लगता है मैं भटक रहा था,
वो फूल
वो पेड़
वो सुंदर सा बागीचा
खिंच रहे थे मुझे,
वो लोग
वो भेषभूषा
दिल बहला रहे थे,
वह रास्ता शहर को नहीं जाता,
मंज़िल की ओर जाना था
पर कदम उठने को तैयार नहीं,
उस मोह की दुनिया को छोड आया,
मंज़िल मीलों दूर है,
पिछड़ गया हूँ,
जीवन की गति धीमी प्रतीत हो रही है,
मगर मैं हारा नहीं हूँ,
ये मेरी आधी जीत है।
अभिनव सिन्हा कक्षा बारहवीं के छात्र हैं तथा मोतिहारी, बिहार से ताल्लुक रखते हैं। इनकी कवितायेँ अंतस से छनी हुई आवाज़ सी होती हैं, लेशमात्र भी कृत्रिमता नहीं। |
Roman Text
Sangharsh
Wo rasta shahar ko nahi jata,
lagta hai main bhatak raha tha,
wo phool
wo ped
wo sundar sa baageecha
kheench rahe the mujhe,
wo log
wo vesh-bhoosha
dil bahla rahe the,
manzil ki or jana tha
par kadam uthne ko taiyaar nahi,
us moh ki duniya ko chhod aaya
manzil meelon door hai
pichhad gaya hoon
jeevan ki gati dheemi prateet ho rahi hai,
magar main haara nahi hoon,
ye meri aadhi jeet hai.
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