अपनी खुदाई का एहसास हो चला मुझको,
मुझे देख आँखों ने उसके वजू कर लिया ||
उसके इन्साफ के हम तो कायल हैं राघव,
मुझको गुलशन दिया,तो रंगो-बू ले लिया||
इक परिंदा था दिल,पर फडफडाता हुआ सा,
उसकी आँखों ने क्यूँ सब आरजू कह दिया||
उसने बचने की कोशिश लाखो की लेकिन,
इक नज़र ने अखारिश उसको छू ही लिया||
राघवेन्द्र त्रिपाठी 'राघव'
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में बी.टेक/ बी.एस इन इनोवेशन विद मैथ्स एन्ड आइटी के छात्र हैं.)
मुझे देख आँखों ने उसके वजू कर लिया ||
उसके इन्साफ के हम तो कायल हैं राघव,
मुझको गुलशन दिया,तो रंगो-बू ले लिया||
इक परिंदा था दिल,पर फडफडाता हुआ सा,
उसकी आँखों ने क्यूँ सब आरजू कह दिया||
उसने बचने की कोशिश लाखो की लेकिन,
इक नज़र ने अखारिश उसको छू ही लिया||
राघवेन्द्र त्रिपाठी 'राघव'
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में बी.टेक/ बी.एस इन इनोवेशन विद मैथ्स एन्ड आइटी के छात्र हैं.)
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