आज से चार पांच वर्ष पहले जब एक मित्र ने मुझे यह बताया था, कि जावेद इकबाल जीवित हैं तो मुझे यक़ीन नहीं आया था। मैंने उससे कई बार प्रश्न किया था:"किया वही जवेद इकबाल' जो शायर-ए-मशरिक़ के पुत्र हैं ? जावेद इकबाल के नाम से मुझे वह घड़ी याद आ गई जब छठी कक्षा में कमर-ए-आलम सर ने इकबाल की एक कविता जिसका शीर्षक "जावेद के नाम " है' सुनाई थी। और इसकी पृष्ठभूमि बताते हुए कहा था कि यह कविता अल्लामा इकबाल ने अपने इसी पुत्र जावेद इकबाल के लिए लिखी थी।
इस याद के साथ जब मैंने जावेद इकबाल के जिंदा होने की बात सुनी तो दिल में एक हुल्बुलाहट सी होने लगी मेरा दिल कहने लगा मुझे उस हस्ती से अवश्य मिलना चाहिए तब मैंने सोचा था, कि मैं जावेद इकबाल से ज़रूर मुलाक़ात करूंगा मैं उस हस्ती से मिलूँगा जिसके शरीर में इकबाल का लहू दौड़ता है। मैं उस व्यक्ति से मिलूँगा जिसे इकबाल ने अपनी कोशिशों के द्वारा महानता के इकबाल तक पहुँचाया था। मैं उससे मिलकर उन हाथों को चूम लूँगा, जिन पर शायर-ए-मशरिक़ के स्पर्श मौजूद हैं। मेरी आँखों को उस बेटे का दीदार हो जाएगा जिससे इकबाल की यादें जुड़ी हैं। किन्तु यह सब सोचने के कुछ ही छणों बाद मुझे एहसास हुआ था, कि 62 साल पूर्व के बटवारे में इकबाल पाकिस्तान के हिस्से में चले गए थे, इसलिए आज भी उनका परिवार पाकिस्तान में निवास करता है। अतः जावेद इकबाल से मिलने के लिए मुझे संयुक्त विरासतें रखने वाली भूमि के बीच खड़ी की गई सीमा को पार करना होगा एवं इसको पार करने के लिए मुझे पासपोर्ट और वीजा प्राप्त करने होंगे, जिसका खर्च सहन करने की क्षमता मुझ में नहीं थी। तब फिर मैंने सोचा था कि जब मैं अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊंगा और कुछ धन इकट्ठा करलूँगा तो पासपोर्ट एवं वीज़ा प्राप्त करके अपने महबूब जावेद इकबाल से मिलने जाऊंगा परन्तु मेरे इस कल्पना के पूरा होने का प्रकृति ने इंतजार नहीं किया.और इसी 3 अगस्त को उनके देहान्त के साथ ही मेरा सपना अधूरा रह गया।
इस याद के साथ जब मैंने जावेद इकबाल के जिंदा होने की बात सुनी तो दिल में एक हुल्बुलाहट सी होने लगी मेरा दिल कहने लगा मुझे उस हस्ती से अवश्य मिलना चाहिए तब मैंने सोचा था, कि मैं जावेद इकबाल से ज़रूर मुलाक़ात करूंगा मैं उस हस्ती से मिलूँगा जिसके शरीर में इकबाल का लहू दौड़ता है। मैं उस व्यक्ति से मिलूँगा जिसे इकबाल ने अपनी कोशिशों के द्वारा महानता के इकबाल तक पहुँचाया था। मैं उससे मिलकर उन हाथों को चूम लूँगा, जिन पर शायर-ए-मशरिक़ के स्पर्श मौजूद हैं। मेरी आँखों को उस बेटे का दीदार हो जाएगा जिससे इकबाल की यादें जुड़ी हैं। किन्तु यह सब सोचने के कुछ ही छणों बाद मुझे एहसास हुआ था, कि 62 साल पूर्व के बटवारे में इकबाल पाकिस्तान के हिस्से में चले गए थे, इसलिए आज भी उनका परिवार पाकिस्तान में निवास करता है। अतः जावेद इकबाल से मिलने के लिए मुझे संयुक्त विरासतें रखने वाली भूमि के बीच खड़ी की गई सीमा को पार करना होगा एवं इसको पार करने के लिए मुझे पासपोर्ट और वीजा प्राप्त करने होंगे, जिसका खर्च सहन करने की क्षमता मुझ में नहीं थी। तब फिर मैंने सोचा था कि जब मैं अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊंगा और कुछ धन इकट्ठा करलूँगा तो पासपोर्ट एवं वीज़ा प्राप्त करके अपने महबूब जावेद इकबाल से मिलने जाऊंगा परन्तु मेरे इस कल्पना के पूरा होने का प्रकृति ने इंतजार नहीं किया.और इसी 3 अगस्त को उनके देहान्त के साथ ही मेरा सपना अधूरा रह गया।
हसन अकरम को श्रध्दांजलि !!
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