विनीति नीति प्रीति की अजेय सनातन रीत है,
सुर असुर के फ़र्क में विनम्रता ही विपरीत है.
विनम्रता नहीं धूर्तता न इसमें अहं का दंश है,
यह आग्रह सत्य का परमात्मा का अंश है.
हित शत्रुओं के विनय ही खड्ग और ढाल है,
समुज्ज्वलित इसी में गांधी की मशाल है.
संग ढलते वय के अडिग दंत सब हिल गए हैं,
और खड़े ठूंठ तरु अंधड़ों में मिल गए हैं.
किंतु लचलचा जिह्वा करती सदा ही राज है,
और नत सफल दरख्तों के सर ही ताज है.
ज्ञान और मोक्ष की होती विनय से ही प्राप्ति है,
निहित इसी में सुख समृद्धि और ख्याति है.
अब जी रहा हूँ बस प्रभु मिलन के वास्ते ही,
हे प्रिय, ले चल मुझे विनय के रास्ते ही.
bahot khoob kavita hai.. apne aap me bahot gehrai liye huey..!!
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