अपने अंदाज़ का असर कर के
बेख़बर हैं तुझे ख़बर कर के।
इतनी जल्दी भी क्या बुराई की
भाई ठहरो, ज़रा सबर कर के।
चाहे दंगा हो या हो जंग कोई
अब के जीना नहीं है डर कर के।
यह जो दुनिया है कितनी छोटी है
लौट आयें, देख के, सफ़र कर के।
तिश्नगी क्या है हम भी देखेंगे
किसी क़तरे को समंदर कर के।
रमाज़ बेदिल (मोतिहारी, बिहार से ताल्लुक रखने
वाले साज़िद फ़ारूक़ की शेरो-शायरी में गहरी दिलचस्पी
है और रमाज़ बेदिल के लेखकीय उपनाम से लिखा करते हैं।)
Ghazal in Roman text
Apne andaaz ka asar kar ke
bekhabar hain tujhe khabar kar ke
itni zaldi bhi kya burai ki
bhai thehro, zara sabr kar ke
chahe danga ho ya ho jang koyi
ab ke jeena nahi hai dar kar ke
yah jo duniya hai kitni chhoti hai
laut aayen, dekh ke, safar kar ke
tishnagi kya hai ham bhi dekhenge
kisi qatre ko samandar kar ke
Ramaaz Bedil
:)
ReplyDelete- Faisal