एक
तब गाँव हमारा ऐसा था
तब गाँव हमारा ऐसा था
इंसान जहाँ पर रहते थे
सब शत्रु थे एक-दूजे के
पर एक दूजे पर मरते थे
आदर था तब पंचों का
उपयोग नहीं तमंचों का
पंचायत के निर्णय का तब
मान बड़ा वो रखते थे
पर कई बार मनोरंजन खातिर
केस-मुकदमे लड़ते थे
एक नदी किनारे बहती थी
तहजीब यहाँ वह बसती थी
सब लड़के थे अपने घर के
पर बेटी पंच की होती थी
गईया को मईया कहते थे
बरगद को बाबा कहते थे
तब चाँद हमारा मामा था
और नदी हमारी माई थी
कुछ बेटों जैसे भाई थे
कुछ अम्मा सी भौजाई थीं
पुआल में घुस कर सोते थे
तब मिलती नहीं रजाई थी
एक-दूजे को वो हंसते थे
आपस में तंज वो कसते थे
पूरा गाँव रो पड़ता था
जब दुलहिन् बेटी रोती थी
तब प्यार में गाली देते थे
देवर भौजी के चहेते थे
नारी नर की परछाई थी
पर ननद बड़ी हरजाई थी
पोतों के कंधों पर जाऊं
हर दादी की अभिलाषा थी
सब पोते बड़े किसान बनें
यह दादाजी की आशा थी
दो
अब गाँव हमारा ऐसा है
अब गाँव हमारा ऐसा है
हर एक हाथ में पैसा है
ना कोई किसी का बैरी है
सब जैसे को तैसा है
काका-काकी चले गए
अब अंकल-आंटी आई है
वाईफ घर में घुस बैठी है
जब से गयी लुगाई है
अब चाँद हमारा मून हुआ
गईया बन गयी काऊ है
इन्सान की कीमत चली गयी है
जमीन बड़ी बिकाऊ है
अब जाते नहीं चौपालों में
गाँव के इन जंजालों में
लोग शहर को चले गए हैं
घर बसता है तालों में
शहरीकरण की परछाई है
सब चली गयी तरुणाई है
ढ़ोल-मंजीरे उठ गए कब के
डीजे की पुरवाई है
ना मिलते ना बतियाते हैं
ऐसी अब रुखाई है
दुबक पड़े इन्सान हैं घर में
जब से छतरी आई है
कुछ अनजाने से बच्चे हैं
स्कुल बसों में जाते हैं
कौन लगेगा चाचा-ताऊ
सामान्यज्ञान में कच्चे हैं
बदल गया अब गाँव ओ भईया
आई विकास की क्रांति है
शहरी दुलहा जब घुस आया
ससुराल चली अब 'शांति' है
Uttam!
ReplyDeleteअंकित जी,
ReplyDeleteसही कहा आपने पुराने ज़माने के गाव और आज के गाव मैं बहुत अंतर हैं,
आज गाव मैं भी सभी नयी technologi पहुच चुकी हैं.
थैंक्स