तुझे मौक़ा मिला है दुश्मन,
मुझे खूब सताता है।
ज़िंदगी के हर ग़म
का मज़ा खूब चखाता है।।
तू जान गया है ज़िंदगी में
नहीं कोई अपना मेरा।
माँ देख तेरे जाने से
कैसा छाया है अंधेरा।।
वो वक़्त भी क्या खूब था
तेरी आँखों का मैं तारा था।
माँ देख तेरे जाने से
हर ग़म का मैं मारा हूँ।।
रोता हूँ रात भर मैं
भरता हूँ सिसकियाँ।
कोई हाथ सहारा दे
माँ किसी ने ना दिया।।
अल्लाह मेरे सब्र का
ना ले और इम्तिहाँ।
माँ ख्वाबों मे चली आ
वो मीठी लोरी तो फिर सुना।।
तुझसे मैं ज़ालिमों के
हर क़िस्से को कहूँगा।
रो-रो के आँसुओं से
दामन तेरी भरँगा।।
गर ख्वाबों मे ना आ सको तुम
मुझे कोई ग़म नही है।
सब अल्लाह की है मर्ज़ी
जो है ये कम नही है।।
मुझको यकीं हैं ऐसा
जन्नत मे हम मिलेंगे।
वादा है तुझसे मेरा
हम फिर जुदा ना होंगे।।
अबूज़ैद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली में बारहवीं मानविकी के छात्र हैं. आप जीवन मैग के सह-संपादक हैं और नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं.
मुझे खूब सताता है।
ज़िंदगी के हर ग़म
का मज़ा खूब चखाता है।।
तू जान गया है ज़िंदगी में
नहीं कोई अपना मेरा।
माँ देख तेरे जाने से
कैसा छाया है अंधेरा।।
वो वक़्त भी क्या खूब था
तेरी आँखों का मैं तारा था।
माँ देख तेरे जाने से
हर ग़म का मैं मारा हूँ।।
रोता हूँ रात भर मैं
भरता हूँ सिसकियाँ।
कोई हाथ सहारा दे
माँ किसी ने ना दिया।।
अल्लाह मेरे सब्र का
ना ले और इम्तिहाँ।
माँ ख्वाबों मे चली आ
वो मीठी लोरी तो फिर सुना।।
तुझसे मैं ज़ालिमों के
हर क़िस्से को कहूँगा।
रो-रो के आँसुओं से
दामन तेरी भरँगा।।
गर ख्वाबों मे ना आ सको तुम
मुझे कोई ग़म नही है।
सब अल्लाह की है मर्ज़ी
जो है ये कम नही है।।
मुझको यकीं हैं ऐसा
जन्नत मे हम मिलेंगे।
वादा है तुझसे मेरा
हम फिर जुदा ना होंगे।।
अबूज़ैद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली में बारहवीं मानविकी के छात्र हैं. आप जीवन मैग के सह-संपादक हैं और नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं.
masha allah
ReplyDeleteLajawaab
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