प्रज्वलित होता दीपक हूँ
शांति प्रकाश फैलाऊँगा
विकीर्ण होती अशांति पर
नीर बन गिर जाऊंगाछिन्न पत्र में फिर से मैं हरित क्रांति लाऊँगा
कृत्यों पर कोई पुरस्कार दे
पुरस्कार नहीं चाहूँगा
अविराम शांति विकीर्ण हो
गर्व से सिर उठा,
निर्भीक हो
पृथ्वी से व्योम तक
शांति प्रकाश फैलाऊँगा
कृत्यों पर कोई पुरस्कार दे
पुरस्कार नहीं चाहूँगा
पथ पर शूल हों
वायु में चिंगारियां
जल का सैलाब हो
हिमाद्रि सी पहाड़ियाँ
मूक होकर लक्ष्य को
स्वयं भेद जाऊँगा
कृत्यों पर कोई पुरस्कार दे
पुरस्कार नहीं चाहूँगा
-अबुज़ैद अंसारी
अबुज़ैद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया (नई दिल्ली) में जनसंचार मीडिया / पत्रकारिता के छात्र हैं। आप जीवनमैग के सह -संपादक हैं, और नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं।
Awesome bro
ReplyDelete