अब तक जो मेरी सोच से बाहर थी जो आँखें
ख्वाबों में ना सोची थी कभी सागर सी वो आँखें।
टकराई है जबसे ये नज़र, उनमें डूब गया हूँ
वल्लाह ! अजब बात, मैं झूठा नहीं हूँ ।।
क़ुदरत के नज़ारे तो बहोत सारे थे देखे
दरिया भी कभी देखी, समुंदर कभी देखे।
रातों में सितारे भी नहीं हों ऐसे रोशन
वल्लाह ! ऐसी रोशन समुंदर सी दो आँखें।।
उन आँखों से टकराई ही क्यों?
मेरी पत्थर सी ये आँखें।
पाने की चाह दिल में उस शख्श को जागी है
जिस शख्श को हासिल ये समुंदर सी दो आँखें।।
वो दूरी बनाकर मुझे तड़पाता बहोत है
अफ़सोस नहीं मुझको सितम ढाता बहोत है।
दिल की गहराई से करता हूँ शुक्रिया
जब देखतीं हैं मुझको वो समुंदर सी दो आँखें।।
अब तक जो मेरी सोच से बाहर थी जो आँखें
ख्वाबों में ना सोची थी कभी सागर सी वो आँखें।
लिखता नहीं "ज़ैद" यूँ ग़ज़ल सफ़र में
याद आती हैं हरदम उसे वो समुंदर सी दो आँखें।।
अबूज़ैद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली में बारहवीं कक्षा के छात्र हैं. आप जीवन मैग के सह-संपादक हैं और नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं. |
सुबहानअल्लाह!!! क्या बात है!!!
ReplyDeleteउत्कृष्ट
ReplyDeleteवाह :)
ReplyDeleteDhanyawaad.... Keep Visiting www.jeevanmag.com
DeleteLajawab
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