मौर्य-मगध का केंद्र-बिंदु हो,
क्रांति की अंगड़ाई हो।
वर्तमान को दिया दिखाते,
स्वर्णिम भूत की परछाई हो।।
क्रांति की अंगड़ाई हो।
वर्तमान को दिया दिखाते,
स्वर्णिम भूत की परछाई हो।।
भोज-अंग-मिथिला का स्वर हो,
वज्जी-मगही का तराना हो।
'पञ्चबजना' की स्वरलहरी पर,
विद्यापति का गाना हो।।
जाट-जटिन का प्रेमनृत्य हो,
'कोहबर' की फूलकारी हो।
'अरिपन' की तुम उज्जवल रचना,
'मधुबनी' की चित्रकारी हो।।
सारण के तुम रास-रंग हो,
चम्पारण की बुद्धि हो।
शाहाबाद की तुम हो वीरता,
दरभंगा की विद्या हो।।
गंगा के तुम पावन जल हो,
कोसी-कमला के जाये हो।
नारायणी की गोद में बैठे,
सुन्दर रूप बनाए हो।।
उदयिन-अशोक हैं पुत्र तुम्हारे,
सीता भी तो जाई है।
गाँधी-बुद्ध आगंतुक तेरे,
महावीर के भाई हो।।
जी करता है जन्म-जन्म मैं,
गोद तुम्हारे हीं खेलूँ।
भारतवर्ष का बेटा बनकर,
नाम "बिहारी" कहलाऊं ।।
(फोटो क्रेडिट: बिहार ऑनलाइन)
वज्जी-मगही का तराना हो।
'पञ्चबजना' की स्वरलहरी पर,
विद्यापति का गाना हो।।
जाट-जटिन का प्रेमनृत्य हो,
'कोहबर' की फूलकारी हो।
'अरिपन' की तुम उज्जवल रचना,
'मधुबनी' की चित्रकारी हो।।
सारण के तुम रास-रंग हो,
चम्पारण की बुद्धि हो।
शाहाबाद की तुम हो वीरता,
दरभंगा की विद्या हो।।
गंगा के तुम पावन जल हो,
कोसी-कमला के जाये हो।
नारायणी की गोद में बैठे,
सुन्दर रूप बनाए हो।।
उदयिन-अशोक हैं पुत्र तुम्हारे,
सीता भी तो जाई है।
गाँधी-बुद्ध आगंतुक तेरे,
महावीर के भाई हो।।
जी करता है जन्म-जन्म मैं,
गोद तुम्हारे हीं खेलूँ।
भारतवर्ष का बेटा बनकर,
नाम "बिहारी" कहलाऊं ।।
(फोटो क्रेडिट: बिहार ऑनलाइन)
बहुत बढ़िया ! आपका नया आर्टिकल बहुत अच्छा लगा www.gyanipandit.com की और से शुभकामनाये !
ReplyDelete