आज अपने एक महत्वपूर्ण सफ़र (बताना ज़रूरी नहीं है) के सिलसिले में ट्रेन की यात्रा का आनंद उठाता जा रहा हूँ..... यात्रा के दौरान एक से एक रोचक कारनामों के दीदार हो रहे हैं..... (हंसते हँसते पेट ढीला हो गया है)
देखिए ना अभी अभी एक ठंडा (नाम का ठंडा) बेचने वाला 'कोका-कोला' को 'कंपा-कोला' कहते हुए गुज़रा तो पीछे से 'मूँगफली' को 'मोमफ़ली' कहता हुआ दूसरा आ धमका...नारियल और रामदाना वालों की तो पूछो ही मत... (उनकी महिमा राम ही जाने)..... अपनी अज़ीबो ग़रीब आवाज़ में एक से एक चीज़ें बेचते हुए मेरे बर्थ के सामने से गुज़र रहे हैं....
इसी दरम्यान एक बादाम वाला राग भैरवी में 'बादाम बोलो... बादाम बोलो...' अनवरत चिल्लाए जा रहा था... मैं गुस्से में 'बादाम...बादाम...' बोलने लगा.... मगर वो अपनी ही धुन में गुनगुनाता अगले डिब्बे की ओर बढ़ गया.... (वैसे भी बादाम का दाम केजरीवाल की टोपी की कीमत से कम नहीं था...)....!
विख्यात बड़बड़िया
(लेखक सनबीम स्कूल, वरुणा, बनारस
में 11वीं कक्षा के छात्र हैं.)
(ये लेखक के अपने विचार/व्यंग्य हैं)
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