छोटे पंखों के पक्षी भी
दूर व्योम में जा आते हैँ
मन में बच्चे भी अपने
स्वप्न बड़े सजाते हैं
फिर हम इस जीवन संघर्ष से
इतना क्यों घबराते हैं?
हटाकर तम निराशा का अब
हम आशा के दीप जलाते हैं
सूर्य की अन्तिम किरणें जब
धरती से दूर हो जाती हैं
ले लेता तम हर ओर बसेरा
दुनिया आलस में सो जाती है
सपने झूठे देख रात भर
फिर प्रातः क्यूँ पछताती है?
हटाकर तम निराशा का अब
हम आशा के दीप जलाते हैं
सैनिक की आँखों में
सीमा पर सपने पलते हैं
उनको भी आशा होती है
कब अपने घर को चलते हैं
हटाकर तम निराशा का अब
वे आशा के दीप जलाते हैं
अबूज़ैद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली में बारहवीं कक्षा के छात्र हैं. आप जीवन मैग के सह-संपादक हैं और नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं.
Inspiring words
ReplyDeleteBadhiya....
ReplyDelete