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Tuesday, 24 March 2015

रेडियो सीलोन की यादें

एक ज़माना था जब  रेडियो सीलोन की स्वर लहरियों के साथ करोड़ों हिन्दुस्तानियों का दिल धड़कता था. क्या शहर और क्या गाँव, हर सड़क गली मोहल्ला और दुकानों से एक ही रेडियो चैनल बजता था. एक से बढ़कर एक सदाबहार गाने बजते जाते थे और लोग अपने-अपने काम में रमे रहते थे. पचास के दशक की शुरुआत में आकाशवाणी से फ़िल्मी गानों के प्रसारण पर रोक लगा दी गयी थी. उसी समय रेडियो सीलोन ने हिंदी फ़िल्मी गानों का प्रसारण शुरू कर दिया. यह गीत संगीत के लिहाज़ से हिंदी सिनेमा का सुनहरा दौर था. रेडियो सीलोन दिन दूनी रात चौगुनी की रफ़्तार से भारतीय जनमानस में लोकप्रिय होता चला गया.

मशहूर रेडियो प्रसारक अमीन सायानी, पंडित गोपाल शर्मा, शिव कुमार सरोज, मनोहर महाजन, रिपुसूदन ऐलावादी, विजयलक्ष्मी आदि ने रेडियो सीलोन से जुड़े रहकर घर घर में लोकप्रियता हासिल की. इनकी हस्ती तबके किसी फिल्मी कलाकार से कम नहीं थी. बहुत कम लोगों को मालूम है कि अभिनेता बनने से पहले सुनील दत्त भी रेडियो सीलोन में उद्घोषक थे. उन दिनों श्रोताओं में अमीन सायानी के काउंट डाउन की शक्ल वाले बिनाका गीतमाला प्रोग्राम की वही लोकप्रियता थी जो बाद में रामायण और महाभारत जैसे टीवी सीरियलों को ही नसीब हुई.

उस ज़माने में वक्त का पैमाना भी रेडियो सीलोन ही था. तब सुबह आठ बजे के आसपास प्रतिदिन ‘पुराने फिल्मों का संगीत’ कार्यक्रम के अंत में के.एल. सहगल का गाना बजता था. जैसे ही सहगल का गाना शुरू होता मतलब घड़ी आठ बजाने वाली होती, माँ अपने बच्चों को स्कूल के लिए फटाफट रवाना कर देती थीं. उन दिनों एक लतीफ़ा भी बेहद मशहूर हुआ था कि देहात के लोग जब रेडियो खरीदने जाते तो दुकानदार से फिलिप्स या मर्फी की बजाय रेडियो सीलोन की मांग करते थे. कहने का तात्पर्य कि रेडियो सीलोन भारतीय लोक संस्कृति में पूरी तरह रच बस चुका थी.

गुज़रते वक्त के साथ, सत्तर के दशक के अंत में श्रीलंका गृह युद्ध के चपेट में आ गया. सिंहल और तमिल आपस में लड़ भिड़े. सरकार से हिंदी सर्विस को मिल रहा सहयोग निरंतर घटता चला गया. सभी मशहूर प्रसारक श्रीलंका छोड़ हिंदुस्तान लौट आये. अंग्रेज़ों का छोड़ा पुराना ट्रांसमीटर कमजोर पड़ने लगा. भारत सरकार ने देशी कंपनियों द्वारा विदेशी प्रसारकों के हाथ विज्ञापन बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया. आहिस्ता-आहिस्ता रेडियो सीलोन की प्रसारण अवधि घटती चली गयी. और इसके दीवाने विविध भारती और नए एफएम चैनलों की तरफ शिफ्ट हो गए. जो लोग बचे उनमें अब रेडियो सीलोन के प्रति श्रद्धा पूर्ण आभार की भावना और उन सुनहरे दिनों की चंपई स्मृतियां ही शेष हैं.


फ़िल्मी गानों पर आधारित विभिन्न कार्यक्रम प्रारूप, म्यूजिक काउंट डाउन, श्रोताओं से पत्र और एसएमएस व्यवहार, कलाकारों और श्रोताओं के जन्मदिन पर विशेष संदेश एवं कार्यक्रमों के प्रसारण आदि परंपराओं की जननी रेडियो सीलोन ही है. आज भी दुनिया भर के चैनल इनका अनुकरण कर रहे हैं. रेडियो सीलोन ने प्रसारक-श्रोता संबंध की नई संस्कृति को जन्म दिया. देश भर में लाखों रेडियो क्लब स्थापित हुए. वहीं दक्षिण एशिया में हिंदी के प्रचार प्रसार में रेडियो सीलोन की भूमिका अविस्मरणीय रही है.

आज श्रीलंका ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन की हिंदी सर्विस सुबह में मुश्किल से दो-ढाई घंटे प्रसारण करती है. वह भी रेडियो पर अब साफ़-साफ़ सुनाई नहीं देता है. अब न प्रसारकों में वह उत्साह ही रहा और न श्रोताओं में रेडियो के प्रति वह दीवानगी. जब मैं आखिरी बार रेडियो सीलोन सुन रहा था तो घनी सरसराहट और सिसकारियों को भेदती हल्की किन्तु उतरती-चढ़ती तेज़ स्वर लहरी में जो गीत आ रहा था वह कुछ-कुछ उसकी और बहुत कुछ हमारी दास्ताँ ही सुना रहा था... तुम ना जाने किस जहां में खो गए, हम भरी दुनिया में तन्हा हो गए...
 

नन्दलाल मिश्र जीवन मैग के प्रबंध संपादक हैं। सम्प्रति आप दिल्ली विश्वविद्यालय के संकुल नवप्रवर्तन केन्द्र में मानविकी स्नातक के छात्र तथा दिल्ली विश्वविद्यालय सामुदायिक रेडियो के कार्यक्रम समन्वयक है। आप बिहार के समस्तीपुर से ताल्लुक रखते हैं।

1 comment :

  1. Very Good Collection ...... Main Apki site ka reguler reader hu. good job . keep it up.
    thanks

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