बयां करता हूँ क़िस्सा जब मुहब्बत का मैं लिखता हूँ
क़लम भी ख़ूब रोता है ,वरक़ को दर्द होता है
बहोत ख़ामोश रहता है मगर नादां नहीं है "ज़ैद"
उसे आवाज़ बनना है जिसे सदियों सुना जाए
अब ढूँढे तो कहाँ ढूँढे पाकीज़ा मुहब्बत "ज़ैद"
हर दिल में बसी हुई है मुहब्बत के नाम पर हवस
मुझसे नफरत का सबब क्या है मुझे बतलाओ तो "ज़ैद"
मुझे दुश्मन को भी दोस्त बनाने का हुनर आता है
यूँ हँसकर मिलने से मुझसे तेरी फ़ितरत छुप नहीं सकती
मुझे पढ़ना ख़ूब आते हैं मुस्कुराहटों के सबक़ सारे
मेरी ग़ज़लों में असर पहले सा बाक़ी ना रहा "ज़ैद"
मुझे ये चाह है फ़िर से कोई दिल तोड़ दे मेरा
अपनी मशाल दी थी उसे उजालों के वास्ते
तेज़ रोशनी की चाह में मेरा घर जला दिया
मुझे दुश्मन नहीं मिटा सके लाख कोशिशों के बावजूद
"ज़ैद" उसकी एक ना पे मैं मिट रहा हूँ अब
जो आँसू पोंछने वास्ते किसी दहलीज़ पर बैठे
वहां भी रुस्वा करने में मुझे बख़्शा ना लोगों ने
क़लम भी ख़ूब रोता है ,वरक़ को दर्द होता है
बहोत ख़ामोश रहता है मगर नादां नहीं है "ज़ैद"
उसे आवाज़ बनना है जिसे सदियों सुना जाए
अब ढूँढे तो कहाँ ढूँढे पाकीज़ा मुहब्बत "ज़ैद"
हर दिल में बसी हुई है मुहब्बत के नाम पर हवस
मुझसे नफरत का सबब क्या है मुझे बतलाओ तो "ज़ैद"
मुझे दुश्मन को भी दोस्त बनाने का हुनर आता है
यूँ हँसकर मिलने से मुझसे तेरी फ़ितरत छुप नहीं सकती
मुझे पढ़ना ख़ूब आते हैं मुस्कुराहटों के सबक़ सारे
मेरी ग़ज़लों में असर पहले सा बाक़ी ना रहा "ज़ैद"
मुझे ये चाह है फ़िर से कोई दिल तोड़ दे मेरा
अपनी मशाल दी थी उसे उजालों के वास्ते
तेज़ रोशनी की चाह में मेरा घर जला दिया
मुझे दुश्मन नहीं मिटा सके लाख कोशिशों के बावजूद
"ज़ैद" उसकी एक ना पे मैं मिट रहा हूँ अब
जो आँसू पोंछने वास्ते किसी दहलीज़ पर बैठे
वहां भी रुस्वा करने में मुझे बख़्शा ना लोगों ने
अबूज़ैद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली में बारहवीं कक्षा के छात्र हैं. आप जीवन मैग के सह-संपादक हैं और नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं. |
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