बीते महीने गाँधी जयंती
पर शुरू हुए स्वच्छ भारत मिशन के खबरों की सुनामी में एक अहम खबर ने दम तोड़ दिया.
न टीवी ने कुछ दिखाया और न रेडियो से ही कुछ सुना गया... हाँ कुछ एक अख़बारों के
भीतरी पन्नों पर दो चार पंक्तियाँ में लिखा जरूर मिला कि एक अक्तूबर से रेडियो
ज्ञानवाणी का प्रसारण बंद हो गया. ज्ञानवाणी शिक्षा माध्यम के रूप में काम करने
वाला देश का एकमात्र शैक्षणिक रेडियो चैनल था. आकाशवाणी से ज्ञान-विज्ञान पर नाम
मात्र के शैक्षणिक कार्यक्रमों के प्रसारण की परंपरा आज भी कायम है. एफएम चैनलों से
शैक्षणिक कार्यक्रमों का प्रसारण नहीं के बराबर होता है. हाँ, कुछ सामुदायिक रेडियो
केंद्र अपने-अपने स्तर से इस पहल को नया अंजाम दे रहे हैं.
ज्ञानवाणी के सभी 37 स्टेशनों के प्रसारण बंद होने से न केवल इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त
विश्वविद्यालय (इग्नू) के छात्रों की मुश्किलें बढ़ गई हैं, बल्कि
रेडियो चैनल में काम करने वाले हजारों अंशकालिक कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं. देश
में उच्च शिक्षण संस्थाओं के नियमित पाठ्यक्रमों में नामांकन पाने से वंचित रहने के
कारण मुक्त शिक्षण संस्थानों से पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों के लिए ज्ञानवाणी इंटरेक्टिव
ओपन लर्निंग का एक मात्र सहारा था. वैसे भी निरंतर हाईटेक होते जमाने में
इंटरेक्टिव ओपन लर्निग और ओनलाईन लर्निंग की मांग और महत्व निरंतर बढ़ता ही जा रहा
है.
वर्ष 2001 में तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री मुरली मनोहर जोशी ने इसकी स्थापना
की थी, जिसके बाद देशभर में कुल 37 केन्द्रों की स्थापित किए गए. ज्ञानवाणी केन्द्र में कार्यक्रमों का केवल निर्माण
किया जाता था जिसे ऑन एयर करने के लिए आकाशवाणी को भेजा जाता था. इसके प्रसारण के लिए केन्द्र का संचालन करने वाली इंदिरा गांधी राष्ट्रीय
मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) आकाशवाणी को पैसा दिया करती थी और यह पैसा उसे मानव
संसाधन मंत्रालय से प्राप्त होता था. लेकिन लंबे समय से न तो
मानव संसाधन मंत्रालय ने इग्नू को पैसा दिया और न ही इग्नू अपना बकाया (अप्रैल 2012 से
अब तक लगभग साढ़े 27 लाख रुपये) आकाशवाणी को चुका पाई, जिसके
बाद प्रसार भारती ने इसके प्रसारण पर रोक लगा दी.
ज्ञानवाणी चैनल के बंद
हुए एक महीना से अधिक का वक्त गुजर चुका है लेकिन न तो सरकार और न ही इग्नू की ओर
से इसे पुनः बहाल करने की दिशा में कोई प्रयास होता दिख रहा है. दो मंत्रालय के
झगड़े में देश के तमाम छात्रों के लिए मुसीबत खड़ी हो गयी है. प्रधानमंत्री कार्यालय
द्वारा इस सन्दर्भ में अतिशीघ्र सकारात्मक हस्तक्षेप की जरूरत है. गौरतलब है कि
भारत का एकमात्र शैक्षणिक टेलीविजन
ज्ञानदर्शन भी पहले ही बंद हो चुका है. यह दुर्भाग्यपूर्ण विडंबना ही है कि एक तरफ
हम आदर्श गाँव, डिजिटल इंडिया, और देश की जनता में वैज्ञानिक चेतना के प्रसार की
बात कर रहे हैं और दूसरी तरफ हमारे यहाँ न ज्ञान-विज्ञान का कोई रेडियो या टीवी
प्रसारण है और न ही कोई लोकप्रिय अख़बार और पत्रिकाएं. जबकि मनोरंजन, राजनीति और
धर्म पर आधारित चैनल और अख़बार कुकुरमुत्ते की तरह फैले हुए हैं. भारत में विज्ञान
पत्रकारिता और विज्ञान आधारित साहित्य लेखन भी अब मृतप्राय अवस्था को प्राप्त हो चुका
है. यह आज हमारे समाज की सबसे बड़ी त्रासदी भी है और चुनौती भी जिससे निपटने से
हमें और अधिक नहीं बचना चाहिए. एक महाशक्ति बनने के सपने देखने वाले देश की जनता
और सत्ता को समाज में ज्ञान-विज्ञान आधारित मीडिया के प्रोत्साहन पर अवश्य सजग और
सक्रिय होना चाहिए. याद रहे समाज में वैज्ञानिक चेतना का विकास हमारे मौलिक
कर्तव्यों में से एक है.
नन्दलाल मिश्र जीवन मैग के प्रबंध संपादक हैं। सम्प्रति आप दिल्ली विश्वविद्यालय के संकुल नवप्रवर्तन केन्द्र में मानविकी स्नातक के छात्र तथा दिल्ली विश्वविद्यालय सामुदायिक रेडियो के कार्यक्रम समन्वयक है। आप बिहार के समस्तीपुर से ताल्लुक रखते हैं।
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