ख़्वाब की एक ख़बर आम करूं
चंद अल्फाज़ उनके नाम करूँ
मुझको ग़ालिब ने ये दुआ दी थी
ज़िंदगी तुमको रास आ जाए
ज़ेरे आब तेरी प्यास आ जाए
मेरी हालत अजीब है लेकिन
होश की पगड़ी बाँध रक्खी है
दुनियादारी सवार है मुझ पर
जिस पे सज्दा-गुज़ार होता जुनूं
वो मुसल्ला कभी ना बिछ पाया
इश्क की नमाज़ खाली गई
मुझको ग़ालिब की क्या दुआ लगती
चंद अल्फाज़ उनके नाम करूँ
मुझको ग़ालिब ने ये दुआ दी थी
ज़िंदगी तुमको रास आ जाए
ज़ेरे आब तेरी प्यास आ जाए
मेरी हालत अजीब है लेकिन
होश की पगड़ी बाँध रक्खी है
दुनियादारी सवार है मुझ पर
जिस पे सज्दा-गुज़ार होता जुनूं
वो मुसल्ला कभी ना बिछ पाया
इश्क की नमाज़ खाली गई
मुझको ग़ालिब की क्या दुआ लगती
गुलरेज़ शहज़ाद
जीवन मैग जनवरी 2014 अंक से उद्धृत- मूल अंक यहाँ से डाउनलोड करें - https://ia600505.us.archive.org/7/items/JeevanMag4/Jeevan%20Mag%204.pdf
जीवन मैग जनवरी 2014 अंक से उद्धृत- मूल अंक यहाँ से डाउनलोड करें - https://ia600505.us.archive.org/7/items/JeevanMag4/Jeevan%20Mag%204.pdf


 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
Waaah...waah
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