उम्मीद क्या थी क्या से क्या अंजाम हो गया
दिल आज फिर ये इश्क़ में नाकाम हो गया
अब तक वो बेवफ़ा यहाँ इज़्ज़त मआब है
मुझे पल नहीं लगा मैं बदनाम हो गया
उनको यक़ीं था अपनी बहोत बद्दुआओं पर
ज़िंदा मुझे वो देख कर हैरान हो गया
उनसे करीबियों पे दिल यू गया मचल
धड़कन ना हो गई तूफ़ान हो गया
बाद मरने के मेरे उनको यक़ीन-ए-वफ़ा हुआ
"ज़ैद" अपने ही दुश्मनों पे जब क़ुर्बान हो गया
अबूज़ैद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली में बारहवीं कक्षा के छात्र हैं. आप जीवन मैग के सह-संपादक हैं और नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं. |
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