धर्म, जाति और क्षेत्र के नाम पर भेदभाव नहीं करेंगे तभी अच्छे दिन आयेंगे|
(चित्र साभार: एबीपी न्यूज़)
लेकिन अगर शक की कोई गुंजाइश भी है तो क्या फर्क पड़ता है की सरकार ''मनमोहन सिंह'' चलायें या ''टोबाटेक सिंह'' | ये सभी यक्ष प्रश्न आज समाज के सामने सुरसा के समान मुंह खोले खड़े हैं| कोई भी सरकार कानून बना सकती है, जन-मानस को प्रोत्साहित कर सकती है,जागरूकता फैला सकती है, जमीनी स्तर पर उसे अमली-जामा पहनाना किसी सरकार के बस में नहीं है| दहेज़ प्रथा, यौन शोषण, जातिगत भेदभाव के खिलाफ़ कानून तो दो पीढ़ी पहले से मौजूद हैं फिर भी कालजयी शिरीष की भांति यह आज भी फल-फूल रहे हैं| सच कहूँ तो दहेज़ की रकम तो महंगाई से ''डायरेक्टली प्रोपोसनल'' भी हो गई है| आज फिर इस देश को महात्मा गाँधी की जरुरत आन पड़ी है, जो जाकर लोगों से यह कह सके की ''हे पुत्र रंग, धर्म, जाति , लिंग, क्षेत्र और राष्ट्र पर मनुष्य का कोई वश नहीं होता| उसे अपने पैदा होने के स्थान, जाति, धर्म और लिंग संबंधी कोई अधिकार ब्रह्मा ने नहीं दिए हैं, इसीलिए इस आधार पर भेदभाव उचित नहीं है''|
देश की सरकार हमारी सीमाएं सुरक्षित कर सकती है| सरकार बुनियादी ढ़ांचे को मजबूत बना सकती है| सरकार शेष दुनिया से हमारे रिश्तों का जिम्मा ले सकती है| कोई भी सरकार हमारी विकृत मानसिकता को दकियानूसी विचारों को, अंधी प्रथाओं को तथा पितृसत्तात्मक समाजों को नियंत्रित नहीं कर सकती| इन सभी विचारों,प्रथाओं तथा संस्कारों के विधायिका भी हम हैं, कार्यपालिका भी हमीं हैं और न्यायपालिका भी| अतः अब अपने दिल के संसद में एक विधेयक पास कर लेना कि लिंग, धर्म, जाति और क्षेत्र के नाम पर भेदभाव नहीं करेंगे तभी अच्छे दिन आयेंगे|
(चित्र साभार: एबीपी न्यूज़)
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