क्या लिखूं और किसके बारे में लिखूं?
कभी सोचा नहीं था अपना ढोल अपने ही हाथों से पीटना पड़ेगा अर्थात् अपना परिचय स्वयं ही दूसरों को देना पड़ेगा।
"मिट्टी का तन,मस्ती का मन
क्षण भर जीवन, मेरा परिचय"
पर मैं वो बात किसी को कैसे बताऊं,जो मैं खुद नहीं जानता। हाँ चाहे कितनी भी बातें लिख लूं, पर सच यहीं है कि मैं नहीं जानता मैं कौन हूँ। कई बार सोचा, सवाल-ज़वाब का सिलसिला बंधा-टूटा, कई जवाब मिले, कई नये सवाल उठे, पर यह सवाल वहीं का वहीं है। मेरे मित्र ज़वाब देते हैं, तुम राधेश हो। पर ये तो मेरा नाम है। लोग कहते हैं,तुम मनुष्य हो पर, ये तो मेरी जाति है। कुछ ने कहा, तुम छात्र हो पर, ये तो मेरा व्यवसाय है। ये मेरा नाम, मेरी जाति, मेरा व्यवसाय मुझसे ही तो आस्तित्व में हैं, फ़िर ये मेरा परिचय कैसे हो सकते हैं। जिससे मेरा अस्तित्व हो, वहीं मेरा परिचय हो सकता है। तो फ़िर, मैं कौन हूँ और अगर मैं राधेश नहीं हूँ तो राधेश कौन है...मैं भूल रहा हूँ कि मेरा एक शरीर भी है, शायद उसी का नाम राधेश है, शायद वही मनुष्य भी है, क्योकि उसी के दो हाथ,दो पैर,हॄदय और मष्तिष्क भी हैं।
आईना जब गिरकर चूर हो जाता है,अपना स्वरूप खो देता है,तो फ़िर उसका नाम आईना नहीं रहता,उसे बस काँच का टुकड़ा कहा जा सकता है.आईना अपने स्वरूप के साथ नाम भी खो देता है। तो फिर ये शरीर,जिसका नाम राधेश है, ये भी तो एक दिन अपना स्वरूप खो देगा, उस दिन इसका नाम क्या होगा। …शायद राधेश ही।
हे प्रभु! ये कैसा विरोधाभास है? स्वरूप खोने के बाद भी ये शरीर अपना नाम नहीं खो रहा है.... कहीं ऐसा तो नहीं, राधेश नाम इस शरीर का नहीं है.......तो फ़िर किसका है....... कुछ भी समझना मुश्किल है,कल भी मुश्किल था,आज भी। सवाल अभी भी वहीं खड़ा हैं, हँस रहा है मेरी बेबसी पर, अपने अविजित होने पर। हाँ,इसके अलावा मुझे थोड़ा बहुत पता है अपने बारे में।
मेरी सहित्य में गहरी रुचि है. यहीं मेरे जीवन का आधार है, जीने का जज़्बा है, लक्ष्य है...अभी बहुत सफ़र तय करना है, कई मंज़िलों ,बाधाओं को पार करना है और अन्तिम लक्ष्य तक पहुँचना है। मेरा अन्तिम लक्ष्य उस सत्य को अनावृत्त करना है, जो अब तक सब की आँखों से ओझल है, क्योकि सत्य का अर्थ है,सतत् अर्थात सदा बना रहने वाला। मालूम नहीं ऐसा सत्य कहाँ मिलेगा, शायद भगवान के पास। और अन्त में, गाइड फ़िल्म के ये शब्द जो मेरी ज़िन्दगी का आधार बन गये हैं,
" सवाल अब ये नहीं कि पानी बरसेगा या नहीं, सवाल ये नहीं कि मैं जिऊँगा या मरूंगा. सवाल ये है कि इस दुनिया को बनाने वाला,चलाने वाला कोई है या नहीं. अगर नहीं है तो परवाह नहीं ज़िन्दगी रहे या मौत आये. एक अंधी दुनिया में अन्धे की तरह जीने में कोई मज़ा नहीं. और अगर है तो देखना ये है कि वो अपने मज़बूर बन्दों की सुनता है या नहीं "
कभी सोचा नहीं था अपना ढोल अपने ही हाथों से पीटना पड़ेगा अर्थात् अपना परिचय स्वयं ही दूसरों को देना पड़ेगा।
"मिट्टी का तन,मस्ती का मन
क्षण भर जीवन, मेरा परिचय"
पर मैं वो बात किसी को कैसे बताऊं,जो मैं खुद नहीं जानता। हाँ चाहे कितनी भी बातें लिख लूं, पर सच यहीं है कि मैं नहीं जानता मैं कौन हूँ। कई बार सोचा, सवाल-ज़वाब का सिलसिला बंधा-टूटा, कई जवाब मिले, कई नये सवाल उठे, पर यह सवाल वहीं का वहीं है। मेरे मित्र ज़वाब देते हैं, तुम राधेश हो। पर ये तो मेरा नाम है। लोग कहते हैं,तुम मनुष्य हो पर, ये तो मेरी जाति है। कुछ ने कहा, तुम छात्र हो पर, ये तो मेरा व्यवसाय है। ये मेरा नाम, मेरी जाति, मेरा व्यवसाय मुझसे ही तो आस्तित्व में हैं, फ़िर ये मेरा परिचय कैसे हो सकते हैं। जिससे मेरा अस्तित्व हो, वहीं मेरा परिचय हो सकता है। तो फ़िर, मैं कौन हूँ और अगर मैं राधेश नहीं हूँ तो राधेश कौन है...मैं भूल रहा हूँ कि मेरा एक शरीर भी है, शायद उसी का नाम राधेश है, शायद वही मनुष्य भी है, क्योकि उसी के दो हाथ,दो पैर,हॄदय और मष्तिष्क भी हैं।
आईना जब गिरकर चूर हो जाता है,अपना स्वरूप खो देता है,तो फ़िर उसका नाम आईना नहीं रहता,उसे बस काँच का टुकड़ा कहा जा सकता है.आईना अपने स्वरूप के साथ नाम भी खो देता है। तो फिर ये शरीर,जिसका नाम राधेश है, ये भी तो एक दिन अपना स्वरूप खो देगा, उस दिन इसका नाम क्या होगा। …शायद राधेश ही।
हे प्रभु! ये कैसा विरोधाभास है? स्वरूप खोने के बाद भी ये शरीर अपना नाम नहीं खो रहा है.... कहीं ऐसा तो नहीं, राधेश नाम इस शरीर का नहीं है.......तो फ़िर किसका है....... कुछ भी समझना मुश्किल है,कल भी मुश्किल था,आज भी। सवाल अभी भी वहीं खड़ा हैं, हँस रहा है मेरी बेबसी पर, अपने अविजित होने पर। हाँ,इसके अलावा मुझे थोड़ा बहुत पता है अपने बारे में।
मेरी सहित्य में गहरी रुचि है. यहीं मेरे जीवन का आधार है, जीने का जज़्बा है, लक्ष्य है...अभी बहुत सफ़र तय करना है, कई मंज़िलों ,बाधाओं को पार करना है और अन्तिम लक्ष्य तक पहुँचना है। मेरा अन्तिम लक्ष्य उस सत्य को अनावृत्त करना है, जो अब तक सब की आँखों से ओझल है, क्योकि सत्य का अर्थ है,सतत् अर्थात सदा बना रहने वाला। मालूम नहीं ऐसा सत्य कहाँ मिलेगा, शायद भगवान के पास। और अन्त में, गाइड फ़िल्म के ये शब्द जो मेरी ज़िन्दगी का आधार बन गये हैं,
" सवाल अब ये नहीं कि पानी बरसेगा या नहीं, सवाल ये नहीं कि मैं जिऊँगा या मरूंगा. सवाल ये है कि इस दुनिया को बनाने वाला,चलाने वाला कोई है या नहीं. अगर नहीं है तो परवाह नहीं ज़िन्दगी रहे या मौत आये. एक अंधी दुनिया में अन्धे की तरह जीने में कोई मज़ा नहीं. और अगर है तो देखना ये है कि वो अपने मज़बूर बन्दों की सुनता है या नहीं "
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ...
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ...
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
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राधेश कुमार जीवन मैग के जनसम्पर्क अधिकारी हैं। |
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