बहुत ही अबोध हूं
बहुत ही अबोध है
मेरा प्रेम
जो कहना चाहता हूं
कह देता हूं
तुम्हारे बिना कहे
तुम्हें सुन लेता हूं
गलतियों पर डांटता
भूल पर फटकारता हूं
तुम रूठती हो तो
मना लेता हूं
मान जाती हो तो
जाने अनजाने
तुम्हें रुला देता हूं
* * *
तुम्हारे आंसू
तुम्हारे दर्द
तुम्हारी तड़प
तुम्हारी भावनाएं
तुम्हारी संवेदनाएं
मुझमें बहती है
तुम्हारे हर दर्द
सहती और गहती हैं
हंसने की बारी आती है
संग -संग हंसता हूं
रोने की बारी में
तुमसे छुप-छुपकर
रो लेता हूं
* * *
हर पल
तुम्हें सुनता हूं
तुम्हें ही सुनाता हूं
खुशियों को हर बार
साझा कर लेता हूं
दर्द को छुपाता हूं
चाहूं तो साझा कर लूं
दर्द के साथ आंसू भी
जानता हूं
पी जाओगी
मेरे हर गम
तुम हंसते -हंसते
पर बांटू तो मैं बांटू कैसे ?
* * *
खुशियां सूद हैं
जीवन की
दर्द है पूंजी हमारे
हरे -भरे प्रेम उपवन की
कुछ दर्द उठे
कुछ फूल खिले
तुम प्रेयसी
चौका-बर्तन की
मैं प्रेमी घर आंगन का
तुम लिखती हो प्रेम
दर्द मिटाता हूं
मैं प्रेम पथिक
प्रेम के पथ पर चलकर।
-संजय शेफर्ड
(लेखक बीबीसी गैलरी एशिया में कार्यरत हैं तथा जीवन मैग के सलाहकार हैं)
www.jeevanmag.com
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बहुत ही अबोध है
मेरा प्रेम
जो कहना चाहता हूं
कह देता हूं
तुम्हारे बिना कहे
तुम्हें सुन लेता हूं
गलतियों पर डांटता
भूल पर फटकारता हूं
तुम रूठती हो तो
मना लेता हूं
मान जाती हो तो
जाने अनजाने
तुम्हें रुला देता हूं
* * *
तुम्हारे आंसू
तुम्हारे दर्द
तुम्हारी तड़प
तुम्हारी भावनाएं
तुम्हारी संवेदनाएं
मुझमें बहती है
तुम्हारे हर दर्द
सहती और गहती हैं
हंसने की बारी आती है
संग -संग हंसता हूं
रोने की बारी में
तुमसे छुप-छुपकर
रो लेता हूं
* * *
हर पल
तुम्हें सुनता हूं
तुम्हें ही सुनाता हूं
खुशियों को हर बार
साझा कर लेता हूं
दर्द को छुपाता हूं
चाहूं तो साझा कर लूं
दर्द के साथ आंसू भी
जानता हूं
पी जाओगी
मेरे हर गम
तुम हंसते -हंसते
पर बांटू तो मैं बांटू कैसे ?
* * *
खुशियां सूद हैं
जीवन की
दर्द है पूंजी हमारे
हरे -भरे प्रेम उपवन की
कुछ दर्द उठे
कुछ फूल खिले
तुम प्रेयसी
चौका-बर्तन की
मैं प्रेमी घर आंगन का
तुम लिखती हो प्रेम
दर्द मिटाता हूं
मैं प्रेम पथिक
प्रेम के पथ पर चलकर।
-संजय शेफर्ड
(लेखक बीबीसी गैलरी एशिया में कार्यरत हैं तथा जीवन मैग के सलाहकार हैं)
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Excerpted from- Jeevan Mag
Feb.- march 2014 issue
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waaah
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