देह पत्थर होती है
दर्द, तड़प, आँसू
देह के नहीं
संवेंदनाओं, भावनाओं,
अहसासों के होते हैं
पहले संवेंदनायें मरती हैं
किर भावनायें
किर अहसास
अंत में मरता है 'प्रेम'
देह तब भी पत्थर था,
अब भी पत्थर ही है |
-संजय शेफर्ड
(लेखक बीबीसी गैलरी एशिया में कार्यरत हैं
तथा जीवन मैग के सलाहकार हैं)
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(चित्रांकन- आर्यन राज)
एलन कैरियर इंस्टिट्यूट, कोटा
Excerpted from- Jeevan Mag Feb.- march 2014 issue
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उत्कृष्ट
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