इवनिंग वाकिंग का भी अपना ही मज़ा है| साथ में अगर गप्पें मारने वाले मित्रगण हों तो समय से पहले ही चारों चाँद निकल आते हैं| होस्टल से कुछ ही आगे निकला की मेट्रो स्टेशन के पीछे “कृष्णभक्तों” की टोली दिखाई पड़ी| भक्तों की श्रध्दा देखिये आस-पास मुरली मनोहर की कोई प्रतिमा भी नहीं है ,पर हर किसी ने दिल में ही प्रभु को बसा लिया लगता है| ऐसा प्रतीत हो रहा था की वृन्दावन ही पहुँच गया हूँ| हर कोना कृष्णमय हो गया था| कृष्ण पेड़ की डाल पर बैठा करते थे ,पर कांटेदार पेड़ होने के कारण चबूतरों व सीढियों को ही यह सौभाग्य प्राप्त हो रहा था| दूसरों की ख़ुशी से इंसान खुश होता है और दूसरों के दुःख से दुखी पर आज, अभी तक भगवन की भक्ति न मिलने के कारण दूसरे भक्तों से ईर्ष्या हो रही थी| आगे बढ़ते ही कक्कड़ की दुकान पर शिवभक्तों की मंडली नजर आई | डमरू और त्रिशूल के अलावे सब कुछ था भक्तों के पास| भक्तों की भीड़ व भक्ति इतनी की सब एक साथ अगर कैलाश पर्वत पहुँच जाय तो कैलाश का बर्फ भी पिघल जाय| मन ही मन सोचा की कैसे लोग अपने इष्टदेव का चयन करते होंगे? स्वत: ही संभावित उत्तर सूझा , शायद नेताओं की तरह भगवानों के भी अपने –अपने एजेंडे होते होंगे| जिसे जिनका एजेंडा पसंद आए उन्हें अपना लो| अगर ऐसा ही हो तो किनका एजेंडा सर्वाधिक लोकप्रिय होगा? जब वहां से आगे निकला तो दृश्य देख कर दंग रह गया| दिल्ली की इस कड़कड़ाती सर्दी में सड़क के किनारे कोई कपड़ों का एक चादर ओढ़े तो कोई अपनी खाल की चादर ओढ़े सोये थे| शायद इंद्रदेव अपना एजेंडा तय नहीं कर पाए थे| एक भी भक्त अपने पक्ष में न आते देख क्रोधवश हारे हुए नेता की तरह रात को वर्षा करा दी| तनिक भी न सोचा की ये बेचारे कहाँ जायेंगे| छप्पन करोड़ देवी-देवताओं में से किसी का भी एजेंडा अगर इन सड़क पर रात गुजारने के लिए नहीं है तो इन नेताओं से भला क्या आशा की जाये|
Thursday, 27 November 2014
देवताओं के एजेंडे (व्यंग्य)- संतोष
इवनिंग वाकिंग का भी अपना ही मज़ा है| साथ में अगर गप्पें मारने वाले मित्रगण हों तो समय से पहले ही चारों चाँद निकल आते हैं| होस्टल से कुछ ही आगे निकला की मेट्रो स्टेशन के पीछे “कृष्णभक्तों” की टोली दिखाई पड़ी| भक्तों की श्रध्दा देखिये आस-पास मुरली मनोहर की कोई प्रतिमा भी नहीं है ,पर हर किसी ने दिल में ही प्रभु को बसा लिया लगता है| ऐसा प्रतीत हो रहा था की वृन्दावन ही पहुँच गया हूँ| हर कोना कृष्णमय हो गया था| कृष्ण पेड़ की डाल पर बैठा करते थे ,पर कांटेदार पेड़ होने के कारण चबूतरों व सीढियों को ही यह सौभाग्य प्राप्त हो रहा था| दूसरों की ख़ुशी से इंसान खुश होता है और दूसरों के दुःख से दुखी पर आज, अभी तक भगवन की भक्ति न मिलने के कारण दूसरे भक्तों से ईर्ष्या हो रही थी| आगे बढ़ते ही कक्कड़ की दुकान पर शिवभक्तों की मंडली नजर आई | डमरू और त्रिशूल के अलावे सब कुछ था भक्तों के पास| भक्तों की भीड़ व भक्ति इतनी की सब एक साथ अगर कैलाश पर्वत पहुँच जाय तो कैलाश का बर्फ भी पिघल जाय| मन ही मन सोचा की कैसे लोग अपने इष्टदेव का चयन करते होंगे? स्वत: ही संभावित उत्तर सूझा , शायद नेताओं की तरह भगवानों के भी अपने –अपने एजेंडे होते होंगे| जिसे जिनका एजेंडा पसंद आए उन्हें अपना लो| अगर ऐसा ही हो तो किनका एजेंडा सर्वाधिक लोकप्रिय होगा? जब वहां से आगे निकला तो दृश्य देख कर दंग रह गया| दिल्ली की इस कड़कड़ाती सर्दी में सड़क के किनारे कोई कपड़ों का एक चादर ओढ़े तो कोई अपनी खाल की चादर ओढ़े सोये थे| शायद इंद्रदेव अपना एजेंडा तय नहीं कर पाए थे| एक भी भक्त अपने पक्ष में न आते देख क्रोधवश हारे हुए नेता की तरह रात को वर्षा करा दी| तनिक भी न सोचा की ये बेचारे कहाँ जायेंगे| छप्पन करोड़ देवी-देवताओं में से किसी का भी एजेंडा अगर इन सड़क पर रात गुजारने के लिए नहीं है तो इन नेताओं से भला क्या आशा की जाये|
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