देश में एक हज़ार और पांच सौ के नोट में बड़ा बदलाव करके भारत सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा बदलाव लाने के लिए महत्वपूर्ण क़दम उठाया है। हर देश की सरकार यही चाहती है कि उसकी अर्थव्यवस्था दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में गिनी जाये इसलिए सरकार का यह निर्णय इस दिशा में महत्वपूर्ण माना जा सकता है। मगर भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। इससे पहले छठे दशक में मोरारजी देसाई जब वित्तमंत्री थे तब भी तत्काल सरकार ने कुछ इसी प्रकार के निर्णय लिए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने इस निर्णय के सकारात्मक पहलुओं को गिनाते हुए देश भर में इसे लागू कर दिया मगर यह फैसला जिस अंदाज में लिया गया उसने देश की जनता के समक्ष बहुत सारे प्रश्न खड़े कर दिए हैं। इस देश का हर नागरिक यहाँ की अर्थव्यवस्था से प्रभावित होता है। और यहाँ की अर्थव्यवस्था देश के हर नागरिक से प्रभावित होती है। इसी कारण यह अपने आप में बहुत अजीब बात है कि ऐसा महत्वपूर्ण निर्णय जो अर्थव्यवस्था से जुड़ा हुआ हो और जिसका प्रभाव व्यापक रूप से लोगों पर पड़ने वाला हो, अचानक और इतनी जल्दबाज़ी में कैसे लिया जा सकता है? यह तो बहुत जल्दबाज़ी में लिया गया निर्णय प्रतीत होता है। जिसकी कोई तैयारी नज़र नहीं आती, अगर सरकार इसके लिए तैयार भी है तो देश की जनता बिल्कुल भी तैयार नहीं है। अगर यह निर्णय गोपनीय था इसलिए कि भ्रष्टाचारी और काला धन जमा करने वाले लोग सचेत न हो जाएं तो ऐसे में सरकार का इतना बड़ा निर्णय लेने से पहले गरीबों, मज़दूरों, किसानों और प्रतिदिन कमाकर खाने वालों का एक बार भी ख्याल क्यों नहीं आया?
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा कि "यह सरकार गरीबों के प्रति समर्पित है।" अगर सच में यह सरकार गरीबों के प्रति समर्पण की भावना रखती है तो दूसरे विकल्पों के माध्यम से कुछ ऐसे नियम बनाए जा सकते थे जिनसे इस फैसले को लागू करने से पहले गरीब, मज़दूर, किसान जैसे वर्ग आदि को सुविधाएं हो सकती थी। उनका कहना तो ये भी था कि देश का ईमानदार जागरूक नागरिक असुविधा को चुन सकता है। मगर भ्रष्टाचार को नहीं चुनेगा, ऐसी परिस्थितियों में यह ईमानदार जागरूक उस घुन के सामान प्रतीत होता है जिसे ज़बरदस्ती गेहूं के साथ पिसना पड़ रहा है। इस निर्णय को लागू करने के पीछे सरकार का सबसे बड़ा तर्क यह है कि भ्रष्टाचार कम होगा और कालेधन पर शिकंजा कसा जाएगा क्योंकि भ्रष्टाचार और कालेधन में अधिकतर बड़े नोटों का प्रयोग किया जाता है। अगर ऐसा है तो फिर सरकार एक हज़ार की जगह दो हज़ार का नोट क्यों जारी कर रही है? अधिकतर सन्दर्भ से भारत विविधताओं से भरा हुआ देश है। अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में भारत के लिए ये कोई नई बात नहीं है। असंगठित अर्थव्यवस्था के कारण अभी देश को इस निर्णय पर पूरी तरह से अमल करने में समय लग सकता है। सरकार के इस फैसले से जाली नोट पर रोकथाम लगाई जा सकेगी। जाली नोट की समस्या से हमारा देश शुरू से ही परेशान रहा है। देश के बाहर से तस्करी कर के लाये जाने वाले जाली नोट जब तब बाजार में पकड़े जाते हैं। और इन पर पूर्णरूप से अंकुश लगाना मुश्किल था। मगर सरकार के इस फैसले से जाली नोट की समस्या का जड़ से सफाया होने की सम्भावना है। फिर भी एक समस्या यह खड़ी हो सकती है कि अगर पड़ोसी देश से नए नोट के जारी होने के बाद उसके जाली नोट बाज़ार में आ गए तब मुश्किलें पहले से और अधिक बढ़ सकती हैं क्योंकि हम पुराने नोट से जितनी भलीभांति परिचित है, उतना नए नोट से नहीं होंगे इसलिए नए नोट लागू करने के साथ सरकार को अब नोट की तस्करी के प्रति पहले से अधिक गम्भीर रहना पड़ेगा।
Abuzaid Ansari |
अबुज़ैद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया (नई दिल्ली) में जनसंचार मीडिया / पत्रकारिता के छात्र हैं। आप जीवनमैग के सह -संपादक होने के साथ-साथ भारतीय विज्ञान कांग्रेस (कोलकाता), और नेशनल एसोसिएशन फॉर मीडिया लिटरेसी एजुकेशन (न्यूयॉर्क) के सदस्य हैं। और नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं।