बात बिहार की है. जब भूतपूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उर्फ सुशासन बाबू सत्ता में आये तो ताबड़तोड़ सरकारी स्कूलों में मिड-डे-मिल परोसा जाने लगा. पहले लड़कियाँ और फिर बाद में लड़कों को भी साइकिलें नसीब हुई. इस शुभ कार्य के पीछे सीएम साहब का तर्क था कि बच्चे स्कूल नहीं जाते, अतः उन्हें लालच देने के लिए हमने इस ऐतिहासिक कार्य को अंजाम दिया, इस तरह शिक्षा का विकास होगा.
परन्तु, अगर मानसिकता ये है तो फिर इसी तर्ज पर फौरन बिहार के कॉलेजों में पनीर, चिकेन, मटन और मोटरसाइकिल बांटा जाना चाहिए था. पी. एच. डी. वाले बच्चे को कार ही बाँट देते. कॉलेज में एक डिपार्टमेंट ऑफ बीयर एंड रम कॉर्नर बनवा देते. इस तरह से उच्च शिक्षा को चौतरफा बढ़ावा मिलता और आज बिहार का बच्चा-बच्चा अपने नाम में डॉ. हीं नहीं लगाता बल्कि देश के सारे उच्चपदों पर आज बिहार के ही उच्च-शिक्षित लोग पदासीन होते.
नीतीश कुमार के इस्तीफे के बाद बड़े-बड़े लोगों ने ये कहा कि सूबे में विकास हुआ. लेकिन सच्चाई ये है कि लगभग अपने साढ़े-आठ साल के कार्यकाल में भूतपूर्व मुख्यमंत्री ने कुछ पुल बनवाये, कुछ बहुत ही अच्छी सड़कें बनवाई, कानून-व्यवस्था को पहले से थोड़ा ठीक किया एवं राज्य के कोने-कोने में सरकारी शराब भठ्ठियों की स्थापना की और बड़े ही बेशर्मी से कह दिया कि हमने विकास किया. अगर ये विकास है तो फिर वो क्या है जो बारह सालों में मोदी ने गुजरात में किया. समय मायने रखता है. साढ़े-आठ सालों में जो हुआ उसे विकास नहीं कहा जा सकता.
खैर, जिन लोगों को ये लगे कि बिहार का विकास हुआ है वो सावन में एक बार बिहार आयें, सड़क पर चलते समय जब दोनों पैर बिना ढ़क्कन के गटर में जायेगा तो विकास का सुखद एहसास होगा.
 — कुमार शिवम् मिश्रा  जीवन मैग की संपादन समिति के सदस्य हैं. आप कॉमर्स कॉलेज, पटना में अंग्रेजी स्नातक (द्वितीय वर्ष) के छात्र हैं.
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****लेख के विषय-वस्तु से संपादन मंडली का राज़ी होना ज़रूरी नहीं है.***
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परन्तु, अगर मानसिकता ये है तो फिर इसी तर्ज पर फौरन बिहार के कॉलेजों में पनीर, चिकेन, मटन और मोटरसाइकिल बांटा जाना चाहिए था. पी. एच. डी. वाले बच्चे को कार ही बाँट देते. कॉलेज में एक डिपार्टमेंट ऑफ बीयर एंड रम कॉर्नर बनवा देते. इस तरह से उच्च शिक्षा को चौतरफा बढ़ावा मिलता और आज बिहार का बच्चा-बच्चा अपने नाम में डॉ. हीं नहीं लगाता बल्कि देश के सारे उच्चपदों पर आज बिहार के ही उच्च-शिक्षित लोग पदासीन होते.
नीतीश कुमार के इस्तीफे के बाद बड़े-बड़े लोगों ने ये कहा कि सूबे में विकास हुआ. लेकिन सच्चाई ये है कि लगभग अपने साढ़े-आठ साल के कार्यकाल में भूतपूर्व मुख्यमंत्री ने कुछ पुल बनवाये, कुछ बहुत ही अच्छी सड़कें बनवाई, कानून-व्यवस्था को पहले से थोड़ा ठीक किया एवं राज्य के कोने-कोने में सरकारी शराब भठ्ठियों की स्थापना की और बड़े ही बेशर्मी से कह दिया कि हमने विकास किया. अगर ये विकास है तो फिर वो क्या है जो बारह सालों में मोदी ने गुजरात में किया. समय मायने रखता है. साढ़े-आठ सालों में जो हुआ उसे विकास नहीं कहा जा सकता.
खैर, जिन लोगों को ये लगे कि बिहार का विकास हुआ है वो सावन में एक बार बिहार आयें, सड़क पर चलते समय जब दोनों पैर बिना ढ़क्कन के गटर में जायेगा तो विकास का सुखद एहसास होगा.
 — कुमार शिवम् मिश्रा  जीवन मैग की संपादन समिति के सदस्य हैं. आप कॉमर्स कॉलेज, पटना में अंग्रेजी स्नातक (द्वितीय वर्ष) के छात्र हैं.
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