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Thursday, 30 October 2014

यादों की बारिश- लोकआस्था का महापर्व छठ

अक्टूबर २९, २०१४ 
फ़ीनिक्स, एरिज़ोना (सं.रा. अमेरिका)

पूरब से उदित होता तथा पश्चिम में अस्तांचल पर सूर्य…ये प्रकृति के सबसे सुन्दर, सुलभ तथा मनोहारी दृश्य हैं। घटित तो ये प्रतिदिन होने हैं पर आज के मशीनी मानव की फ्लॉपी डिस्क में इन लम्हों के लिए शायद ही कोई जगह हो। 

सूर्योपासना का अनुपम लोकपर्व छठ बस एक कर्मकांड या रीति-रिवाज़ भर नहीं है, यह तो प्रकृति से अपने जुड़ाव पर पुनर्विचार करने का पावन अवसर है। यह अवसर है जीवन के उस शाश्वत सत्य को समझने का कि जैसे प्रकृति में उषा और प्रत्युषा के बीच संतुलन बना रहता है वैसे ही जीवन में सुख-दुःख तो लगे रहते हैं- मानव का तो काम है बस सुखभरे पलों का आनंद ले, दुखभरे पलों को विस्मृत कर सदा गतिमान बने रहना। ठहराव प्रकृति का स्वभाव नहीं… भला नदी भी कहीं रूकती है क्या?

बिहार, नेपाल तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जानेवाला यह त्यौहार भले ही आंचलिक क्यों न हो, इसकी जड़ें मानव इतिहास के प्रथम ग्रन्थ वेदों में निहित हैं। षष्ठी तिथि खगोल-विज्ञान के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। छठ पर्व पूर्णतया वैदिक तथा वैज्ञानिक है। 

अमिनेष जी के भेजे गये ये सजीव चित्र जाने-अनजाने में जेहन में पूर्व की स्मृतियों का कोलाज़ तैयार कर रहे हैं।  दिमाग फ्लैशबैक में जा रहा है और याद आ रही हैं वो छोटी-छोटी मीठी-मीठी बातें … साल के बाकी दिनों में कचरे से भरा रहने वाला वो छठ घाट जो हर साल बस इस महापर्व के आगमन की बाट जोहता रहता है.…कि कब छठ आये और उसकी सफाई हो। फलप्राप्ति की आस में धरती पर लेटकर दंड देते छठ घाट पहुँचते लोग।  माथे पर दउरा उठाये आते पुरुष तथा उसके पीछे नाक तक सिंदूर का आवरण किये महिलाएं। प्रशासन के लाख मन करने के बावज़ूद पटाखों का जमकर लुत्फ़ उठाते हम बच्चे। लाउडस्पीकर पर अनवरत जारी छठ के लोकगीत। और हाँ, हाथ जोड़े कमर तक पानी में खड़े श्रद्धालु .... अविस्मरणीय।
आज  सात समंदर पार बैठकर भी ये चीज़ें याद आ रही हैं। कुछ नहीं, बस अंदर बैठे मानव की अनुभूत चेतना है। सोचता हूँ क्या हमारी पीढ़ी इस अद्वितीय परंपरा के संरक्षण तथा निर्वहन की भूमिका भली-भांति निभा पाएगी?


आकाश कुमार जीवन मैग के प्रमुख संपादक तथा सम्प्रति YES कार्यक्रम के तहत अमेरिका में भारत के युवा राजदूत हैं। बिहार के मोतिहारी से आते हैं तथा फिलहाल माउंटेन व्यू हाई स्कूल, मेसा (एरिज़ोना) में कक्षा बारहवीं के छात्र हैं।







फोटो क्रेडिट्स- अमिनेश आर्यन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में स्नातक के छात्र तथा जीवन मैग की संपादन समिति के सदस्य हैं। अंकित कुंदन दुबे छात्र, स्वतंत्र टिप्पणीकार तथा जीवन मैग के टीम मेंबर हैं।


अमिनेष और अंकित के कैमरे ने छठ की तैयारी की कुछ और बेहतरीन तस्वीरें कैद कीं-





Sunday, 26 October 2014

आशा- अभिनव सिन्हा

सूरज पश्चिम में उतर रहा है,
दिन लेकिन अभी बाकी है,
जो डूब रही है
वो मेरी साँसे है,
एक अद्भुत सी लालिमा
छाई है आकाश में,
रूह से रिश्ता टूटने को है,
लेकिन
अब भी लगता है
कि कोई बचा लेगा,
बुला लेगा,
टुटते तारों की ख्वाहिशों में
पुकार के। 



अभिनव सिन्हा कक्षा बारहवीं के छात्र हैं तथा मोतिहारी, बिहार से ताल्लुक रखते हैं। इनकी कवितायेँ अंतस से छनी हुई आवाज़ सी होती हैं, लेशमात्र भी कृत्रिमता नहीं।


Roman Text

Sooraj paschim me utar raha hai,
din lekin abhi baaki hai,
jo doob rahi hain,
wo meri saanse hain
ek adbhut si lalima
chhai hai akash me.
rooh se rishta tootne ko hai,
lekin
ab bhi lagta hai
ki koi bacha lega,
bula lega,
tootte taaron ki khwahison me
pukar ke.


Wednesday, 22 October 2014

अपने अंदाज़ का असर कर के- रमाज़ बेदिल

 
 अपने अंदाज़ का असर कर के
 बेख़बर हैं तुझे ख़बर कर के।
 इतनी जल्दी भी क्या बुराई की
 भाई ठहरो, ज़रा सबर कर के। 
 चाहे दंगा हो या हो जंग कोई
 अब के जीना नहीं है डर कर के। 
 यह जो दुनिया है कितनी छोटी है
 लौट आयें, देख के, सफ़र कर के।
 तिश्नगी क्या है हम भी देखेंगे
 किसी क़तरे को समंदर कर के
 

रमाज़ बेदिल (मोतिहारी, बिहार से ताल्लुक रखने 
वाले साज़िद फ़ारूक़ की शेरो-शायरी में गहरी दिलचस्पी 
है और रमाज़ बेदिल के लेखकीय उपनाम से लिखा करते हैं।) 

 
 
 
Ghazal in Roman text
 
Apne andaaz ka asar kar ke
bekhabar hain tujhe khabar kar ke
itni zaldi bhi kya burai ki
bhai thehro, zara sabr kar ke
chahe danga ho ya ho jang koyi
ab ke jeena nahi hai dar kar ke
yah jo duniya hai kitni chhoti hai
laut aayen, dekh ke, safar kar ke
tishnagi kya hai ham bhi dekhenge
kisi qatre ko samandar kar ke
 
Ramaaz Bedil 

Monday, 20 October 2014

साहित्य की बात, राघव के साथ-1

यूँ तो मेरा काम इस बार के इस कॉलम में शायरी, ग़ज़ल, या कविता लिखने के तरीके पे कुछ लिखना था| मगर अभी तो शुरुआत हुई है इसलिए मैंने सोचा की बेहद टेक्निकल होकर, कविता और ग़ज़ल के व्याकरण पर बात करने से पहले थोडा तवारुफ़ कर लें|
अब शायरी करना, ग़ज़ल लिखने के लिए स्कूल तो नहीं बनाये जा सकते, यह फ़न, यह हुनर कहीं किताबें पढ़कर नहीं सिखा जा सकता| बशीर साहब ने कहा था, “दुनिया में कहीं इनकी तालीम नहीं होती, दो चार किताबों को बस घर में पढ़ा जाता है”| ये गज़लसराई का हुनर भी कुछ ऐसा ही है| फिर आप ये भी पूछेंगे कि जब ये हुनर सिखाने से सीख नहीं सकता कोई, जब इसे बताया जा नहीं सकता तो इस कॉलम का क्या मतलब है भाई? तो हुजूर, बात को एक बार फिर से जरा ग़ौर से देखने और समझने की जरूरत है| यूँ तो आप ग़ज़ल का व्याकरण पढकर ग़ालिब और मीर नहीं बन सकते, मगर फिर भी जरुरी है कि आप इसे जानें| सिर्फ लिखने के लिए, ग़ज़ल को पढ़ पाने के लिए भी, अच्छी ग़ज़ल की तारीफ कर पाने के लिए जरुरी है कि आप जानें| यकीन मानिये, जब किसी के आश’आर पर तालियाँ बजती हैं, सब लोग वाह-वाह कर रहे होते हैं, उस वक्त वो गज़लसरा ये ढूंढ रहा होता है की इस भीड़ में कौन है जो शायरी समझता है, जो इन  अश’आर के मानी समझता है, और अगर कोई सच्चा सुनने वाला मिल जाये तो फिर सुनाने का मज़ा आ जाता है, वर्ना फिर ग़ज़ल पढना सिर्फ एक रस्म-अदायगी मात्र बन जाती है| और एक बात यह भी है कि जैसे कि कबीर ने कहा था, “हीरा तहाँ ना खोलिए जहाँ कुंजरों की हाट . . . ” एक अदीब शख्स अपने नायाब हीरे तबतक आपके सामने नहीं खोलेगा जबतक कि उसको ये अंदाज़ा नहीं होता की आप उस लायक हैं| जब कोई अपनी रचना पढ़ रहा होता है, उसे सबके सामने रख रहा होता है तो आपको अंदाज़ा हो या न हो, वो तमाम राज़, तमाम बातें आपसे कहने को मुखातिब होता है जो उसने अपने दम भर खुद से भी छुपा रखा हो, ऐसे में ये उसके लिए आसान नहीं होता, इसलिए वो चाहता है कि उसके श्रोता अच्छे हों|
इस कॉलम में हम ग़ज़ल लिखना नहीं बल्कि ग़ज़ल को एप्रेसीएट करना सीखेंगे | उम्मीद है की आप इससे मुतास्सिर होंगे और अच्छी ग़ज़लों को पढ़ पाएंगे, सुन पाएंगे, समझ पाएंगे, और शायद लिख भी पाएंगे | ग़ज़ल, शायरी या कविता को समझ पाना शायद लिख पाने से ज्यादा कठिन काम है क्योंकि लिखने वाला तो खुद नहीं लिखता, भावनाएं बहा ले जाती हैं, शब्द बहने लगते हैं, बस लिखने वाला तो उसके प्रवाह को थोडा संवार देता है, रचनाओं में उसको जब महबूब दिखने लगता है तो वो अपने महबूब को जितना सजा पाता है सजाता है, मगर श्रोता या पाठक की जिम्मेदारी उससे बड़ी होती है| पाठक या श्रोता को बहुत दूर-दूर तक जाना होता है और कई बार वो जब लिखने वाले के स्वभाव, उसके परिवेश, उसकी संस्कृति, उसके इतिहास को नहीं जनता होता तो वो असली मायने नहीं जान पाता, वो वहां पहुच नहीं पाता जहाँ उसे जाना होता है| भावना का ज्वार उठा देना बेशक कविता का काम है इसलिए इसकी जिम्मेदारी लिखने वाले के सर पर होती है, मगर उसकी खूबसूरती को देख पाने के लिए कुछ कदम चलकर किनारे तक आना सुनने वाले की भी जिम्मेदारी है| हमारी कोशिश ये रहेगी कि हम खुद भी ज़िम्मेदारियों के लिए तैयार हो पाएं और आपको भी एक अच्छे पाठक, एक अच्छे श्रोता और एक अच्छे कवि की ज़िम्मेदारियाँ बता ज़िम्मेदार बना सकें|
एक अच्छी रचना के लिए (लिखने और पढने दोनो के लिए) आपको बहुत कुछ जानना होता है, समझना होता है मसलन जुबान, थोड़ा इतिहास और यूँ ही थोड़ा-थोड़ा बहुत कुछ| जैसे अब परवीन शाकिर एक नज़्म में लिखती हैं, 
 “मैं वो लड़की हूँ,
    जिसको पहली रात
          कोई घूँघट उठा के ये कह दे ---
                  मेरा सबकुछ तुम्हारा है, दिल के सिवा |”

अब इसको समझने के लिए भारतीय उपमहाद्वीपीय प्रेम की परम्परा का कुछ अनुभव तो होना चाहिए| इसी तरह जब भी एक शायर शीरीं-फरहाद का ज़िक्र करता है तो आपको उनके बारे में मालूम होना चाहिए| जब मीर कहते हैं : 
“क्या कहिये अपने ‘अहद में जितने अमीर थे,
टुकड़े पे जान देते थे, सारे फ़कीर थे||” 

अब ये शेर समझने ले लिए सं १७००-१८०० की दिल्ली के बारे में आपको मालूमात होनी चाहिए वर्ना आप न जाने क्या अर्थ निकालेंगे? और फिर ये सब जानने के आलावा जुबां जानना भी बहुत जरुरी है, और उससे भी बढ़कर है लफ़्ज़ों का सलीके से इस्तेमाल करना आना अब ज़ाहिर है की लफ्ज़ तो आप सीख सकते हैं मगर उन लफ़्ज़ों की कारीगरी को समझने के लिए आपको पढना पड़ेगा, ठीक वैसे ही जैसे ताजमहल के शिल्प को देखने के बाद ही आप समझ सकते हैं की उसकी क्या खूबी है|
अब देखिये परवीन शाकिर एक नज़्म में कहती हैं –
 “... तुमने मेरा स्वागत उसी अंदाज़ में किया,
 जो अफासराने-हुकूमत के एटीकेट में हो|” 
अब इसमें जिस खूबसूरती से अंग्रेजी के लफ्ज़ मिल जाते हैं कि एकबारगी आपको महसूस भी नहीं होता की कैसे आपने भाषाओँ की सरहद तोड़ दी है| और ये इकलौता उदहारण नहीं है बशीर बद्र की शायरी में जब आप पाते हैं कि  
वो जाफरानी पुलोवर उसी का हिस्सा है, 
कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे
"  
या फिर 
थके थके पेडल के बीच चले सूरज,
 घर की तरफ लौटी दफ्तर की शाम।” 
ये भाषा को खूबसूरती से जोड़ने का तरीका है, ये हुनर लिखते हुए, पढ़ते हुए ही आयेगा| हाँ, मगर इस हुनर की तारीफ करना तो हम आप मिलकर सीख ही सकते हैं| ग़ज़ल या छंद के व्याकरण और जुबां के तमाम कायदे कानूनों के बाद, बहुत कुछ नया करने की आज़ादी भी है, ये जरुरी नहीं की लिखने से पहले आप हर चीज़ को व्याकरण के पैमाने में नाप तौल कर देखें, और कई बार आप जान बुझ कर व्याकरण के उन नियमों को चुनौती देते हैं| इस तरह से लेखन में भी बहुत कुछ नया होता रहता है, इनोवेशन का स्कोप है लिखने में भी| हां मगर इसके लिए आपको पहले तैयार होना चाहिए, व्याकरण के नियमों को न मानना और न जानना दोनो अलग बातें हैं| तो आप जानिए सबकुछ फिर आपकी मर्ज़ी है, आपके अपने बिम्ब हैं, अपनी स्टाइल है, सिर्फ कुछ पुराने नियमों की वजह से आप उनसे समझौता नहीं कर सकते|
कुल मिलाजुला कर हम इस कॉलम में यूँ ही कुछ हलकी-फुलकी बातें करेंगे| कभी कुछ व्याकरण की बातें करेंगे| कभी कुछ गज़लें, कवितायेँ ऐसी भी पढेंगे जिसमे कुछ नया जानने और सीखने को मिले|
और अंत में बस इस सबके बहाने कुछ गज़लें कहना, कुछ सुनना शायद सीख लें|
आख़िर  में बशीर बद्र का एक शेर :
            मुसाफ़िर हैं हम भीमुसाफ़िर हो तुम भी, 
              किसी मोड़ पर फिर मुलाकात होगी। 


राघवेन्द्र त्रिपाठी 'राघव'  
(लेखक जीवन मैग के संपादन समिति के सदस्य हैं। आप दिल्ली विश्वविद्यालय में बी.टेक/ बी.एस इन इनोवेशन विद मैथ्स एन्ड आइटी के छात्र हैं तथा ग़ज़ल में गहरी रूचि रखते हैं.)

Tuesday, 14 October 2014

Mark Zuckerberg and the free internet utopia

The Facebook Founder- CEO, Mark Zuckerberg just visited India.Some people have an opinion that he is doing some innovation again & some say that he is working on a free internet program for India. Some think that he came to India just for the internet.org summit while some envision him taking India to the Global level. (You gotta kidding me, it's just FB level)

As we know that India is develping rapidly, the number of internet users is increasing. A large section of the internet-addicts have a utopian vision that we are going to have a free internet service. It would mean that I would be able to play games online for free. It means that I would be able to watch my favorite movies for free. It means that we would be able to access the online courses for free. No, absolutely not. Facebook is partnering with Airtel to bring a kind of free internet service which would just mean a free Facebook access. Might be a free access to WhatsApp & Instagram too because they are owned by Facebook. But, certainly not any of the productive things mentioned earlier.
So, Facebook is just working on business agenda. The more we spend our time Facebooking, the more we kill our time expanding the profit of Facebook. Don't get it wrong! I am not against Facebook usage. I am just making a point that how can Facebook show a totally commercial project as a philanthropic one.


Zuckerberg met PM Modi on his India visit & Mr. PM was delighted to have him! And why not, Facebook has played a crucial role in his election campaign. So, he owes Mr. Zuckerberg too.

So, Mark Zuckerberg said- "Internet connectivity is a human right." Then why does this internet connectivity only means Facebook connectivity? "When one billion are offline, the world is robbed of ideas"- What type of ideas? I don't know, even u too, I think. He stated that he wants to empower the Indian youth. Is that just possible with facebook?
Zuckerberg said  "Lack of relevant local language content is why most Indians don't use internet". True, but what would Facebook be doing in this regard?
"I Want to help build an internet which is affordable for everyone". Great, but can he promise to build it to provide us an edutaining experience, an experience which would not just be restricted to Facebook?

Vikash Anand Jha is Public Relations officer at JeevanMag.com. He hails from East Champaran, Bihar & is pursuing B.Tech from Maharshi Arvind Engineering college, Jaipur.

Tuesday, 7 October 2014

ग़ज़ल - उम्मीद क्या थी- अबूज़ैद अंसारी


उम्मीद क्या थी क्या से क्या अंजाम हो गया
दिल आज फिर ये इश्क़ में नाकाम हो गया

अब तक वो बेवफ़ा यहाँ इज़्ज़त मआब है
मुझे पल नहीं लगा मैं बदनाम हो गया

उनको यक़ीं था अपनी बहोत बद्दुआओं पर
ज़िंदा मुझे वो देख कर हैरान हो गया

उनसे करीबियों पे दिल यू गया मचल
धड़कन ना हो गई तूफ़ान हो गया

बाद मरने के मेरे उनको यक़ीन--वफ़ा हुआ
"
ज़ैद" अपने ही दुश्मनों पे जब क़ुर्बान हो गया



अबूज़ैद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली में बारहवीं कक्षा के छात्र हैं. आप जीवन मैग के सह-संपादक हैं और नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं.


Monday, 6 October 2014

हर ओर विज्ञान है- अबूज़ैद अंसारी

विज्ञान है विज्ञान है हर ओर विज्ञान है 
वैज्ञानिक कार्यो से समस्याओं का समाधान है
जाएं यहाँ जाएं वहाँ जाएं चाहे जहाँ, हर मदद विज्ञान है

विज्ञान की ही मदद से मानव पंहुचा चाँद तल पर
वह दिन दूर नहीं जब मानव होगा मंगल पर

विज्ञान ने हमको दिया वायुयान और मोटर
पर मुझे अफ़सोस इसके साथ है प्रदूषण
हमें इन समस्याओं का निकालना समाधान है

विज्ञान है विज्ञान है हर ओर विज्ञान है

दुनिया में अंधविश्वासों की दीवारें तोड़ता विज्ञानं है
हज़ारों मील दूर बैठे व्यक्ति से जोड़ता विज्ञानं है

परग्रही हों या हों हम, सबके पास विज्ञानं है
पर एक दिन विज्ञान मेरा इतना आगे जाएगा
परग्रही क्या चीज़? सब रहस्य खोल कर बतलाएगा

अभी धरती पर क्या हुआ? यह तो बस विज्ञान की शुरुआत है
भविष्य का दूसरा नाम विज्ञान की ही बात है

विज्ञान है विज्ञान है हर ओर विज्ञान है 



अबूज़ैद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली में बारहवीं कक्षा के छात्र हैं. आप जीवन मैग के सह-संपादक हैं और नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं.

Wednesday, 1 October 2014

Diary of an inquisitive teen- Delhi to DC- Akash

New Delhi, India
August 11, 2014


Life is standing at a critical turn and the reminiscent of ‘The road not taken’ by Robert Frost dawns on me.

“Two Roads diverged in the yellow wood  
  And I- I chose the one less traveled by.”
Well, as a matter of fact, I don’t know if it’s going to make a big difference in my life or not. But, good or bad, it’s going to be an experience. This year is not just going to be a year, but “my life in a year”. I have done something off-track and I am proud of it.
At the time when my inner fire was going out, this opportunity came to rescue and the fire inside this creative cat was rekindled even at a greater pace. I was chosen as the youth ambassador of India to the United States on YES program sponsored by the Department. Thanks to AFS (the recruitment and placement organization) & YES, now I really know where my passion really lies.
AFS Gateway Orientation at New Delhi

We (The group of 33 individuals accompanied by our ever-charming AFS Coordinator Sonam Mam) are all set to bid a goodbye to India- our beloved motherland, “the cradle of human civilization” in the words of Mark Twain. The bus is waiting and here I am, diving in the thoughts which seem to traverse the infinite. “Hmmm….Sweets! Sweets!” Having sweets before a travel is a sign of good omen in the mystically beautiful Indian tradition. In no time, we are at the airport. Separation brings love at times- the whole set of my mates turning nationalist at the instant and shouting “Vande Matram” (Mother India, I salute to thee) at the top of their voices is a live testimonial of the saying. 




The best wishes from the AFS team is instilling a sense of responsibility & after a while’s wait, the United Airlines UA083 flight takes off to the voyage of our dreams from the New Delhi airport to land the next morning (even 16 hours journey is just a night’s journey because of the huge time difference) at the Newark airport in New Jersey.

                            

 

Mesa, Arizona, USA
September 30, 2014


It has been about a month and a half since I came here. There was a lot to do & despite of the heart’s urge to jot down the memoirs has proved to be futile. But, I assure myself that I’ll maintain my journal from now on. A large amount of water has flown in the Ganges (or Mississippi) during this period & nearly the same amount of events have taken place in my life. So where was I? Yes, We reached Newark & than to Washington DC by bus. The journey which started from the capital of the largest democracy in the world has ended in the capital of the oldest modern democracy of the world. There is a solid reason behind the use of “modern” while referring to the US as the oldest democracy. The reason is that even Democracy is an Indian brainchild. The oldest democracy - the Vaishali republic, again in India & not far from my house. dates back to the sixth century BC. In this column, I’d try to give you a rough comparison & contrast of the American & Indian society and culture. 


So, yes, I was in Washington DC & there we had had a huge gathering of student ambassadors from several countries assembled at the Hilton hotel & ready to represent their country & culture in the US society. Meeting such wonderful people from across the globe was fun. It was really a huge opportunity to learn from each others culture & discovering some astonishing facts. 

I even met some girls of Indian origin who were representing South Africa. Their forefathers had left home in the colonial period to work on African farms or so. Exchanging the currency with one of those girls was really unforgettable. The Indian Rupee with Gandhi over it & the South African Rand with Mandela over it- we exchanged the tradition of the great souls who showed the world a peaceful way of demonstrating anger & protest, non-violence- appealing directly to the conscience of the adversary. 


The food at Hilton the first day- all the Indians were terrified. “Is it what we are going to eat the whole year? God forbid!” But the second day came with a culinary advantage. One of the Indian cooks of the hotel (Indians are spread everywhere on the planet!) cooked Indian food & he cooked it terribly well. The appetite of each one of us got inflated in an instant & we had a big, big feast. So, that was Washington DC. 


On August 14, I flew to Phoenix only to have another orientation program. So, orientation after orientation from Delhi to DC and now in Phoenix but believe me I was never sick of them because of the charming AFSers. But What I waited for was a meet with my host family, the people with whom I was going to spend my next 10 golden months. The Phoenix orientation was yet another lesson meeting guys and girls from the Scandinavian countries with broader mindsets & a huge rift in personality, thoughts & opinions. But what I remembered was the golden mantra of Intercultural learning “No two cultures are better or worse, they are just different.” The excitement hit the climax when I finally met a girl from Pakistan, India’s neighbor as well as undeclared & “so-called” arch-rival. We were the only ones who could talk in the same language & we talked a lot on the perceptions of people in our countries. It was August 15, the independence day of India & all the exchange students from different parts of the world celebrated it for me. It was a moment of sheer joy & pride undoubtedly. I’ll resume from my experience here in Mesa in the next column.
                             
Wait, let me cover two big international headlines which have something to do with India. So, the first thing is that India became the first nation to succeed in its maiden voyage to Mars! Indian Space Agency- ISRO's Mars Orbiter Mission Mangalyaan created history marking India as one of the space- superpowers! It took just one-tenth money of a common mars probe & is even cheaper than the budget of Hollywood movie 'Gravity'! India thus joined the elite club of 3 other space entities, USA, Russia & European Union to have a mars mission! 


The second news is of a man once denied US Visa getting a rock star reception at the Madison Square Garden, New York as 18000 Indian-Americans poured their heart out for welcoming ‪Indian Prime Minister‎ Narendra Modi in America! More than 30 US lawmakers were testimony to the pomp & show of the occasion. He also addressed around 60000 American youth at the central park with Hugh Jackman! He met with president Obama at the white house and both the leaders talked about global issues & even wrote a joint article for The Washington Post.The upcoming years are likely to envisage growing Indo-US ties.

Thanks for reading! If you liked this article or any suggestions regarding it, mail me at akashmanofsky@gmail.com 
 India’s first online bilingual magazine by students www.jeevanmag.com
 For my other articles, visit akash.jeevanmag.com 

Also in the series:
Life of an inquisitive teen 2: http://www.jeevanmag.com/2014/11/diary-of-inquisitive-teen-life-in-america.html

(Image Credits: Google Images, Nisarg Shah, Mandar Shah, ISRO & Getty images)

(Akash Kumar is the Editor-in-chief of JeevanMag.com 
A Senior grader at Mountain View High School in Mesa, Arizona (USA), he is India's youth ambassador to US on a Department of State program. He hails from Motihari, Bihar, India.)
This article was also published in The Groves Report, a newspaper in the United States- http://issuu.com/timespub/docs/groves-full-1114/13?e=8633901/10026604


And, was featured on the official YES website of US government-
http://yesprograms.org/impact/story/taking-road-less-traveled-american-experience

A series of skype group conversations beetween students from India & Pakistan

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Editor-in-chief Akash Kumar Executive Editor Nandlal Mishra Associate Editor AbuZaid Ansari Publisher Blue Thunder Student AssociationShared by WpCoderX
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