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Friday, 13 June 2014

गुलरेज़ शहज़ाद की ग़ज़ल

आह तहरीर हुई जाती है
शब की तामीर हुई जाती है

चुप हुए जाते हैं सारे मंज़र
कोई तस्वीर हुई जाती है
सुब्ह होने से भी होता क्या है
रात तक़दीर हुई जाती है
हर घड़ी तीर चलाते हैं ख्याल
याद शमशीर हुई जाती है
बात गुलरेज़ हम जो कह न सके
अब वो गम्भीर हुई जाती है

गुलरेज़ शहज़ाद विचारोत्तेजक शायरी की परंपरा के युवा संवाहक हैं. आप एक बेहतरीन रंगकर्मी तथा जीवन मैग के सलाहकार भी हैं.

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