प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शपथग्रहण समारोह में सार्क राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित कर अपनी विदेश नीति का शानदार आगाज़ किया था. लेकिन दो महीने बाद वह जोश फीका पड़ता नज़र आ रहा है. उनका हालिया ब्राजील दौरा मिलाजुला रहा. यह भारत के लिए अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कूटनीतिक धाक ज़माने का पहला मौका था.
ब्राजील जाते वक्त वे बर्लिन में जर्मनी के चांसलर एंगेला मर्केल के साथ डिनर करने उतर गए लेकिन मर्केल उस समय ब्राजील में फीफा विश्वकप का फ़ाइनल मैच देख रही थी. जिससे भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर थोड़ी बहुत शर्मिंदगी तो झेलनी ही पड़ी है. दूसरी ओर प्रधानमंत्री के इस कदम से जापान के नाराज होने का डर है जिससे उन्होंने सबसे पहले द्विपक्षीय समझौते करने का वादा किया है.
वहीँ फोर्टलेजा में मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिन पिंग की मुलाकात के बाद मोदी-पुतिन बैठक होनी थी. प्रधानमंत्री दो घंटे तक पुतिन की प्रतीक्षा करते रहे लेकिन वे नहीं आये. फिर उनकी मुलाकात अगले दिन संभव हो सकी. इस तरह रूस ने दबी जबान भारत को कुछ सन्देश दिया है. गौरतलब है की बीते दिनों रूस के साथ पाकिस्तान के संबंधों में निकटता आयी है. रूस ने पाकिस्तान के हाथों हथियार बेचने का अपना प्रतिबंध वापस ले लिया है. उधर चीन ब्रिक्स बैंक का मुख्यालय अपने यहाँ ले जाने में कामयाब रहा है हालाकि इसका पहला सीईओ भारतीय होगा जो हमारे लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि तो है लेकिन पहले के अपेक्षाकृत कम.
कुल मिलाकर प्रधानमंत्री मोदी की यह महत्वपूर्ण यात्रा मिलेजुले परिणामों वाली रही. हाँ, उनलोगों को निराशा जरूर हुई है जो मोदी को मनमोहन सिंह की तुलना में अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अधिक प्रभावी देखने को इच्छुक थे.
हिन्दुस्तान के दिल्ली अंक में प्रकाशित |
प्रभात खबर पटना का प्रकाशित पत्र |
नन्दलाल मिश्रा प्रबंध संपादक - जीवन मैग www.jeevanmag.com कार्यक्रम समन्वयक, डीयू कम्युनिटी रेडियो बी.टेक मानविकी (द्वितीय वर्ष), दिल्ली विश्वविद्यालय |
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