आपसे
उम्मीद-ए-वफ़ा थी, क्या
किया ये आपने
मेरे
जज़्बातों पे खंजर चला दिया क्यों आपने
हम तो सजदों में खुदा से माँगते थे आपको
बदले
में मर जाए हम, ये
बददुआ दी आपने
आपने दिल ही ना तोड़ा ख़्वाब तक तोड़े मेरे
अब मरे या ना मरे, बर्बाद
तो किया आपने
वो बददुआ के तीन लफ्ज़ भूला नहीं हूँ आज भी
ग़र
मर गया तो लोग कहेंगे क्या किया ये आपने
है दुआ आप ख़ुश रहें कोई ग़म से रिश्ता ना रहे
हम
तो जीते हैं उस ग़म में जो दिया है आपने
अबूज़ैद अंसारी
अबूज़ैद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली में बारहवीं कक्षा के छात्र हैं.
आप जीवन मैग के सह-संपादक हैं और नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं.
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