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Tuesday, 10 February 2015

दिल्ली में "आप" की जीत के निहितार्थ

हालिया दिल्ली चुनावों में आम आदमी पार्टी की जीत भारतीय लोकतंत्र के जीवंतता का सूचक है। अरविन्द केजरीवाल ने एक बार फिर उन सारे राजनीतिक पंडितों को धता बता दिया जो कि लोकसभा चुनावों के बाद "आप" के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर रहे थे। ये जीत एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है और देखना दिलचस्प रहेगा कि इस अवसर का "आप" किस प्रकार उपयोग करती है। देश के दिल दिल्ली में "आप" की सरकार कुछ हद तक केंद्र में एक विपक्ष की कमी को पूरा करने का कार्य करेगी। आशा है कि ये नतीजे सत्ता के आकंठ में डूबी भाजपा को भी जगाने में सफल होंगे। भाजपा को ये समझ आ जाना चाहिए कि अब "हनीमून" का समय समाप्त हो चला है और ज़रूरी ये है कि राज्यों के चुनावों में मतदाताओं को "मोदी" मन्त्र तथा नकारात्मक प्रचार के बदले ठोस स्थानीय मुद्दे तथा स्थानीय चेहरे पेश किये जाएँ। इन चुनावों ने यह साबित कर दिया है कि मोदी की "भाजपा" अजेय नहीं है पर ऐसा कहना भी ठीक नहीं होगा कि ये नतीजे केंद्र सरकार की कार्यप्रणाली के प्रति आम जनता रोष को प्रदर्शित करते हैं। दिल्ली की जनता के एक बड़े तबके में काफ़ी पहले से ही "केजरीवाल फॉर सीएम, मोदी फॉर पीएम" के स्वर बुलंद थे। इसका प्रतिफल पिछले दिल्ली विधानसभा और लोकसभा चुनावों दोनों में ही देखने को मिला। इस बार भी भाजपा को मिले ३२ प्रतिशत वोट यह दिखाते हैं कि दिल्ली में पार्टी ने भले ही एक बड़ा टुकड़ा ज़रूर खो दिया हो पर पूरी ज़मीन नहीं खोई है। आगामी बिहार चुनावों में भाजपा को चाहिए कि एक साफ़ प्रतिबद्ध चेहरा (जो स्थानीय नेतृत्व में दूर-दूर तक नज़र नहीं आता) सामने रख ज़मीनी सच्चाई के बल पर चुनाव लड़े। अगर आम आदमी पार्टी बिहार के चुनावों में कदम रखती है (हालाँकि आसार नज़र नहीं आते) तो इसके लिए लोकसभा चुनावों से सबक ले ये ध्यान रखना होगा कि दिल्ली और बिहार के सामजिक समीकरणों में ज़मीन-आसमान का फर्क है। 
                                                                               - आकाश कुमार
                                                                                   प्रमुख संपादक

दिल्ली के चुनावी युद्ध में आज आम आदमी पार्टी ने ये साबित कर दिया है कि देश में चुनाव जीतने, सरकार बनाने और बहुमत लाने के लिए जाति-धर्म के अलावा और भी मुद्दे हैं जिनके दम पर मज़बूत सरकार स्थापित की जा सकती है। ये जीत आम आदमी की जीत है। भारतीय  इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा के हमने एक ऐसा चुनाव देखा,जो डंके की चोट पर आम आदमी के आधारभूत मुद्दों पर लड़ा गया, और आज बहुमत से भी बहुत अधिक सीटों से जीता गया।  ये चुनाव उन पार्टियों के लिए एक सन्देश देता है जो कहीं ना कहीं वोट बैंक बढ़ाने के लिए बीच में उन मुद्दों को ले आते हैं जिससे आम आदमी का भला और विकास नहीं हो सकता, जो ना विकास के रास्ते की तरफ से आते हैं और ना ही उस ओर जाते हैं। आज का आम आदमी अपने जीवन में आराम औ' सुकून चाहता है। उसे ज़रुरत है ऐसे मज़बूत तंत्र की जो उसकी आधारभूत ज़रूरतों पानी, बिजली, स्वछता, स्वास्थय, परिवहन सुविधाएं, सुरक्षा आदि की पूर्ति कर सके।

आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में बहुत बड़ी संख्या में ऐसी आबादी है जिसकी आधारभूत ज़रूरतें खस्ताहाल हैं। लोग अनधिकृत कॉलोनी और झुग्गी झोपड़ियों में रहने को मजबूर हैं। छोटे तबके के गरीब लोग, फैक्ट्रियों में मज़दूरी करने वाले, सड़कों पर रिक्शा तथा ऑटो, छोटी-मोटी दुकान चलाकर किसी तरह अपनी ज़िंदगी गुजार रहे बाहर से आये हुए लोगों की ज़िन्दगी के तमाम सपने आज भी अधूरे हैं। आधारभूत ज़रूरतों का ख़र्च बढ़  गया है, लेकिन हालात वैसे के वैसे ही हैं। आज दिल्ली की कुल आबादी का 40 % हिस्सा प्रवासी लोगों का है, जिनमे से अधिकतर लोग  गरीबी, बेरोज़गारी, तंगहाली से परेशान होकर देश के दिल दिल्ली में अपने दिल में बसी बहुत सी आशाओं के साथ आते हैं। दिल्ली एक ऐसा राज्य है जहाँ आज देश के हर हिस्से का आम आदमी बसा हुआ है और यहाँ की चुनावी जीत से देश के हर हिस्से में बहुत प्रभावी सन्देश पहुंचेगा , आम आदमी पार्टी  दो राष्ट्रीय पार्टी "बीजेपी" और "कांग्रेस" को ज़ोरदार टक्कर देने  के बाद यह देश के दूसरे राज्यों में होने वाले चुनावों में बहुत प्रभावी ढंग से खुद को पेश कर सकती है।

कांग्रेस डूबती हुई नौका है जिसमे अब कोई भी नही बैठना चाहता, उसके अपने सवार ही उसे छोड़ कर भाग रहे हैं। यह कांग्रेस के लिए बड़ी चिंता का विषय है और अब कांग्रेस को वोट बैंक नहीं बल्कि अपने अस्तित्व को बचाने के लिए लड़ना होगा। यह बीजेपी के लिए भी बहुत बड़ा झटका इसलिए है क्योंकि इस बार चुनाव में ना मोदी मंत्र चला ना मोदी तंत्र, ज़ाहिर है कि लोकसभा चुनाव में ज़बरदस्त जीत हासिल करने वाली बीजेपी के दांत खट्टे पड़ चुके हैं, और इस हार से बीजेपी के आत्मविश्वास को बहुत गहरी चोट पहुंची है। एक सबसे ख़ास बात यह देखने को मिली कि प्रधानमन्त्री मोदी ऐसे पहले व्यक्ति हैं जिन्होनें दिल्ली के भावी मुख्यमंत्री केजरीवाल को उनकी जीत पर सबसे पहले बंधाई दी।  इसे मोदी जी का बड़प्पन समझा जाए या फिर यूँ समझें के वो खिसिया से गए हैं।  चुनाव प्रचार के दरम्यान "आप"  प्रतिद्वंद्वी प्रधानमन्त्री मोदी द्वारा दी गई इस बंधाई से साबित है वह देश का विकास चाहते हैं चाहे सत्ता में कोई भी सरकार हो और "पांच साल केजरीवाल" मंत्र से लोगों को बहुत उम्मीदें हैं और लोगों द्वारा इसके जाप ने अपना असर दिखा ही दिया है अब तो दिल्ली के लोग बदलाव देखना चाहते हैं । केजरीवाल अब उन क्षेत्रीय पार्टियों के लिए खतरे की घंटी है , जिन्होंने आम आदमी को अब तक  बेवक़ूफ़ समझ रखा है।

आज दिल्ली के चुनावी नतीजे देख कर दुनिया हैरान है और इन परिस्तिथियों में मुझे अपनी ग़ज़ल का एक शेर याद आता है...

उम्मीद क्या थी क्या से क्या अंजाम हो गया
दिल आज फिर ये इश्क़ में नाकाम हो गया

लोगों में उत्साह है, नई उम्मीदों के साथ अब लोगों को देश के दिल दिल्ली में नए जज़्बातों के साथ सुनहरा भविष्य नज़र आ रहा है। आज दिल्ली की जनता ने साबित कर दिया है कि लोकतंत्र में कोई अजेय नहीं होता, ज़्यादा घमंड और अति आत्मविश्वास , पार्टी हो या व्यक्ति सबको ही ले डूबता है। मैं मानता हूँ कि दो करोड़ की आबादी वाले इस शहर दिल्ली में लोगों के पास समय का अभाव है। फिर भी जनता ने अपने समय और वोट का भरपूर प्रयोग किया है। देश की राजधानी दिल्ली को आज छोटा भारत कहा जाता है और इस छोटे भारत से बड़े भारत को अब बड़ी उम्मीदें हो चली हैं।


अबूज़ैद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली में बारहवीं कक्षा के छात्र हैं. आप जीवन मैग के सह-संपादक हैं और नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं.
 (चित्र: श्री अनिल भार्गव, सलाहकार- जीवन मैग)

3 comments :

  1. sahi kaha bhaiyya!

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  2. काश, आपकी बातें सच साबित हों।

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