बहुत देर से कई घंटों तक क़लम हाथ में लिए बैठा रहा, सोचता रहा क्या लिखूं, हज़ारों लाखों शब्द दिमाग़ से हृदय - हृदय से दिमाग़ की ओर दौड़ते रहे। मैने आज अपने जीवन में ऐसी ख़ामोशी का एहसास किया जिसकी मैने कभी कल्पना भी नहीं की थी। ऐसी ख़ामोशी जिसमे अपने हृदय के चीख़ - चीख़ कर रो देने की आवाज़ प्रतीत की की, एक पल के लिए रगों में दौड़ता हुआ ख़ून ठंडा सा होता प्रतीत हुआ, इस पल में लगा जैसे धरती पैरों से खिसकी नहीं खिसका दी गई हो। ये वो पल था जब मेरी छोटी बहन ने दौड़ते हुए आकर मुझे समाचार दिया
"भारत के पूर्व राष्ट्रपति काका कलाम नहीं रहे"
ये मेरे लिए बहुत मुश्किल समय था कि मैं खुद को इस बात पर विश्वास दिला सकूँ, बार बार हृदय से यही प्रशन उठते 'क्या ये सच है? या महज़ एक सपना? 26 जुलाई की रात मैं पिताश्री से उनकी ही चर्चा कर रहा था और 27 जुलाई को ये सब हो गया। आज का दिन तो और दिनों की ही तरह था, देखने पर कोई बदलाव तो प्रतीत नहीं हो रहा था, मगर सोचनें पर ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सब कुछ बदल गया हो, मैं उलझन में पड़ गया था कोई शब्द ही नहीं थे कि किसी से कुछ कहूँ या खुद से कुछ कह सकूँ, मैने घर से बाहर निकल कर सड़कों पर दौड़ लगा दी, जिधर गया जिधर से निकला मातम सा छाया हुआ था। लोगों के चेहरों पर एक अजीब थी, कोई किसी से कुछ नहीं कह रहा था। हर तरफ़ बस एक ख़ामोशी थी। इन उदास और ख़ामोश चेहरों के पीछे मैं रोते हुए चेहरों को साफ़ - साफ़ देख सकता था। ये हाल सिर्फ़ मेरे शहरवासियों का ही नहीं बल्कि हर उस भारतवासी का था।
कलाम जिनके लिए एक मार्गदर्शक थे। उनको प्यार करने वाला ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं होगा जिसकी आँखें आज नम ना हुई हों, मैं स्वयं रोया था , मगर ये सोच कर आँसू छुपा लिए कि कहीं कोई देख ना ले, सारा देश आज शोकाकुल है। आज भारत माँ ने अपना सच्चा सपूत खोया है। आज हम सब ने ऐसे व्यक्ति को खो दिया जो कभी अपने लिए नहीं जिया, बल्कि लोगों के लिए जिया। उनके चले जाने से हम सब के बीच एक ख़ालीपन सा महसूस हो रहा है, जिसकी भरपाई शायद ही हम कभी कर सकें।
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कलाम साहब बहुत साधारण से व्यक्ति थे , मगर उनका व्यक्तित्व असाधारण था। विशेषरूप से युवा पीढ़ी और बच्चों के वो सच्चे मार्गदर्शक थे। उनका जीवन एक मिशन था, उन्होने अपने जीवन को कई अलग -अलग भूमिकाओं में एक साथ जिया, एक लेखक के रूप में, एक कवि, वैज्ञानिक, राजनीतिज्ञ, दार्शनिक, विचारक और वे इन सभी भूमिकाओं में खरे थे। एक आम ग़रीब छोटे से परिवार होने के बावजूद भी उन्होंने कामयाबी के कई बड़े आयामों को तय किया और स्वयं को सिद्ध कर आसमान से भी ऊँची बुलंदियों को छुआ। वे एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जो अपनी प्रतिभा के बल पर भारत के राष्ट्रपति बने। अपनी दूरदृष्टि से उन्होने अपने सपनों का नहीं भविष्य का भारत देखा था। "मिशन 2020" इसका सबसे उपयुक्त उदहारण है। हम सब देशवासियों को इस भविष्य के भारत को भविष्य में नज़र आने जैसा बनाने के लिए "मिशन 2020" से जुड़ जाना चाहिए और इसे सच करने के लिए कलाम साहब के बताए सिद्धांतों पर चलना चाहिए। मेरी दृष्टि से यही डॉ कलाम को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
वो चमकता हुआ हीरा थे। जिसकी चमक भारत ही नहीं बल्कि सारे विश्व में फ़ैली, जो आज भी क़ायम है। वो हीरा हमने ज़रूर खो दिया मगर उसकी दी हुई चमक हमारे आस - पास आज भी बाक़ी है। क्यों ना हम सब इस चमक से लबरेज़ हो जाएं।
-अबुज़ैद अंसारी
अबुज़ैद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया (नई दिल्ली) जनसंचार मीडिया / पत्रकारिता के छात्र हैं। आप जीवनमैग के सह -संपादक हैं, और नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं।
डॉ .ए. पी. जे. अब्दुल कलाम को सभी भारत वसियोकी ओर से श्रद्धांजलि
ReplyDeleteinteresting , inspiring and surprising as well
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