JeevanMag.com

About Us

कथा‍-कहानी

यह भी जानो!

अनमोल वचन

Tuesday, 18 November 2014

दूरदर्शन की सौतन- संतोष

एक समय था की जब दूरदर्शन ‘’सरकार’’ की छवि को लेकर उतनी ही चिंतित रहती थी जितनी की एक पत्नी अपने पति के लंचबॉक्स को लेकर | पूरे दिन निजी क्षेत्र की मीडिया द्वारा जब सरकार को पत्थर मारा जाता तब शाम को यह उस पर मरहम पट्टी का काम करती थी और धीरे से गुनगुनाती रहती ......
''बहुत रंजूर है ये, ग़मों से चूर है ये
खुदा का खौफ़ उठाओ, बहुत मजबूर है ये
क्यों चले आये हो बेबस पे सितम ढाने को
कोई पत्थर से ना मारे .........''


पहले सौतन का नाम ही पत्नी को जलाकर राख कर देती थी | उत्तर आधुनिक युग में अब सौतन की परिभाषा भी बदलने लगी है | अब की सौतने ख़ुशी- ख़ुशी साथ रहना पसंद करने लगी हैं | दूरदर्शन की सौतन भी अब सहेली बन गई है| दूरदर्शन की तो फिर भी कुछ सीमाएं हैं जैसे सुबह रंगोली, शाम को क्षेत्रीय प्रसारण, रात को अन्य विशेष कार्यक्रम इन सब की वजह से इसे उतना स्नेह नहीं मिल पता जितना की ये सौतनें इठला-इठलाकर लुटती रहती है | कभी प्रेमी के कुरते की तारीफ़ से तो कभी दाढ़ी के कलर पर बहस करा कर तो कभी ''सासु माँ'' का साक्षात्कार दिखा कर|

एक अलग नजरिये से देखें तो इन सब ने मिलकर दूरदर्शन का काम आसान ही कर दिया है , बेचारी अब कहाँ इन नवयुवतियों से रेस लगाती फिरे| और कलमुंही ये सौतनें........ये तो बस साबित कर देना चाहती हैं की वाकई ''हर सफल पुरुष के पीछे एक प्रेमिका का हाथ होता है"| ये जता देना चाहती हैं की ये जो तख्तो-ताज तुम्हे मयस्सर हुई है वह मेरे ही प्रेम, त्याग, और समर्पण का परिणाम है| दूरदर्शन बेफ़िक्र हो कर तमाशा देख रही है | इसे पता है की दो चार हसीन शाम गुजर जाने के बाद वापस तो इसे मेरे ही आँचल तले आना है| मगर वो कहते हैं न की प्यार अगर एकतरफा भी हो तो यादों को कौन मिटा सकता है ? फिर भी क्या खूब जिया है इस वक़्त को इन सौतनो ने! नये-नये सीरियल पुरे दिन दिखाएँ हैं कुछ का नाम इस प्रकार रखा जा सकता है ''कभी नरेन्द्र कभी मोदी'', ''ससुराल मोदी का ''. ''मोदी का घर प्यारा लगे'', मोदी बधू'', ''सपने सुहाने मोदी के'', ''नरेन्द्र मोदी का उल्टा चश्मा'' तथा ''क्योंकि मोदी भी कभी C.M था''!
125 करोड़ की आबादी में दुर्भाग्यवश औसतन 125 चेहरे को मीडिया तरज़ीह देती है| दस-पंद्रह फ़िल्मी कलाकारों, दस-पंद्रह उद्योगपति औसतन सत्तर-पचहत्तर नेताओं को फिर ब्रेक में जाने के बाद अगर समय बच जाए तो उन बदनसीबों को भी दिखा देते हैं जिनकी अकाल मृत्यु हो जाती है या जो किसी दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं और दुर्भाग्यवश अगर रैली का दिन ठहरा तो करमजले को वो भी नसीब नहीं होता| 


संतोष कुमार जीवन मैग की संपादन समिति के सदस्य हैं। आप दिल्ली विश्वविद्यालय के क्लस्टर इनोवेशन सेंटर में बीए स्नातक (मानविकी और समाजशास्त्र) के छात्र तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के सामुदायिक रेडियो में ओबी प्रभारी हैं.

Post a Comment

Please Share your views about JeevanMag.com

A series of skype group conversations beetween students from India & Pakistan

A series of skype group conversations beetween students from India & Pakistan
Proudly sponsored by JeevanMag.com
 
Copyright © 2016 Jeevan Mag
Editor-in-chief Akash Kumar Executive Editor Nandlal Mishra Associate Editor AbuZaid Ansari Publisher Blue Thunder Student AssociationShared by WpCoderX
Blogger Widgets