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अनमोल वचन

Thursday, 27 March 2014

होली और हम- आकाश कुमार (संपादकीय लेख, जीवन मग, फरवरी-मार्च 2014)


                             हो ली        

होली दरवाज़े पर खड़ी है पर फागुन की मस्ती शुरू हो चुकी है। सामाजिक एकता समरसता का सन्देश देता यह त्यौहार  भारतीय मानस के दिलों में विशिष्ट स्थान रखता है।
यह मौसम भी कुछ कुछ ऐसा ही होता है। ठंड जा चुकी होती है और लोग-बाग रजाइयों से निकल अपनी सुस्ती और आलस्य को विदा कर रहे होते हैं। फागुन के महीने में फिज़ा चंचल हो उठती है और मन-मयूर नाचने को उत्सुक। बच्चों में होली को लेकर दीवानगी देखते ही बनती है। हम बस इसी बात का इंतज़ार कर रहे होते हैं कि परीक्षाएं बीतें और फागुन की मस्ती में डूब जायें।
लोकसभा चुनावों के कारण इस बार होली भी चुनावी हो उठी है। नहीं नहीं, बेहतर यह कहना होगा कि इस बार होली से निकटता (समय के अन्तराल में) के कारण लोकतंत्र का उत्सव भी रंगीन हो चला है। सियासी गलियारों में सरगर्मी तेज हो चुकी है और नेतागण एक-दुसरे पर मुख की पिचकारी से आरोप रूपी रंगों की बौछार करने से बाज़ नहीं रहे। होली के अवसर पर अवसरवादी राजनीति प्रबल हो उठी है और नेता गिरगिट की तरह रंग बदलते फिर रहे हैं। 'राजनीति में कोई स्थाई दुश्मन नहीं होता' को चरितार्थ करते विरोधी पार्टियाँ गले लग रही हैं।

आप भी होली का मज़ा लीजिये और हाँ, दुसरों के जीवन में ख़ुशी के रंग भरना ना भूलियेगा |
   

आपका अपना दोस्त
आकाश कुमार 
(प्रमुख संपादक,जीवन मग) 



Excerpted from- Jeevan Mag Feb.- march 2014 issue

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