सोमवार, 20 जनवरी 2014
उन बूढ़ी आँखों मेँ किसी विजेता सी खुशी थी, उनके हृदय मेँ एक सफल जीवन का ज्वार उमड़ रहा था। थरथराते हाथ जिसकी कसावट हड्डियोँ से चिपकी थी और उन दंभ भरती रगोँ मेँ अचानक आया वो उमंग उनकी उभरी रगों से ज़ाहिर था। मेरे चेहरे और कंधो को ऐसे सहला रही थी जैसे वो आश्वस्त होना चाहती हों कि उसका जीवन कितना सफल है... अपनी थरथराती होँठो से निकले उनके शब्द उनकी इस खुशहाली के आँसु के साथ घुल गए -"अफसोस ना करइत जइह, एक से हजार हो गेली अब हमरा की चाहीँ"। सरसो के फूलों की सुगंध हवा मे तैर रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी रागिनी ने अपनी पीली चुनर खेतोँ मेँ पसार रखी हो... दूर क्षितिज पर लाली इस बात का इशारा कर रही थी की उनकी ज़िंदगी की एक और शाम आने वाली है और इस संध्या में मैँ यह महसूस कर रहा था कि मैँ एक ऐसी धनी महिला के सामने बैठा हुँ और शायद ही यह मुकाम किसी की ज़िंदगी में आता हो...! वो किस्मत की धनी हैँ, वो उम्र की धनी हैँ, और इससे भी कहीँ ज्यादा वो उस परिवार की धनी हैं जिसकी जवां हो चौथी पीढी का हाथ थामे वो सहला रही हैँ। मेरे और उनके बीच एक शताब्दी का फासला हैँ, एक परंपरा, एक संस्कृति, एक सभ्यता, एक सोच का फासला हैँ...लेकिन ऐसा जान पड़ा कि जैसे वो मुझे सदियोँ से पहचानती हो। ऐसा नहीँ कि मैँ उनसे पहले नहीँ मिला लेकिन शायद उन्हेँ एहसास हैँ कि यह मुलाकात आखिरी होगी। वो मेरे दादी की माँ, पिता की नानी और ना जाने कितने गंगा की वो गोमुख हैँ। "हमरा परिवार ऐतना बरका है कि सब लोगन से घर भर जाई, तोहनी सके देख ले लिएई अब हमरा कौन शौक है अब चलता चल जबई, तु स निम्मन से रहीए।" जैसे उनके भावोँ को अब शब्द नहीँ मिल रहे हो कि कैसे ज़ाहिर करे कि उनके जिँदगी मे अब कोई कमी ना रह गई, वो हर किसी को अपनी कहानी सुनाना चाहती हैं। वक्त के पन्नों में उसे लिख देना चाहती हैँ कि सदियोँ यह दास्ताँ सुनाई जाती रहे। अपने सफल ज़िंदगी को खटोली के चार पाँव पर टिका वो अपनी दास्तां सुनाती रही और मैँ सुनता रहा। उनकी झुर्रियाँ जैसे उनके तमगे हो जो हर जीत पर वक्त ने उन्हेँ नवाजा हो। शायद यह मुलाकात उनसे आखिरी हो...कि कल को सरसराती हवा में उनकी यह सादगी कहीँ खो जाएगी उनकी साँसेँ खेतोँ के सुगंध में कहीँ घुल जाएँगी....और आत्मा उन्मुक्त परिंदों सा क्षितिज की ओर उड़ जाएगा.....तब वो याद की जाएँगी कि उन जैसा कोई ख़ुशनसीब ना था, उनके बिना यह परिवार मुमकिन ना था।
(डायरी के पन्नों से)
(अमिनेष आर्यन काशी
हिन्दू विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र स्नातक प्रथम वर्ष के छात्र
हैं। अमिनेष मूलरूप से बिहार के हाजीपुर से सम्बन्ध रखते हैं और जीवन मैग
की संपादन समिति के सदस्य हैं।)
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