हक़ीकत सुर्ख मछली जानती है
समुन्दर कितना बूढ़ा देवता है
जामिया के 96वें स्थापना दिवस के इस ऐतिहासिक अवसर पर बशीर बद्र की लिखी ये पंक्तियां साकार होती नज़र आती हैं। अगर समुन्दर की तुलना जामिया से की जाये तो स्वाभाविक है कि सुर्ख मछलियां यहाँ के विद्यार्थी ही होंगे। विद्यार्थियों से बेहतर इसकी हक़ीकत और कौन समझ सकता है? इस विश्वविद्यालय का लालन-पालन देश के महान नेताओं, विचारकों, समाज सुधारकों और साहित्यकारों द्वारा हुआ है। यह ज्ञान का वो सागर है जिसमे जो जितनी गहरी डुबकी लगाना चाहे लगा सकता है। इसकी गहराई अनंत है। इस अनंत गहरे सागर से समय-समय पर बहुमूल्य मणियाँ निकलती रही हैं।
जामिया का स्थापना दिवस महज़ औपचारिक कार्यक्रम नहीं है। यह वह समय है जब यहाँ के विद्यार्थी बेफ़िक्री से मौज-मस्ती करने के लिए आज़ाद होते हैं। यूँ तो वे हर दिन आज़ाद होते हैं और हर दिन क़ैद भी, मगर इस आज़ादी की भावना स्थापना दिवस के उत्सव रंग से रंगी हुई होती है। स्थापना दिवस पर तालीमी मेले में क़दम रखते ही ऐसा प्रतीत होता है जैसे पूरा जामिया सिमट कर एक मैदान में समा गया हो। एक तरफ से चलना शुरू करें तो दो-तीन क़दम चलते ही नए विभाग का स्टाल नज़र आता है। कहने और दिखने में मात्र स्टाल ही हैं। मगर आपके पास हट कर देखने का दृष्टिकोण है तो इन स्टालों पर सम्बंधित विभागों की मुख्य विशेषताओं की झलक दिखाई देने लगती है। तालीमी मेले का सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू यह है कि यहाँ आने वाले दर्शक सभी विभागों की मुख्य-मुख्य विशेषताओं से परिचित होते हैं। मज़े की बात यह है कि हर साल तालीमी मेले में हर विभाग के पास कुछ ना कुछ अलग और नया देखने को मिलता है। जैसे-जैसे दिन ढलता जाता है और शाम क़रीब आती है तो लोगों की चहल-पहल और बढ़ जाती है।
AJKMCRC GATE
अक्टूबर के अंत की इन तीन ठंडी शामों में जामिया बड़ी गर्मजोशी से कार्यक्रमों में आने वाले अथितियों का स्वागत करता है। स्थापना दिवस की शाम अनेक रंगों से रंगी होती है। या यूँ कहेँ कि सतरंगी होती है। यह रंग आम दिनों में देखने को नहीं मिलती, दोपहर संगीत और क़व्वाली के रंग में डूबी हुई तो अगले पहर यह नृत्य के रंग में रंगी हुई। शाम ढलते-ढलते इस पर ग़ज़ल का रंग चढ़ जाता है। और जब ग़ज़ल का रंग जामिया के वातावरण में मिल जाये तो शायराना ख़ुश्बू की महक तो आनी लाज़मी ही है।
यह सत्य है कि ज्ञान को जितना बांटों उतना बढ़ता जाता है और धन बांटने से घट जाता है। इसे हम ज्ञान का मंदिर कहें या ज्ञान का सागर मगर एक बात ज्ञान बांटने के सन्दर्भ में समझ आती है कि कहने को तो यह 96वें वर्ष का प्रौढ़ जामिया है। मगर यह प्रौढ़ नाममात्र कहने को है। छात्रों की गतिविधियों को देखते हुए और आधुनिकता से सामंजस्य बिठाते हुए जामिया हरदम युवा लगता है। यह हर वर्ष अपने स्थापना दिवस पर नया हो जाता है। नई आशाएं, नए विचार, और नई ऊर्जा के साथ भर उठते हैं।
नोट:- (मूल रूप से जामिया समाचार पत्र में प्रकाशित अबुज़ैद अंसारी द्वारा लिखित यह लेख दिनांक 29 अक्टूबर 2016 के संपादकीय पृष्ठ से लिया गया है।)
Abuzaid Ansari
अबुज़ैद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया (नई दिल्ली) में जनसंचार मीडिया / पत्रकारिता के छात्र हैं। आप जीवनमैग के सह -संपादक हैं, और नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं।
जामिया के 96वें स्थापना दिवस के इस ऐतिहासिक अवसर पर बशीर बद्र की लिखी ये पंक्तियां साकार होती नज़र आती हैं। अगर समुन्दर की तुलना जामिया से की जाये तो स्वाभाविक है कि सुर्ख मछलियां यहाँ के विद्यार्थी ही होंगे। विद्यार्थियों से बेहतर इसकी हक़ीकत और कौन समझ सकता है? इस विश्वविद्यालय का लालन-पालन देश के महान नेताओं, विचारकों, समाज सुधारकों और साहित्यकारों द्वारा हुआ है। यह ज्ञान का वो सागर है जिसमे जो जितनी गहरी डुबकी लगाना चाहे लगा सकता है। इसकी गहराई अनंत है। इस अनंत गहरे सागर से समय-समय पर बहुमूल्य मणियाँ निकलती रही हैं।
जामिया का स्थापना दिवस महज़ औपचारिक कार्यक्रम नहीं है। यह वह समय है जब यहाँ के विद्यार्थी बेफ़िक्री से मौज-मस्ती करने के लिए आज़ाद होते हैं। यूँ तो वे हर दिन आज़ाद होते हैं और हर दिन क़ैद भी, मगर इस आज़ादी की भावना स्थापना दिवस के उत्सव रंग से रंगी हुई होती है। स्थापना दिवस पर तालीमी मेले में क़दम रखते ही ऐसा प्रतीत होता है जैसे पूरा जामिया सिमट कर एक मैदान में समा गया हो। एक तरफ से चलना शुरू करें तो दो-तीन क़दम चलते ही नए विभाग का स्टाल नज़र आता है। कहने और दिखने में मात्र स्टाल ही हैं। मगर आपके पास हट कर देखने का दृष्टिकोण है तो इन स्टालों पर सम्बंधित विभागों की मुख्य विशेषताओं की झलक दिखाई देने लगती है। तालीमी मेले का सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू यह है कि यहाँ आने वाले दर्शक सभी विभागों की मुख्य-मुख्य विशेषताओं से परिचित होते हैं। मज़े की बात यह है कि हर साल तालीमी मेले में हर विभाग के पास कुछ ना कुछ अलग और नया देखने को मिलता है। जैसे-जैसे दिन ढलता जाता है और शाम क़रीब आती है तो लोगों की चहल-पहल और बढ़ जाती है।
AJKMCRC GATE |
अक्टूबर के अंत की इन तीन ठंडी शामों में जामिया बड़ी गर्मजोशी से कार्यक्रमों में आने वाले अथितियों का स्वागत करता है। स्थापना दिवस की शाम अनेक रंगों से रंगी होती है। या यूँ कहेँ कि सतरंगी होती है। यह रंग आम दिनों में देखने को नहीं मिलती, दोपहर संगीत और क़व्वाली के रंग में डूबी हुई तो अगले पहर यह नृत्य के रंग में रंगी हुई। शाम ढलते-ढलते इस पर ग़ज़ल का रंग चढ़ जाता है। और जब ग़ज़ल का रंग जामिया के वातावरण में मिल जाये तो शायराना ख़ुश्बू की महक तो आनी लाज़मी ही है।
यह सत्य है कि ज्ञान को जितना बांटों उतना बढ़ता जाता है और धन बांटने से घट जाता है। इसे हम ज्ञान का मंदिर कहें या ज्ञान का सागर मगर एक बात ज्ञान बांटने के सन्दर्भ में समझ आती है कि कहने को तो यह 96वें वर्ष का प्रौढ़ जामिया है। मगर यह प्रौढ़ नाममात्र कहने को है। छात्रों की गतिविधियों को देखते हुए और आधुनिकता से सामंजस्य बिठाते हुए जामिया हरदम युवा लगता है। यह हर वर्ष अपने स्थापना दिवस पर नया हो जाता है। नई आशाएं, नए विचार, और नई ऊर्जा के साथ भर उठते हैं।
नोट:- (मूल रूप से जामिया समाचार पत्र में प्रकाशित अबुज़ैद अंसारी द्वारा लिखित यह लेख दिनांक 29 अक्टूबर 2016 के संपादकीय पृष्ठ से लिया गया है।)
Abuzaid Ansari |
अबुज़ैद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया (नई दिल्ली) में जनसंचार मीडिया / पत्रकारिता के छात्र हैं। आप जीवनमैग के सह -संपादक हैं, और नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं।
Awesome work.Just wanted to drop a comment and say I am new to your blog and really like what I am reading.Thanks for the share
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