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कथा‍-कहानी

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अनमोल वचन

Friday, 2 May 2014

आजकल- राघवेन्द्र त्रिपाठी

अरे ये गूँगे!!! ये जवाब मांगने लगे हैं आजकल,
जरा देखो इन्हें इंकलाब मांगने लगे हैं आजकल ||
अमां !!ये भी क्या खूब हिकामत है जुगनुओ की,
कि मुकाबिल आफ़ताब मांगने लगे हैं आजकल ||
क्या तुम भी सुन रहे हो ये कानाफूसी,ये आवाजें,
सुना कि वे लोग हिसाब मांगने लगे हैं आजकल ||
न जाने क्या हुआ इस कौम को कि अचानक सारे,
लुटे, तफ्तीशे-इन्तिहाब मांगने लगे हैं आजकल ||
जो कल तक टुकड़ो की तरफदारी में थे,वे ही सब,
ये क्या हुआ, वे इत्तिहाद मांगने लगे हैं आजकल||
आपकी किस्मतों में जो कुछ भी हिस्सा उनका है,
अपना हक वे खानाखराब मांगने लगे हैं आजकल||


राघवेन्द्र त्रिपाठी 'राघव'  
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में बी.टेक/ बी.एस इन इनोवेशन विद मैथ्स एन्ड आइटी के छात्र हैं.)












Excerpted from- Jeevan Mag Feb.- march 2014 issue

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