आज मैं जो कुछ भी हूँ अपनी तक़दीर के सहारे,
और जी रहा हूँ ज़िन्दगी उसकी तस्वीर के सहारे।
अब लगता ही नहीं दिल कहीं इस उजड़े चमन में,
चुरा लिया है दिल उसने किसी मुख़बिर के सहारे।
कोशिश कर रहा हूँ दिल बहलाने की इस उजड़े चमन में,
उसके हाथों से लिखे ख़त की तहरीर के सहारे।
लोग इश्क करके जीते हैं ज़िन्दगी मुफ़लिसी में,
क्या तू नहीं जी सकती ज़िन्दगी इस फ़क़ीर के सहारे।
अब मौत भी आती नहीं मांगने पर ख़ुदा से,
बाँधा हुआ है उसने रूह को किसी ज़ंजीर के सहारे।
और जी रहा हूँ ज़िन्दगी उसकी तस्वीर के सहारे।
अब लगता ही नहीं दिल कहीं इस उजड़े चमन में,
चुरा लिया है दिल उसने किसी मुख़बिर के सहारे।
कोशिश कर रहा हूँ दिल बहलाने की इस उजड़े चमन में,
उसके हाथों से लिखे ख़त की तहरीर के सहारे।
लोग इश्क करके जीते हैं ज़िन्दगी मुफ़लिसी में,
क्या तू नहीं जी सकती ज़िन्दगी इस फ़क़ीर के सहारे।
अब मौत भी आती नहीं मांगने पर ख़ुदा से,
बाँधा हुआ है उसने रूह को किसी ज़ंजीर के सहारे।
शबाब अंजुम जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली में ग्यारहवीं विज्ञान के छात्र हैं। आप किशनगंज, बिहार से ताल्लुक रखते हैं। |
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